प्रकाश परब | गुरु नानक
सन् 1469 में वह कार्तिक पूर्णिमा का दिन था, तलवंडी गाँव में मेहता कालूचंद खत्री के घर नानक का जन्म हुआ. बाद में यही तलवंडी गुरु नानक के सम्मान में ननकाना कहलाया. दुनिया भर में घूमकर इक ओंकार और मनुष्यता के अपने विचार साझा करने वाले गुरु नानक की वाणी में उनका यही फ़लसफ़ा झलकता है. दुनिया भर में कार्तिक पूर्णिमा को गुरु का प्रकाश परब मनाया जाता है.
एक ओंकार सतिनाम
करता पुरखु निरभऊ
निरबैर, अकाल मूरति
अजूनी, सैभं गुर प्रसादि.
(भगवान एक है, जो सत्य है, जो निर्माण करता है, जो निडर है, जिसके मन में कोई बैर नहीं है, जिसका कोई आकार नहीं है, जो जन्म मृत्यु के परे हैं जो स्वयं ही प्रकाशित है. इनके नाम के जप से ही उसका आशीर्वाद मिलता है.)
गुरमुखि नादं गुरमुखि वेदं
गुरमुखि रहिआ समाई.
गुरू ईसरू गुरू गोरखु बरमा
गुरू पारबती माई.
(गुरु वाणी ही शब्द और वेद है.
प्रभु उन्हीं शब्दों और विचारों में निवास करते हैं.
गुरु ही शिव विष्णु ब्रह्मा और पार्वती माता हैं.
सभी देवताओं का मिलन गुरु के वचनों में ही प्राप्त है.)
मन मूरख अजहूँ नहिं समुझत
सिख दै हारयो नीत
नानक भव-जल-पार परै
जो गावै प्रभु के गीत.
(मन बहुत भावुक है, नासमझ है, रोज़ उसे समझा-समझा के हार गए हैं कि इस भव सागर से प्रभु या गुरु ही पार लगाते हैं. और वे उन्हीं के साथ हैं जो प्रभु की भक्ति में रमे हुए हैं.)
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