निर्मल वर्मा और गगन गिल की किताबों का लोकार्पण

  • 9:02 pm
  • 17 February 2024

नई दिल्ली | विश्व पुस्तक मेला आठवें दिन शनिवार को राजकमल प्रकाशन से छपी निर्मल वर्मा और गगन गिल की किताबों का लोकार्पण हुआ. इस मौक़े पर गगन गिल ने अपने जीवन से जुड़े कई आत्मीय संस्मरण साझा किए. कहा, “पिछले 18 सालों में मुझे कई लोगों के साथ काम करने का मौक़ा मिला मगर जैसा सामंजस्य राजकमल और अशोक जी के साथ बना, वैसा अन्यत्र कहीं नहीं. मैं अभिभूत हूँ कि आज इतने वर्षों बाद निर्मल जी की और मेरी किताबें नए कलेवर में राजकमल से छप रही हैं.”

राजकमल प्रकाशन समूह के अध्यक्ष अशोक महेश्वरी ने प्रकाशन टीम का परिचय कराते हुए कहा कि यह हमारी टीम के सामूहिक प्रयास का ही फल है कि नई सज-धज में ये किताबें में पाठकों तक पहुँच पाईं. उन्होंने कहा, “मुझे निर्मल जी स्नेह और बहुत प्रेम मिला है मैं उसे कभी भुला नहीं सका. वर्षों पहले जिन परिस्थितियों में निर्मल जी की किताबें अन्यत्र छपने गईं, वह मेरे लिए दुखद और राजकमल प्रकाशन के लिए अप्रिय प्रसंग बना रहा. ख़ैर, हमने अपनी भूल को सुधारा है. मुझे ख़ुशी है कि निर्मल जी और गगन जी की सभी किताबें अपने मूल प्रकाशन में वापस लौट आई हैं.”

इस मौक़े पर आए मेहमानों ने निर्मल वर्मा से जुड़े संस्मरण साझा किए. प्रियदर्शन ने कहा “मैं सोचता हूँ आज का युवा पाठक बिना किसी आलोचनात्मक उद्यम के निर्मल जी क्यों और कैसे पढ़ सकता है. फिर मुझे समझ आया आधुनिकता की जो एकांतता है, विस्थापन का जो अभिशाप है, हर कोई अपना घर खोज रहा है. इन भावों को सबसे क़रीबी ढंग से निर्मल वर्मा ने लिखा है, यही कारण है कि वे आज के समय में इतना समकालीन, प्रासंगिक और लोकप्रिय बने हुए हैं.” रवींद्र ने कहा, “निर्मल जी के वैचारिक साहित्य के बिना साहित्य की चर्चा खोखली-सी दिखाई जान पड़ती है.” आनंद कुमार ने कहा, “सौ किताबें एक तरफ़ निर्मल वर्मा की किताबें एक तरफ़”. गीत चतुर्वेदी ने कहा, “उस दौर के साहित्यकारों में युवाओं से सबसे ज़्यादा जुड़ते हैं.” सत्र के अंत में रवीश कुमार ने निर्मल जी के उपन्यास ‘रात का रिपोर्टर’ से अंश पाठ किया और कहा कि मैंने निर्मल वर्मा को पढ़ा है, इसलिए मैं कह सकता हूँ कि निर्मल वर्मा को पढ़ना चाहिए.

निर्मल वर्मा की छह किताबें– ‘वे दिन’, ‘लाल टीन की छत’, ‘रात का रिपोर्टर’, ‘एक चिथड़ा सुख’ (उपन्यास); ‘परिंदे’ (कहानी संग्रह); ‘चीड़ों पर चाँदनी’ (यात्रा संस्मरण) और गगन गिल के काव्य संग्रह ‘यह आकांक्षा समय नहीं’ का आज लोकार्पण हुआ.

पहले सत्र में शैलजा पाठक की किताब ‘कमाल की औरतें’ का लोकार्पण हुआ. इस सत्र में ममता कालिया और रामजी तिवारी साथ रहे, कार्यक्रम का संचालन सुदीप्ति ने किया. ममता कालिया ने कहा, “शैलजा एक संत की तरह बेबाकी से अपनी बातें लिखती हैं, बिना ये सोचे बिना कि उनके ऊपर कोई हमला तो नहीं होगा. जीवन के छोटे-छोटे लम्हे, कस्बे की औरतों की समस्याएं और पीड़ा इस कविता संग्रह में व्यक्त हैं, लेकिन वो स्त्रियाँ लाचार होकर भी, लाचार नहीं है,उनमें साहस है.” रामजी ने कहा, “ये कविताएं मनुष्य के जनतान्त्रिक विकास को दर्शाती है. पुरुष समाज ने स्त्रियों कोण कितने गहरे प्रताड़ित किया है, यह इस कविता संग्रह में दर्ज़ है.” शैलजा पाठक ने कहा, “एक मैजिकल बॉक्स जिसको ख़ाली कर देने पर वह फिर वह भर जाता है. मेरी कविताओं में औरतें उसी तरह हैं, जो कभी ख़त्म नहीं हो सकती. मैं महिलाओं के लिए हमेशा लिखती रहूँगी.”

