कोहराः 364 फ़्लाइट लेट, 20 डायवर्ट
कोहरे के कारण कम दृश्यता ने हवाई यात्रा करने वाले लोगों और विमान कंपनियों को मुश्किल में डाल रखा है. गत दिवस दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से संचालित होने वाली उड़ानों में न केवल 364 की उड़ान में देरी हुई बल्कि 20 फ़्लाइट को इसी वजह से डायवर्ट भी करना पड़ा. वेबसाइट फ़्लाइटरडार24 के हवाले से यह जानकारी देते हुए ‘द हिंदू’ ने लिखा है कि सुबह 5.30 से शाम 7 के बीच करीब 213 यहां से उड़ने वाली और 159 यहां उतरने वाली फ़्लाइट लेट हुईं. कोहरे का सबसे ज्यादा असर सुबह 6 से 10 बजे के बीच आने-जाने वाली फ़्लाइट पर पड़ा. भारतीय मौसम विभाग के वरिष्ठ वैज्ञानिक आरके जेनामणि ने बताया कि इस दौरान रनवे वे पर दृश्यता 100-150 मीटर रही जिसमें बाद में थोड़ा सुधार हुआ. हालांकि इसके बाद भी कोहरे की मोटी चादर फैली रही. जान लें, रनवे विजुअल रेंज फ़्लाइट के उड़ान भरने के लिए 125 मीटर और उतरने के लिए 50 मीटर होना जरूरी है.
इस्राइल के हमले जारी, युद्धविराम मसौदा परख रहा हमास
एक ओर जहां युद्धविराम की कोशिशें तो दूसरी ओर उतरी और दक्षिणी गाज़ा में इस्राइल के हमले जारी हैं. इसी बीच हमास को मध्यस्थों ने युद्धविराम और बंधकों की रिहाई के लिए नया प्रस्ताव सौंपा है. इसे इस्राइल से बातचीत करने के बाद तैयार किया गया है. हमास ने कहा है कि वह नए प्रस्ताव को परख रहा है. माना जा रहा है कि यह शांति की दिशा में सबसे गंभीर प्रयास है. वहीं, गाज़ा के स्वास्थ्य अधिकारियों ने बताया कि अब तक 26,900 फ़लस्तीनी मारे जा चुके हैं. इनमें से 150 मौतें पिछले 24 घंटे में हुई हैं. उधर, जॉर्डन में हुए ड्रोन हमले में तीन अमेरिकी सैनिकों के मारे जाने से अमेरिका और ईरान के बीच भी तनाव चरम पर है. ‘द ट्रिब्यून’ के मुताबिक, अमेरिका का मानना है कि इस हमले के पीछे ईरान समर्थित आतंकियों का हाथ है. यह तो पता नहीं चला है कि इस पर अमेरिका कैसी कार्रवाई करेगा लेकिन ईरान के रिवोल्युशनरी गार्ड्स ने कहा है कि वह हर तरह की धमकियों का सामना करने को तैयार हैं.
अमर्त्य सेन का बेदख़ली आदेश ग़ैरकानूनीः कोर्ट
विश्वभारती विश्वविद्यालय की ज़मीन से नोबल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन को बेदखल करने का विश्वविद्यालय का आदेश ग़ैरकानूनी है. यह बात पश्चिम बंगाल के बीरभूम की ज़िला अदालत ने अपने आदेश में कही है. विश्वभारती ने बोलपुर स्थित विश्वविद्यालय परिसर की 1.38 एकड़ भूमि से 13 डिसमिल में बने उनके आवास ‘प्रतीक्षी’ को ख़ाली करने को नोटिस भेजा था. ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ ने लिखा है कि जिला जज सुदेशना डे चटर्जी ने अपने आदेश में कहा है कि विश्वविद्यालय का बेदख़ली आदेश क़ानूनन मान्य नहीं है. सेन के अधिवक्ता गोराचंद चक्रवर्ती ने बताया कि अमर्त्य सेन के पिता आशुतोष सेन ने यह ज़मीन विश्वविद्यालय से 1943 में लीज पर ली थी. उन्होंने कहा कि इसी आधार पर हमने विश्वविद्यालय के आदेश को अदालत में चुनौती दी थी. इस बारे में कार्यवाहक वाइस चांसलर संजय कुमार मल्लिक ने कहा कि वह फ़ैसले का अध्ययन करने के बाद ही कोई टिप्पणी करेंगे. बता दें, इस विश्वविद्यालय के नामित चांसलर प्रधानमंत्री होते हैं.
