विश्व पुस्तक मेले के आख़िरी दिन ख़ूब गहमागहमी

  • 9:24 pm
  • 18 February 2024

नई दिल्ली | नौ दिनों तक चले विश्व पुस्तक मेला का इतवार को समापन हुआ. आख़िरी दिन मेले में ख़ूब भीड़भाड़ और गहमागहमी रही. राजकमल प्रकाशन के कार्यकारी निदेशक आमोद महेश्वरी ने बताया कि इस बार मेले में पिछली बार के मुक़ाबले किताबों की बिक्री बढ़ी है. किताबों का चयन हिन्दी के पाठकों की नई रुचियों का पता भी देता है. स्त्री-विमर्श, दलित-आदिवासी साहित्य, लोकतंत्र, मीडिया, जाति और समाज विज्ञान की कथेतर किताबों की मांग इस बार ज्यादा रही है. कथा-साहित्य में भी पाठकों की ओर से इसी तरह के विमर्शों पर आधारित किताबें ज्यादा पसन्द की गईं. युवाओं में नए लेखकों की किताबों को लेकर भी ख़ास उत्साह देखने को मिला है.

आख़िरी दिन राजकमल प्रकाशन के स्टॉल जलसाघर में ‘तुम्हारी औकात क्या है पीयूष मिश्रा’, ‘वर्चस्व’, ‘बोलना ही है’, ‘काशी का अस्सी’, ‘जूठन’, ‘आपका बंटी’, ‘एक तानाशाह की प्रेमकथा’, ‘घुमक्कड़ शास्त्र’ और ‘वैशालीनामा’ सर्वाधिक बिक्री हुई.

‘एक तानाशाह की प्रेमकथा’
पहले सत्र में ज्ञान चतुर्वेदी के उपन्यास ‘एक तानाशाह की प्रेमकथा’ के मौक़े पर परिचर्चा में लेखक ने कहा, “अतिशय प्रेम जब संबंधों में आता है तो उसकी पड़ताल करने की ज़रूरत होती है. इस उपन्यास का एक पात्र है जो अपनी पत्नी से बहुत प्रेम करता है लेकिन उसे पीटता है, फिर भी दोनों ख़ुश हैं. वह प्रेम को समझते ही नहीं, उनकी सोच है प्रेम में दो-तीन थप्पड़ से कोई फ़र्क नहीं पड़ता है. इस उपन्यास के माध्यम से मैंने विशुद्ध और सच्चे प्रेम की परिकल्पना की है. इसकी रचना के दौरान मैंने सोचा देश प्रेम भी तो एक प्रेम है इसलिए मैंने देश प्रेम को भी दर्शाया. इस रचना के दरम्यान मैंने एक तानाशाह के दिमाग़ में उतरने की कोशिश की है, अपने देश को सर्वश्रेष्ठ दिखाने की उसकी जो प्रवृत्ति है, सत्ता और आम इंसान के प्रेम के बीच की जो केमिस्ट्री है वही इस उपन्यास का केंद्रीय तत्व है.”

कथाकार अखिलेश ने कहा, “पहले प्रेम में मर जाना एक मुहावरा था, अब आए दिन प्रेम में मार देने की ख़बरें सुनने को मिलती हैं. यह एक जटिल संरचना और जटिल संवेदना का उपन्यास है.” आलोक पुराणिक ने कहा, “इस उपन्यास को सिर्फ़ व्यंग्य के तौर ही नहीं देखा जाना चाहिए, इसमें आज के पूरे परिवेश को देखा जा सकता है.”

