पुस्तक मेला | बहुभाषी भारत के लिए दूसरी भाषाएं जानना भी ज़रूरी

  • 9:21 pm
  • 10 February 2024

नई दिल्ली | प्रगति मैदान में आज से शुरू हुए विश्व पुस्तक मेला के पहले दिन ख़ूब भीड़ जुटी. राजकमल प्रकाशन समूह के स्टॉल जलसाघर में दिनभर पाठकों का जमघट लगा रहा. पसंदीदा किताबें खरीदने के साथ ही लेखकों से मिलने को लेकर भी उनमें काफी उत्साह दिखा. हिन्दी की क्लासिक किताबों के साथ पाठकों ने नई किताबों को भी ख़ूब पसन्द किया. कथा-साहित्य के साथ ही सामाजिक विमर्श की कथेतर कृतियों की मांग भी ज्यादा रही.

परिचर्चाः ‘बहुभाषिकता का सुख’

जलसाघर में हुए कार्यक्रम के पहले सत्र में ‘बहुभाषिकता का सुख’ विषय पर परिचर्चा हुई. इसमें अशोक वाजपेयी, अब्दुल बिस्मिल्लाह, जानकीप्रसाद शर्मा, हरीश त्रिवेदी, पंकज चतुर्वेदी और शिवांगी बतौर वक्ता मौजूद रहे. संचालन मृत्युंजय ने किया. वक्ताओं ने कहा कि जो हिंदी बोलते हैं, हम उन्हें कहते हैं कि शुद्ध हिंदी बोल रहे हैं जबकि वह अच्छी हिंदी बोल रहे होते हैं. जो अच्छी हिंदी बोलते हैं, उन्हें किसी ख़ास पक्ष से जोड़ लिया जाता है. उर्दू बोलते ही सेकुलर और अंग्रेज़ी के इस्तेमाल भर से ही वह मॉडर्न हो जाता है. हिंदी वालों के लिए ऐसे खांचों में बंटने से बेहतर यही है कि वह उर्दू, अंग्रेज़ी और हिंदी मिश्रित भाषा बरतें. बहुभाषी भारत की ख़ूबसूरती को समझना है तो हमें देश की सभी भाषाओं के कम से कम दस-दस शब्द सीखने चाहिए.

जलसाघर में पहला सत्र.

विमोचनः ‘जातियों का लोकतंत्र’
दूसरे सत्र में अरविंद मोहन की ‘जातियों का लोकतंत्र’ श्रृंखला की तीन किताबों ‘जाति और चुनाव’, ‘जाति और आरक्षण’, और ‘जाति और राजनीति’ का लोकार्पण हुआ. ये तीनों किताबें देश के चुनावी लोकतंत्र को समझने में बहुत उपयोगी है. इनमें भारत में जाति और लोकतंत्र में उसकी भूमिका पर लेख संकलित किए गए हैं. इस श्रृंखला की तीन किताबों में से एक जाति और चुनाव अरविंद मोहन ने ख़ुद लिखी है. बाक़ी दोनों किताबों का उन्होंने सम्पादन किया है.

सम्पूर्ण कविताओं के तीन संग्रहों का लोकार्पण
कार्यक्रम के तीसरे सत्र में मंगलेश डबराल, ओमप्रकाश वाल्मीकि और कुमार विकल की सम्पूर्ण कविताएँ नाम के संग्रहों का लोकार्पण हुआ. इस सत्र में अल्मा डबराल, गंगा सहाय मीणा, मदन कश्यप, विष्णु नागर, डॉ.बजरंग बिहारी तिवारी और प्रो.रविकान्त मौजूद रहे.
अल्मा डबराल के लिए इस पुस्तक के लोकार्पण का क्षण भावुक था. उन्होंने कहा, “पापा के देहावसान के बाद हमने उनके कंप्यूटर को देखा तो ऐसी कई कविताएं मिलीं, जो अप्रकाशित थीं. इन कविताओं के प्रकाशन के लिए मैं राजकमल का धन्यवाद करती हूँ.” विष्णु नागर ने मंगलेश डबराल को याद करते हुए कहा कि वे अपने समय के बारे इतने तीखेपन और सफ़ाई से लिखने वाले हमारे समय में बहुत कम कवियों में से एक हैं. कुमार विकल के बारे में उन्होंने कहा कि जीवन के बहुत कम समय में उन्होंने विस्तृत साहित्य रचा है.

