राजनीति के लिए इतिहास ध्वंस नहीं करना चाहिए : एस. इरफ़ान हबीब

  • 10:26 pm
  • 14 February 2024

नई दिल्ली | इतिहासकार एस.इरफ़ान हबीब ने अपनी संपादित किताब ‘भारतीय राष्ट्रवादः एक अनिवार्य पाठ’ पर बुधवार को हुई परिचर्चा में कहा, “देशभक्ति एक भावना है, जो हर समय हर व्यक्ति के लिए ज़रूरी है पर राष्ट्रवाद एक राजनीतिक अवधारणा है. कई बार हम देशभक्ति और राष्ट्रवाद दोनों को एक ही मानते हैं जबकि ये दोनों बहुत अलग है. देश की आज़ादी की लड़ाई के समय जो राष्ट्रवाद प्रचलित था, वह राष्ट्रवाद की वर्तमान अवधारणा के एकदम उलट था. उस उपनिवेश विरोधी राष्ट्रवाद में किसी को अलग करने की बात नहीं थी बल्कि सभी को उसमें शामिल करने पर ज़ोर दिया जाता था. आज़ादी के बाद हमें वह राष्ट्रवाद विरासत के रूप में मिला और दशकों तक हमने उसी का अनुसरण किया. मगर पिछले कुछ सालों से देश में वह राष्ट्रवाद प्रचलन में आया है, जिसको हमारी आज़ादी की लड़ाई लड़ने वाले लोगों ने नकार दिया था.”

विश्व पुस्तक मेले में राजकमल प्रकाशन के स्टॉल जलसाघर में आज के कार्यक्रमों की शुरुआत उनकी किताब पर परिचर्चा से ही हुई. उन्होंने कहा, “हमारे नेताओं ने जब राष्ट्रवाद की बात की तो वह धर्म के आधार पर बना हुआ राष्ट्रवाद नहीं था. धर्म को केंद्र में रखकर विकसित हुआ राष्ट्रवाद हर हाल में विघटनकारी ही होगा. राष्ट्रवाद तभी तक ठीक है, जब तक उसमें सभी तरह की धार्मिक, सांस्कृतिक और भाषाई अस्मिताओं को शामिल करते हुए आगे बढ़ा जाए. मगर मुश्किल यह है कि एक आक्रामक राष्ट्रवाद अक्सर इसका उल्टा ही करता हुआ नज़र आता है.”

देश की सांस्कृतिक विविधता पर बात करते हुए उन्होंने कहा, “भारत में बहुत-सी संस्कृतियां, धर्म और भाषाएं हैं, जिनसे हमारी संस्कृति बहुत समृद्ध है. हमें इतिहास में देखना चाहिए कि हमारे यहां धार्मिक समन्वय की बात होती आई थी. राजनीति के लिए हमें इसे मिटाना नहीं चाहिए. हमारी ख़ूबसूरती विविधता में है, इसलिए हमें इसे बचाकर रखना चाहिए.” उनके साथ संवाद धर्मेन्द्र सुशांत ने किया.

स्त्री हों या पुरुष, मैं शोषितों के साथ: नासिरा शर्मा
दूसरे सत्र में नासिरा शर्मा की चार किताबों के संदर्भ में ‘औरतनामा’ विषय पर परिचर्चा हुई. इस सत्र में अशोक तिवारी और हरियश राय बतौर वक्ता मौजूद रहे. शुरूआत में अशोक तिवारी ने ‘औरतनामा’ नाम से छपी नासिरा शर्मा की चार किताबों की श्रृंखला का परिचय दिया. उन्होंने बताया कि इस श्रृंखला की पहली किताब ‘औरत की आवाज़’ में नासिरा शर्मा द्वारा लिए गए 16 देशों की 21 प्रतिनिधि लेखिकाओं के साक्षात्कार संकलित है. दूसरी किताब ‘औरत की दुनिया’ में नासिरा शर्मा द्वारा लिखे गए उन स्तम्भों का संकलन है, जो समय-समय पर विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में छपते रहे हैं. तीसरी पुस्तक ‘मैं अपने ख़्वाबों की ताबीर चाहती हूँ’ में विभिन्न पत्रकारों द्वारा नासिरा शर्मा से लिए गए साक्षात्कार शामिल हैं. चौथी किताब ‘मैंने सपना देखा’ में नासिरा शर्मा द्वारा लिखे गए ऐसे लेख हैं, जो समाज, साहित्य और सियासत में औरत की उपस्थिति और स्थिति की तलाश करते हैं.