‘लोहिया के सपनों का भारत’
अशोक पंकज की किताब ‘लोहिया के सपनों का भारत’ पर हुई बातचीत में बद्रीनारायण और रमाशंकर सिंह उपस्थित रहे. किताब के बारे में लेखक ने कहा, “डॉ. लोहिया ने देश के नवनिर्माण के लिए सोचा और एक अलग विचार रखा. उन्होंने केवल समस्या नहीं बताई बल्कि समाधान का सूत्र भी प्रस्तुत किया. मुझे विश्वास है कि यदि उनके विचारों को मान्यता मिलती तो ग्रामीण समाज की स्थिति सुधर जाती. ग़रीबी और अशिक्षा का यह हाल तो नहीं होता, जो हम आज देखते हैं. ये सारे मुद्दे आज भी ज्वलंत हैं, इसलिए लोहिया के मॉडल के बारे में पुनर्विचार की जरूरत है.”
मंचासीन वक्ता रमाशंकर सिंह ने कहा, “आज जब यह बात की जाती है कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है तो बौद्धिक वर्ग की यह ज़िम्मेदारी है कि वह समझे कि हम सिर्फ़ वोटर्स के हिसाब से बड़े लोकतंत्र में हैं या वे सारी समानताएं हमें मिल रही हैं, जिनकी बात लोकतंत्र में की जाती है.” कवि-समाजशास्त्री बद्रीनारायण ने कहा, “लोहिया जी भारतीय परंपरा और आधुनिक चिंतन के अंतर्संवाद को प्रस्तुत करने वाले विचारक थे. उनकी कोई जाति नहीं थी, वे एक विचार थे जिस पर बार-बार पुनर्पाठ की आवश्यकता है.”

कृष्णा सोबती के उपन्यास का लोकार्पण
कृष्णा सोबती के दो अप्रकाशित उपन्यास ‘वह समय’ और ‘गर्दन पर तिलक’ का लोकार्पण हुआ. ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित कथाकार के दो अप्रकाशित उपन्यास एक ही ज़िल्द में छपे हैं. इस मौक़े पर गरिमा श्रीवास्तव ने कहा, “इस उपन्यास को देखकर मैं कह सकती हूं कि कृष्णा सोबती ज़िंदगीनामा का दूसरा भाग लिखना चाहती थीं. जहाँ ज़िंदगीनामा ख़त्म हो रहा है वहाँ से यह उपन्यास शुरू हो रहा है.” रवींद्र यादव ने कहा, “जिस स्त्री को वे अपने साहित्य में लेकर आई थी, जिस स्त्री-पुरुष के संबंध और जिस समाज को उन्होंने दिखाया है, वैसा हिंदी साहित्य में अन्यत्र देखने को नहीं मिलता.” अखिलेश ने कहा, “कृष्णा सोबती जी हिंदी की अप्रतिम लेखिका थी. उनसे पूर्व वैसे रचनाकार नहीं हुए, भविष्य में होना भी दुर्लभ है. एक लेखक का व्यक्तित्व कैसा होना चाहिए, वे उसका उदाहरण भी थीं.”

‘प्रतिरूप’ का लोकार्पण
मनोज पाण्डेय के नए कहानी संग्रह ‘प्रतिरूप’ का लोकार्पण हुआ. इस सत्र में ज्ञान चर्तुवेदी, अखिलेश, वीरेन्द्र यादव बतौर वक्ता मौजूद रहे. वक्ताओं ने कहा कि मनोज जी की कहानियां पुराने डिपार्ट से अलग हैं, इनकी कहानियों में पुरानी साहित्य परंपरा की सोच है, परंतु रचना शैली इनकी अपनी है. ख़ुशी है कि ये उस पुराने सांचे को तोड़ पा रहे हैं. कहा कि इस संग्रह की कहानियाँ समकालीन समय की राजनीतिक, सामाजिक और पेशागत कई चुनौतियों को दर्शाती हैं, जो आज के समय की भयावहताओं को अलग-अलग ढंग से बयान करती हैं. लेखक ने कहा कि इन कहानियों के माध्यम से उन्होंने यही कोशिश की है कि पाठक अपने समय को थोड़ा और बेहतर से समझ पाएँ.