सुमन केशरी की किताब ‘कविता के देश में’ पर लीलाधार मंडलोई ने उनसे बातचीत की. श्री मंडलोई ने कहा, “इस पुस्तक में आत्म और पर-संवाद की शैली है साथ ही यह स्त्री की दृष्टि और स्त्री के विमर्श से उपजी पुस्तक है.” सुमन केशरी ने कहा, “कविता ही साहित्य की मूल कृति है. अब मूल का पाठ कैसे पढ़ जाए, यही मैंने इस पुस्तक में दिखने का प्रयास किया है.”

प्रत्यक्षा के नए कहानी संग्रह ‘अतर’ के लोकार्पण के बाद प्रियदर्शन, प्रभात रंजन और सुदीप्ति ने संग्रह पर अपना नज़रिया साझा दिया. सोरित गुप्तो की किताब ‘महामारी का रोज़नामचा’ पर विनीत कुमार ने उनसे बातचीत की. वक्ताओं ने कहा, “कोरोना तो आया और चला गया लेकिन हाँड़ मांस के शरीर से ज़्यादा इंसानियत मरती है. इसी इंसानियत के मरने का दस्तावेज़ यह किताब है.” सोरित गुप्तो ने कहा, “कोरोना के दौरान आम नागरिकों के बारे में ज़रा भी सहानुभूति नहीं दिखाई गई. दुर्भाग्य की बात यह है कि ऐसा करने वाले चेहरे आज भी हैं, इसलिए महामारी आज भी बरक़रार है.”

विनय कुमार के काव्य नाटक ‘आत्मज’, अजय कुमार, ज्योतिष जोशी और प्रयाग शुक्ल की मौजूदगी में जारी हुआ. सत्र का संचालन आशीष मिश्र ने किया. वक्ताओं ने कहा कि विनय कुमार एक साहित्यकार के साथ-साथ एक मनोवेत्ता भी हैं, अतः एक पिता, पुत्र और पत्नी के संबंध को उन्होंने इस पुस्तक में बख़ूबी बताया है. देवेश की नई किताब ‘मेट्रोनामा : हैशटैग वाले क़िस्से’ का भी लोकार्पण हुआ. इस सत्र में रवीश कुमार और विनीत कुमार उपस्थित रहे.

बाद में विनीत कुमार की नई किताब ‘मीडिया का लोकतंत्र’ का लोकार्पण हुआ, रवीश कुमार ने लेखक से बातचीत करत हुए कहा, “हिंदी में ऐसी किताब लिखी गई है यह ख़ुशी की बात है जो अन्य भाषाओं में लिखी गई श्रेष्ठ कविताओं के समकक्ष है. इस किताब को पढ़कर हिंदी पाठकों, मीडिया प्रेमियों में संभावनाओं के द्वार खुलेंगे. मुझे विश्वास है कि इसे पढ़कर निश्चित रूप से आप टीवी और मीडिया के बारे में कुछ नया और महत्त्वपूर्ण सीखेंगे.” वहीं लेखक ने कहा, “इस किताब में मैंने कहीं ऐसा नहीं कहा कि मीडिया को कैसा होना चाहिए. मैंने बस ये सवाल खड़े किए है कि जिन वादों, इरादों, यादों की यहाँ बात की जाती है, क्या उनका अनुसरण भी किया जाता है.”

नेहा नरूका के कविता संग्रह ‘फटी हथेलियाँ’ पर रश्मि भारद्वाज ने कवि से बातचीत की. नेह ने कहा, “मैं सिर्फ़ मैं ही नहीं हू. मैं अपने आपको नारीवाद का समर्थक मानती हूँ और स्त्री की पीड़ा, उनके संघर्ष और सवालों को दर्ज करने की कोशिश करती हूँ. मैंने डिमांड के लिए कभी बोल्ड कविता नहीं लिखी है. मुझे लगता है मेरे ऊपर यथार्थ ज़्यादा हावी है और मैं सच्चाई को ही व्यक्त करती हूँ. कार्यक्रम के अंतिम सत्र में सौम्य मालवीय के कविता संग्रह ‘एक परित्यक्त पुल का सपना’ का लोकार्पण हुआ. असद जैदी ने कहा, “ये कविताएँ बीते दो-एक दशकों में उपजी बेचैनियों और निराशाओं को एक स्वर देने का प्रयास करती हैं. वक़्त की चोट को शब्दों में महसूस करना चोट पर मरहम का ही काम नहीं करता, बल्कि उसे ज़िन्दा भी रखता है.” इसके बाद सौम्य ने अपने संग्रह से कुछ कविताओं का पाठ किया.

कल के कार्यक्रम
जलसाघर में 18 फरवरी को दोपहर में कृष्णा सोबती के अप्रकाशित उपन्यास ‘वह समय गर्दन की तिलक पर’ का लोकार्पण होगा. ज्ञान चतुर्वेदी की किताब ‘एक तानाशाह की प्रेमकथा’; उपासना की किताब ‘एक ज़िंदगी… एक स्क्रिप्ट भर’; सोनी पाण्डेय की किताब ‘सुनो कबीर’ का लोकार्पण होगा. राजेश पांडेय की किताब ‘वर्चस्व’ और आशा प्रभात की किताब ‘उर्मिला’ पर बातचीत होगी.

(विज्ञप्ति)

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