फटे होंठ पर बार-बार लिप बाम से परेशानी होगी
होठ फटना सर्दियों में आम बात है. इससे प्रायः सभी दो-चार होते हैं. तमाम लोग सुविधाजनक और आधुनिक होने के कारण ऐसे में लिप बाम या जेल का इस्तेमाल करते हैं. कुछ लिप बाम के इस्तेमाल से जलन और सूखापन बढ़ सकता है. इससे बेहतर है कि नारियल या जैतून का तेल लगाया जाए. यह बात न्यूयार्क के त्वचा विशेषज्ञ डॉ. हीथर रोजर्स ने कही है. उन्होंने कहा कि होठों की देखभाल ज़रूरी है लेकिन प्रोडक्ट का चयन भी महत्वपूर्ण है. ‘दैनिक भास्कर’ ने उनके हवाले से दी रिपोर्ट में कहा है कि लिप बाम से अस्थायी रूप से आराम तो मिलता है पर जलन व सूखापन इतना बढ़ जाता है कि बार-बार लगाना पड़ता है. होठों की स्किन पतली होती है. इनमें नमी बनाए रखने का गुण नहीं होता. इन पर पेट्रोलियम जेली, अरंडी, नारियल, जैतून का तेल या ग्लीसरीन से बने उत्पाद लगा सकते हैं. एक अन्य विशेषज्ञ डॉ. सैम अवान ने कहा कि सूखापन आने पर होंठ चाटना समस्या को गहरा कर सकता है क्योंकि लार में मौजूद पाचन एंजाइम जलन पैदा कर सकते हैं. डॉ. डेल कैम्पो ने बताया कि यदि बाहर रहना पड़े तो घरेलू चीजों का इस्तेमाल नहीं हो सकता. ऐसे में एसपीएफ 30 या इससे ज्यादा वाले लिप प्रोडक्ट का इस्तेमाल करें. ये यूवी डैमेज और सनबर्न से भी बचाते हैं.
गुरुद्वारा दर्शन के लिए दो और दूरबीनें लगाई गईं
भारत-पाकिस्तान सीमा पर स्थित डेरा बाबा नानक के सुंदरीकरण के अलावा ‘दर्शन स्थल’ पर दो नए टेलीस्कोप लगाए गए हैं. वे लोग जो पाकिस्तान स्थित करतारपुर साहिब तक जा नहीं पाते वे यहीं से दर्शन कर अपनी आस्था समर्पित कर लेते हैं. ऐसे लोगों के लिए ही यहां दूरबीनें लगाई गई थीं. अब बीएसएफ़ और लैंडपोर्ट अथारिटी की मदद से दो और टेलीस्कोप लगाए जाने से श्रद्धालुओं के लिए सुविधा बढ़ गई. करतार साहिब के प्रति हर सिख की इतनी आस्था है कि वह वहां मत्था टेकने जाना चाहता है लेकिन पासपोर्ट और दूसरी समस्याओं के चलते बहुत से लोग वहां नहीं जा पाते तो दर्शनस्थल आते हैं. रावी पार करतारपुर साहिब के दर्शन यूं तो यदि मौसम साफ़ हो तो आंखों से ही किए जा सकते हैं लेकिन टेलीस्कोप से लगता है कि वहीं पहुंच गए हैं. गुरदासपुर के डिप्टी कमिश्नर हिमांशु अग्रवाल ने ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ को बताया कि सुंदरीकरण कर दर्शनस्थल को और भी सुविधाजनक बनाया गया है. साथ ही यहां करतारपुर साहिब का इतिहास बताता एक बोर्ड भी लगाया गया है. ज़ीरो लाइन पर स्थित गुरुद्वारे के सेवादार हरिसिंह ने बताया कि रोज़ करीब दो हज़ार लोग करतारपुर साहिब के दर्शन करने यहां आते हैं.
जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों का उपाय पहले से ही
सारी दुनिया जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों का सामना करने का उपाय तलाश रही है. इस बीच एक अध्ययन बताता है कि हमारे पूर्वजों ने जलवायु में आते बदलावों से निपटने के लिए जहारों साल पहले ही फसलों और जल प्रबंधन की अलग रणनीति बनाई थी. बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट ऑफ़ पैलियोसाइंसेज (बीएसआईपी) के शोधकर्ताओं ने पुरातात्विक अध्ययन में पाया कि गुजरात के प्राचीन शहर वडनगर में हजारों वर्ष पहले भी खेती की जाती थी. यह एक अर्ध-शुष्क क्षेत्र है. वहां फसलों के जो साक्ष्य सामने आए हैं, उनके मुताबिक प्राचीन और मध्य युग के दौरान पर्याप्त मात्रा में पानी उपलब्ध था, जिस वजह से तब बड़े दाने वाले अनाज उगाए जाते थे. मध्य काल के बाद 1300 से 1850 ईसा पूर्व संभवतः पानी की कमी होने और गर्मी बढ़ने पर वहां लोगों ने बाजरा जैसे मोटे अनाज उगाना शुरू कर दिया था. उनके द्वारा फसलों में किया यह बदलाव जलवायु के प्रति उनके अनुकूलन को दर्शाता है. वेबसाइट ‘डाउन टु अर्थ’ के मुताबिक, अध्ययन के नतीजे जर्नल क्वाटरनेरी साइंस एडवांसेज़ में प्रकाशित हुए हैं.
चयन-संपादन । शरद मौर्य
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