डॉ.राम जकाती को ग्लोबल अवॉर्ड
भारत में गिद्धों को विलुप्त होने से बचाने के लिए और उनके संरक्षण में महत्वपूर्ण योगदान के लिए ब्रिटेन की संस्था आरएसपीबी (रॉयल सोसाइटी फ़ॉर द प्रोटेक्शन ऑफ़ बर्ड्स) ने डॉ.राम जकाती को प्रतिष्ठित मेडल दिया है. आईएफ़एस डॉ.जकाती हरियाणा वन विभाग में चीफ़ वाइल्डलाइफ़ वॉर्डन रह चुके हैं.
डॉ.जकाती ने पशुओं के इलाज में इस्तेमाल होने वाली डाइक्लोफेनेक की वजह से गिद्धों की बेतहाशा मौत पर 1990 के दशक में ग़ौर किया गया. मालूम हुआ कि जिन पशुओं को डाइक्लोफेनेक दिया जाता था, उनके मरने के बाद भी वह उनके शरीर में बचा रहता. मृत जानवरों को खाने वाले गिद्धों के लिए जानलेवा साबित हुआ. इसका असर इतना व्यापक था कि देश भर में गिद्धों की तादाद घटकर एक प्रतिशत तक रह गई और देश में उनकी प्रजाति लुप्त होने का ख़तरा पैदा हो गया.
डॉ.राम जकाती ने न सिर्फ़ डाइक्लोफेनेक पर प्रतिबंध लगाने की मुहिम शुरू की, बल्कि गिद्धों के संरक्षण के लिए अभयारण्यों और प्रजनन केंद्रों का एक नेटवर्क बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. डाइक्लोफेनेक पर रोक तो सन् 2006 तक लग सकी मगर डॉ.जकाती ने पूरी कोशिश की कि प्रतिबंध लागू होने से पहले गिद्ध विलुप्त नहीं होने पाएं.
उन्होंने गिद्धों की घटती तादाद के कारणों की पहचान करके उस पर काम शुरू किया. उनके इस शुरुआती हस्तक्षेप को भारत में गिद्धों के संरक्षण की दिशा में बड़ा कदम माना जा सकता है. सेविंग एशियाज़ वल्चर्स फ़्रॉम एक्सटिन्क्शन (सेव) को अपनी इस मुहिम में साझेदारी के लिए राज़ी करने का श्रेय भी उन्हीं को जाता है.
आरएसपीबी की मुख्य कार्यकारी अधिकारी बेकी स्पाइट ने कहा, ‘जलवायु, प्रकृति संकट और मानव गतिविधियों का असर यह है कि पक्षियों की आम प्रजातियों के विलुप्त होने की नौबत आ रही है, लेकिन दुनिया भर में लोग और कुछ सरकारें इस स्थिति से लड़ रही हैं, इसलिए मुझे खुशी है कि हम डॉ.जकाती के महत्वपूर्ण काम का जश्न मना रहे हैं, उनकी ऊर्जा और संकल्प ने भारत में गिद्धों को विलुप्त होने से बचा लिया है.’
इस पुरस्कार पर प्रतिक्रिया देते हुए डॉ.जकाती ने कहा,‘यह प्रतिष्ठित पुरस्कार को पाकर मैं बहुत ख़ुश हूं. भारत में हम गिद्ध संरक्षण में तेजी से प्रगति इसलिए कर सके क्योंकि सन् 2000 की शुरुआत में हमारे पास एक उत्कृष्ट टीम थी.’ उन्होंने कहा, ‘मैं उस टीम की ओर से यह पुरस्कार स्वीकार करना चाहूंगा, जिसने भारतीय गिद्धों को विलुप्त होने से बचाने के लिए काम की एक ठोस नींव रखी.’ उन्होंने बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी के विभू प्रकाश और निकिता प्रकाश, आरएसपीबी के डेबी पेन और क्रिस बोडेन, कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के रीस ग्रीन और ज़ूलॉजिकल सोसाइटी ऑफ़ लंदन के एंड्रयू कनिंगम और इंटरनेशनल बर्ड ऑफ़ प्रे सेंटर की जेमिमा पैरी जोन्स से मिले सहयोग का ख़ास तौर पर ज़िक्र किया.
फ़ोटो | सेव वल्चर डॉट ओआरजी से साभार
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