नीरज | आसान अल्फ़ाज़ में गहरा दर्शन
गोपालदास सक्सेना को ज़माना नीरज के नाम से पहचानता है. कुछ लोग उन्हें मंच के मार्फ़त पहचानते रहे तो कुछ फ़िल्मी गीतों के ज़रिये और ऐसा एक तबका हमेशा रहा जो उनके गीतों के आसान अल्फ़ाज़ और उनमें निहित दर्शन को बूझकर मगन होता. अब जब वह नहीं हैं, उनकी कविताएं उनके गीत रूह को तस्कीन बख़्शते हैं.
सन् 1924 में आज ही के दिन यानी 4 जनवरी को इटावा के पुरावली गांव में पैदा हुए नीरज ने शोहरत की बुलंदियां पाईं मगर संघर्ष भी बहुत किया. कम उम्र में ही पिता को खोने के बाद उन्हें फूफा के पास एटा जाना पड़ा. 1942 में एटा से हाई स्कूल करने के बाद घर की ज़िम्मेदारी संभालने वह इटावा लौटे. दिल्ली, अलीगढ़ और बंबई में रोज़गार के दिनों के तमाम शेड्स हैं वैसे ही जैसे कि उनकी कविताओं में.
‘दर्द दिया है’ (1956), ‘आसावरी’ (1963), ‘मुक्तकी’ (1958), ‘कारवां गुज़र गया’ (1964), ‘लिख-लिख भेजत पाती’ (पत्र संकलन), पंत-कला, काव्य और दर्शन (आलोचना) उनकी प्रमुख किताबों में शामिल हैं. हिन्दी फ़िल्मों में उनके गीत ख़ूब लोकप्रिय हुए. सर्वश्रेष्ठ गीत लेखन के लिए उन्हें लगातार तीन बार फ़िल्म फ़ेयर अवार्ड मिला था – काल का पहिया घूमे रे भइया! (चंदा और बिजली, 1970), बस यही अपराध मैं हर बार करता हूं (पहचान, 1971), ए भाई! ज़रा देख के चलो (मेरा नाम जोकर, 1972).
नीरज के कुछ गीत यहाँ आपके लिए…सुनिए और कमेंट बॉक्स में अपनी पसंद के गीत के बारे में बताइए भी.
फ़िल्म : कन्यादान | लिखे जो ख़त तुझे, वो तेरी याद में, हज़ारों रंग के नज़ारे बन गए
फ़िल्म : शर्मीली | खिलते हैं गुल यहां, खिल के बिखरने को
फ़िल्म : शर्मीली | ओ मेरी ओ मेरी ओ मेरी शर्मीली
फ़िल्म : शर्मीली | आज मदहोश हुआ जाए रे मेरा मन
फ़िल्म : प्रेम पुजारी | शोखियों में घोला जाए फूलों का शबाब
फ़िल्म : प्रेम पुजारी | रंगीला रे, तेरे रंग में यूं रंगा है मेरा मन
फ़िल्म : प्रेम पुजारी | फूलों के रंग से, दिल की क़लम से
फ़िल्म : गैम्बलर | दिल आज शायर है, गम आज नगमा है
फ़िल्म : मेरा नाम जोकर | ए भाई! ज़रा देख के चलो
फ़िल्म : पहचान | बस यही अपराध मैं हर बार करता हूं
और हम खड़े खड़े बहार देखते रहे कारवां गुज़र गया ग़ुबार देखते रहे
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