इस सत्र में बोलते हुए बजरंग बिहारी तिवारी ने कहा कि ओम प्रकाश वाल्मीकि की कविताओं को पढ़कर दलित कविताओं को पढ़ने की राह खुलती है. वे पहले मुकम्मल दलित कवि हैं. सलाम और ठाकुर का कुआं कविता को याद करते हुए उन्होंने कहा कि वे संसाधनों के रीडिस्ट्रीब्यूशन की बात उठाते हैं, इसलिए उनकी बातें इतनी चुभती हैं. वहीं गंगा सहाय मीणा जी ओम प्रकाश वाल्मीकि के संग्रह के विषय में कहते हैं, “मैं सोचता हूँ कि आज इन कविताओं को सार्वजनिक मंच पर पढ़ा जाए तो न जाने क्या हो जाए. आजकल प्रतिरोध के स्वर कम हुए हैं. उन्होंने कहा कि वाल्मीकि की कविताओं में स्त्री विमर्श भी है, जो दिखाता है कि एक उत्पीड़ित अस्मिता का व्यक्ति दूसरी उत्पीड़ित अस्मिता के प्रति कितना सजग है.

नया कविता संग्रह ‘प्रेम में पेड़ होना’
लोकप्रिय युवा कवि जंसिता केरकेट्टा की प्रेम कविताओं के संग्रह ‘प्रेम में पेड़ होना’ का लोकार्पण हुआ. इस मौक़े पर जसिंता ने नए संग्रह से कुछ कविताओं का पाठ किया. बाद में किताब पर आदित्य शुक्ला के साथ बातचीत में जसिंता केरकेट्टा ने कहा कि प्रेम को देखने का नज़रिया उसी समाज से आता है जहाँ हम रहते हैं. मैं आदिवासी समाज से हूँ. हमारे समाज में प्रेम की परिभाषा अलग है क्योंकि हम इस पूँजीवादी समाज से दूर हैं. प्रेम से मतलब है कि आप प्रेम में कितने उदार होते हैं. इसलिए मैंने इस किताब का नाम ‘प्रेम में पेड़ होना’ रखा है.

बाद के सत्र में ‘मृत्यु और हँसी’ उपन्यास पर देवेश ने लेखक प्रदीप अवस्थी से उपन्यास के कथानक पर बातचीत की. इस उपन्यास में आधुनिक जीवनशैली में रिश्तों की चुनौतियों पर गंभीर विमर्श किया गया है. बातचीत के दौरान लेखक प्रदीप अवस्थी ने कहा कि जब अहमियत मिलती है तो लोग उस तरफ आकर्षित होते हैं. इसकी वजह से कई बार नए रिश्ते बनते हैं तो कुछ रिश्ते टूटते भी है.

कार्यक्रम के अंतिम सत्र में कबीर संजय के कहानी संग्रह ‘फेंगशुई’ पर बातचीत हुई. इस संग्रह की कहानियाँ मुख्य रूप से महानगरीय जीवन पर आधारित हैं. लेखक ने कहा कि वह दिल्ली में रहते हैं. महानगरीय जीवन, दिल्ली की भीड़ और शहरी संघर्ष को उन्होंने क़रीब से देखा है और इस संग्रह की कहानियों में उसी की अभिव्यक्ति है.

कल के कार्यक्रम
जलसाघर में कल यानी 11 फरवरी को कार्यक्रम दोपहर एक बजे से शुरू होंगे. पहले सत्र में ‘भविष्य के पाठक’ विषय पर परिचर्चा होगी, जिसमें अणुशक्ति सिंह, जय प्रकाश कर्दम, राकेश रेणु, विनोद तिवारी, तशनीफ हैदर, रमाशंकर सिंह वक्ता होंगे. दूसरे सत्र में प्रो.प्रज्ञा के उपन्यास ‘काँधों पर घर’ का लोकार्पण होगा. इसमें रोहिणी अग्रवाल, शंकर, भालचंद्र जोशी तथा राकेश कुमार उपस्थिति रहेंगे. अगले सत्र में संजय काक ‘संघर्ष नर्मदा का’ किताब पर लेखक नंदिनी ओझा से बातचीत करेंगे. उत्कर्ष शुक्ला से उनके उपन्यास ‘रहमानखेड़ा का बाघ’ पर रमेश कुमार पाण्डेय बातचीत करेंगे. वर्ष 2023 के बहुचर्चित उपन्यास ‘अगम बहै दरियाव’ पर लेखक शिवमूर्ति से देवेश की बातचीत होगी. अंकिता आनंद की किताब ‘अब मेरी बारी’ पर सविता पाठक उनसे बातचीत करेंगी. अंतिम सत्र में ‘लेखक से मिलिए’ कार्यक्रम में कथाकार चन्द्रकांता से विशाल पांडेय बातचीत करेंगे.

(विज्ञप्ति)

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