‘उर्मिला’ पर बातचीत
आशा प्रभात के उपन्यास ‘उर्मिला’ पर गीताश्री ने लेखक से बातचीत की. आशा प्रभात ने कहा, “युग कोई भी हो समाज और उसमें स्त्रियों की स्थिति नहीं बदली है. मेरे उपन्यास में दर्शाए गए पात्र पौराणिक हैं लेकिन अलौकिक नहीं हैं, मैंने एक मानवीय स्त्री को चिह्नित किया है.”

‘वर्चस्व’ पर बातचीत
राजेश पाण्डे के उपन्यास ‘वर्चस्व’ पर शम्स ताहिर ख़ान ने उनसे बातचीत करते हुए बताया कि “नब्बे के दशक में श्रीप्रकाश शुक्ला एक ऐसा अपराधी था, जिसके आतंक ने यूपी और बिहार में सबकी नींद उड़ा दी थीं. यूपी पुलिस की एसटीएफ़ ने ग़ाज़ियाबाद में उसे मार गिराया. यह किताब इसी मुठभेड़ की मुकम्मल दास्तान है.” लेखक ने कहा, “इस किताब में जो कुछ भी दर्ज किया गया है, वह कोई संस्मरण भर नहीं बल्कि यूपी के एक आपराधिक कालखंड का ब्योरा है.”

‘एक जिन्दगी… एक स्क्रिप्ट भर!’
उपासना के कहानी संग्रह ‘एक जिन्दगी… एक स्क्रिप्ट भर!’ के लोकार्पण के मौक़े पर अखिलेश और अनुराधा गुप्ता ने वक्तव्य दिया. वक्ताओं ने कहा कि उपासना की कहानियाँ तरल भाषा, सन्तुलित गठन और विवेकपूर्ण सूक्ष्मता के साथ गुँथी-बुनी हैं. वह कम लिखती हैं, लेकिन जब लिखती हैं, एक अच्छी कहानी पढ़ने के सुख के प्रति आश्वस्त करती हैं. उनके अनुभवों के आधार पर लिखी गई कहानियाँ समाज के अँधेरे-उजालों को बहुत बारीकी से दर्शाती हैं. लेखक ने कहा कि इन कहानियों को लिखते समय उनकी जो मनःस्थिति और परिवेश था, वह बहुत प्रियकर था, इसी ताने-बाने को उन्होंने अपनी कहानियों में दर्ज किया.

आख़िरी सत्र सोनी पांडेय के उपन्यास ‘सुनो कबीर’ के लोकार्पण और बातचीत का रहा. लेखक के साथ मंच पर मृत्युंजय, देवेश और रश्मि भारद्वाज भी मौजूद रहे. बातचीत में सोनी पांडेय ने कहा, “यह रचना मेरे महबूब शहर आज़मगढ़ को समर्पित है. मैं अपने शहर को जितना समझ पाई वही इस उपन्यास की गाथा है.” रश्मि ने कहा, “यह बहुत ही सरल और सधी हुई भाषा में लिखा गया एक रोचक उपन्यास है. इसमें देखा जा सकता है कि किस तरह राजनीतिक हलचल की वज़ह से समाज का साझापन बदल रहा है. इस उपन्यास में एक कथा के साथ-साथ कई उपकथाएं एक साथ चलती हैं जो कथा का विस्तार करती चलती है.” मृत्युंजय ने कहा, “सोनी जी के उपन्यास के जो कैरेक्टर हैं, वो बहुत ताकतवर, मॉडल या विशिष्ट हैं. यदि समाज में ऐसे कैरेक्टर आ जाएं तो समाज सचमुच बहुत ख़ूबसूरत होगा.” देवेश ने कहा, “मैं आज़मगढ़ ज़िले का रहने वाला हूँ. हर ज़िले की तरह आज़मगढ़ भी एक साधारण जिला है, मीडिया ने जिसकी अलग और ख़ास छवि बना डाली है. इस उपन्यास को पढ़कर मैं अपने आज़मगढ़ की जीवंत तस्वीर देख पाया.”

(विज्ञप्ति)


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