इस मौक़े पर नासिरा शर्मा ने कहा “आज़ादी के बाद जो नियोजन हुआ, उसमें औरतों को ज़्यादा मौक़े मिले, जिससे औरत और पुरुष के बीच संतुलन आया है. कुछ मामलों में स्त्री आगे भी बढ़ गई है लेकिन औरत सुरक्षित नहीं है. कोई औरत जब किसी ओहदे पर होती है तो उस कुर्सी की तो इज़्ज़त होती है पर औरत की इज़्ज़त नहीं होती है.” हरियश राय ने कहा “औरत काफ़ी आगे बढ़ गई गई हैं आर्थिक रूप से स्वतंत्र हो गई है लेकिन ख़ुश नहीं है या ख़ुश रहने नहीं दिया जाता है. मैं जब अपने वकील साथियों से बात करता हूँ तो वे बताते हैं आजकल संबंध-विच्छेद के मामले भी ज्यादा बढ़ रहे हैं.” इस विषय में नासिरा शर्मा ने कहा, “आज की नई नस्ल के मन में एक खौफ़-सा आ गया है कि उनका रिश्ता नहीं चल पाएगा. दूसरी बात यह भी है कि हम ऑफ़िस में बॉस की हज़ारों बातें सुन लेंगे लेकिन अपने जीवन साथी की एक बात भी नहीं सुन सकते.” उन्होंने कहा कि “औरत के आगे बढ़ जाने से लड़कों से लेकर मर्दों तक सबके मन में एक कुंठा है. इस कुंठा को शांत करने के लिए वो औरत के साथ जिस्मानी हिंसा करने लगे हैं, इस पर भी बात होनी चाहिए.” कहा कि “औरतों का बहुत शोषण हुआ है, लेकिन जैसे-जैसे मैंने औरत को देखा तो पाया कुछ औरतों के मन में कहीं न कहीं पुरुषों से ज़्यादा हिंसा करने की होड़ है, इसलिए पुरुष भी शोषित हो रहे हैं.” नासिरा शर्मा ने कहा “मैं उसी के लिए आवाज़ उठाऊॅंगी जो ज़्यादा शोषित हैं, चाहे वह स्त्री हो या फिर पुरुष.”

‘क्रांतिकारी ज्योतिराव फुले’ का लोकार्पण
मोहनदास नैमिशराय की किताब ‘क्रांतिकारी ज्योतिराव फुले’ के लोकार्पण के सत्र में डॉ.रूपचन्द्र गौतम, रवींद्र और दिनेश उपस्थित रहे. संचालन सुदेश कुमार ने किया. परिचर्चा में डॉ. रूपचन्द्र गौतम ने कहा, “दलित साहित्य कमरे के वातावरण में बैठकर नहीं लिखा जा सकता. यह किताब एक यायावरी ढंग से लिखा गया ऐतिहासिक उपन्यास है.” दिनेश ने कहा “मोहनदास नैमिशराय देश के विभिन्न क्षेत्रों में भ्रमण करते हैं और वहाँ की घटनाओं को अपनी पुस्तकों में दिखाते हैं, यह पुस्तक इसी तरह का तथ्यात्मक तथा ऐतिहासिक उपन्यास है.” रवींद्र ने कहा कि वर्चस्ववादी समाज ने जो इतिहास लिखा है, उससे बाक़ी समाज का एक बड़ा हिस्सा अछूता है. इस ऐतिहासिक उपन्यास के माध्यम से वह हिस्सा सामने आता है.” उपन्यासकार मोहनदास नैमिशराय ने कहा कि “यह एक सुखद बात है कि ग़ैर बहुजन समाज के लोग भी बहुजन समाज का इतिहास सामने ला रहे हैं.”

