रंगायन | राधेश्याम कथावाचक की रंग यात्रा
पंडित राधेश्याम कथावाचक की रंग यात्रा, उनकी शख़्सियत पर केंद्रित किताब ‘रंगायन’ 31 लेखों का संग्रह है. इसी महीने छपकर आई इस किताब में प्रेमचंद के लिखे ‘हिंदी रंगमंच और कथावाचक’, मधुरेश के ‘प्रेमचंद और राधेश्याम कथावाचक’, गोपीबल्लभ उपाध्याय के ‘राधेश्याम की नाट्य यात्रा’ और डॉ.हेतु भारद्वाज के लेख ‘जीवंत परंपरा के सूत्राधार राधेश्याम’ के साथ ही ख़ुद पंडित राधेश्याम के लिखे हुए तीन लेख भी शामिल हैं.
कथावाचक पर हरिशंकर शर्मा की यह तीसरी किताब है. दो और किताबों भ्रमर पत्रिका का शताब्दी वर्ष और कृष्णायनः जीवन की नींव पर वह अभी काम कर रहे हैं.
‘रंगायन’ पर क़रीब दो साल से काम रहे हरिशंकर शर्मा का कहना है कि पंडित राधेश्याम के साहित्य के पुनर्मूल्यांकन की ज़रूरत को ध्यान में रखते हुए उन्होंने ऐसे लेखों,समीक्षाओं और टिप्पणियों के संकलन पर ध्यान दिया है, जो उनके दौर में अलग-अलग वक़्त पत्र-पत्रिकाओं में छपी मगर जिज्ञासुओं को सहज उपलब्ध नहीं हैं. आज के लेखक-आलोचकों का नज़रिया भी इस किताब में शामिल है.
विशम्भरनाथ शर्मा कौशिक की लिखी हुई ‘परिवर्तन नाटक की समीक्षा’ और माधव शुक्ल की लिखी ‘मशरिकी हूर की समीक्षा’ राधेश्याम कथावाचक के नाटकों का मूल्यांकन करती हैं. रणवीर सिंह ने सामाजिक मुद्दों पर चिंता पर, जीवन सिंह ने ‘लोकप्रियता की कला और राधेश्याम का साहित्य’ और पंडित भोलानाथ शर्मा ने ‘एक रचनाकर्मी की सार्थकता का सवाल’ पर लिखी. अमेरिकी शिक्षक और शोधकर्ता पामेला की अभिमन्यु नाटक पर लिखी टिप्पणी का हिंदी अनुवाद भी किताब में शामिल है.
‘भ्रमर’ पत्रिका में छपे ‘अभिमन्यु’ और ‘मशरिकी हूर’ नाटकों के चित्रों से किताब का कवर डिज़ाइन किया गया है.
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