‘मोक्षवन’ पर बातचीत
भगवानदास मोरवाल के उपन्यास ‘मोक्षवन’ पर पवन साव ने उपन्यासकार से बातचीत की. श्री मोरवाल ने कहा “मैं फ़ील्ड वर्क और डॉक्यूमेंटेशन दोनों तरह के शोध करता हूँ. इस रचना के दौरान मैंने वृंदावन के मंदिरों, घाटों और भजनाश्रमों को बहुत नज़दीक से देखा और वहाँ की विधवा औरतों की कहानी को दर्शाने का प्रयास किया है.” उन्होंने बताया कि “ऐसी रचना करने के पीछे मेरा यह दिखाने का उद्देश्य भी था कि किस तरह पूँजीवादी समाज में धार्मिक स्थलों का बाज़ारीकरण हो रहा है. वृंदावन जैसे स्थान पर श्रद्धावश कम, पिकनिक के लिए लोग ज़्यादा जाते हैं. ज़्यादातर लोग प्रेम मंदिर और इस्कॉन तक ही जाते हैं, हरिदास की समाधि वाले पुराने मंदिर जाने वालों की संख्या कम है.” उपन्यास के नामकरण के बारे में उन्होंने कहा, “इसमें मुक्ति की कामना में भटकती हुई उन विधवाओं की त्रासद कथा है, जो वहाँ मुक्ति या मोक्ष की कामना में आती है और अपना सारा जीवन उसी सफ़ेद लिबास में बिता देती हैं.”

‘तलाश ख़ुद की’ का लोकार्पण
एकता सिंह की किताब ‘तलाश ख़ुद की’ के लोकार्पण सत्र में ओम निश्चल और सुजाता शिवेन वक्ता रहे. यह पुस्तक भागते-दौड़ते जीवन की उधेड़बुन में रौशनी देखने का एक प्रयास है. एकता सिंह ने कहा, “जीवन एक ख़ूबसूरत उपहार है, इसे समझने का प्रयास करें और भरपूर जिएँ. कभी-कभी कुछ लोग जीवन से हताश होकर ख़ुदकुशी के मुक़ाम तक पहुँच जाते हैं, जो समाधान हो ही नहीं सकता. हम फ़िजिक्स, केमिस्ट्री, बायोलॉजी आदि विषयों को अपने जीवन का एक बड़ा हिस्सा दे देते हैं, कुछ क्षण हमें ख़ुद को जानने के लिए भी देना चाहिए. इस किताब के माध्यम से मैंने ख़ुद को तलाशने की ही कोशिश की है.”

कल के कार्यक्रम
कल 15 फरवरी को जलसाघर में विपिन गर्ग द्वारा संपादित किताब ‘चलो टुक मीर को सुनने’ पर मेहर आलम उनसे बातचीत करेंगे. सुरेंद्र प्रताप की पुस्तक ‘मोर्चेबंदी’ का लोकार्पण होगा. ‘कहानियाँ दूसरी दुनिया की’ किताब पर बातचीत होगी. राहुल श्रीवास्तव की किताब ‘पुई’ का लोकार्पण होगा. डॉ. करुणाशंकर उपाध्याय की पुस्तक ‘जयशंकर प्रसाद : महानता के आयाम’ पर अजित कुमार पुरी उनसे बातचीत करेंगे. अंतिम सत्र में यतीश कुमार की पुस्तक ‘बोरसी भर आँच : अतीत का सैरबीन’ का लोकार्पण होगा.

(विज्ञप्ति)


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