दस्तावेज़ | तस्वीर जो आम आदमी के संघर्ष की पहचान बन गई
माइग्रेंट मदर | डोरोथिया लांग
1936 की यह फ़ोटो महामंदी (ग्रेट डिप्रेशन) के दौर में आम अमेरिकी आदमी के संघर्ष की पहचान बन गई. डोरोथिया ने फ्लोरेंस और उनके बच्चों की छह तस्वीरें बनाई थीं. यों एफ़एसए की ओर से डोरोथिया समेत दूसरे और फ़ोटोग्राफ़र्स ने कुल 1.60 लाख तस्वीरें बनाई थी मगर दुनिया भर में पहचान सिर्फ़ एक तस्वीर ‘माइग्रेंट मदर’ को ही मिली. इस तस्वीर को महामंदी के दिनों का सटीक इंसानी चेहरा माना गया.
डोरोथिया ने यह तस्वीर केलीफ़ोर्निया के निपोमो इलाक़े से गुज़रते वक्त बनाई थी. बाद में उन्होंने लिखा – वहां खेत मजदूरों का एक कैंप था, जो मटर तोड़ने का काम मिलने के इरादे से आए थे मगर मटर की फ़सल चौपट हो चुकी थी और इस तरह काम मिलने की उनकी उम्मीदें भी. अपने बच्चों के साथ बैठी एक भूखी और हताश मां को देखकर मैं चुंबक की तरह उनकी तरफ़ खींची चली गई. मुझ याद नहीं कि मैंने अपने वहां आने और फ़ोटो खींचने के बारे में उन्हें क्या समझाया मगर यह याद है कि उन्होंने मुझसे कोई सवाल नहीं किया. उनकी तरफ़ बढ़ते हुए एक ही एंगिल से मैंने उनकी छह तस्वीरें बनाईं. इन्हीं में से एक को ‘माइंग्रेट मदर’ कहा गया.
इस तस्वीर के बारे में उन्होंने फ़ील्ड नोट्स में लिखा – सात बच्चों की मां. उम्र 32 साल. पिता केलीफ़ोर्निया के ही हैं. मटर तोड़ने वालों के कैंप में बेसहारा…क्योंकि मटर की फ़सल ख़राब हो चुकी है. मैंने उनका नाम या उनके हालात के बारे में कुछ नहीं पूछा. खाना जुटाने के लिए इन लोगों ने अपनी मोटर के टायर बेचे हैं. निपोमो, केलिफ़ोर्निया. डोरोथिया ने ये फ़ोटो पुनर्वास प्रशासन को भेजने के साथ ही सैन फ़्रैसिस्को न्यूज़ को भी भेज दिए थे. यह फ़ोटो छपने के बाद सरकार ने वहां कैंप में रह रहे ढाई-तीन हज़ार मजदूरों के लिए बीस हज़ार पाउण्ड राशन भेजा. हालांकि तस्वीर के क़िरदार तब तक कैंप से जा चुके थे.
मगर तस्वीर में दिखाई देने वाली महिला के बारे में चालीस वर्षों तक किसी को कुछ मालूम नहीं था. सन् 1978 में फ़्लोरेंस थॉम्पसन ने एक अख़बार के एडिटर को ख़त लिखा कि यह उनकी तस्वीर है और यह भी कि इस फ़ोटो के एवज में उन्हें कभी कुछ नहीं मिला. उनके इस ख़त के हवाले से एपी की ख़बर में कहा गया – बक़ौल फ़्लोरेंस, अच्छा होता कि उन्होंने मेरी फ़ोटो नहीं खींची होती. बदले में हमें तो एक पेनी भी नहीं मिली. उन्होंने मेरा नाम भी नहीं पूछा था. वायदा किया था कि मेरी फ़ोटो किसी नहीं बेचेंगी. मुझे फ़ोटो की कॉपी भेजने को भेजने को कहा था, मगर नहीं भेजी.
हालांकि डोरोथिया तब एफ़एसए के लिए काम कर रही थीं और सिवाय शोहरत के ख़ुद उन्हें इस तस्वीर से कोई कमाई नहीं हुई.
फ़्लोरेंस ने यह भी कहा कि उन लोगों ने गाड़ी का टायर नहीं बेचा था, जैसा कि डोरोथिया के ब्योरे में कहा गया. मैं यह नहीं कहती कि उन्होंने झूठ बोला मगर मुमकिन है कि उनके ज़ेहन के दूसरी कहानियां आपस में मिल गई हों या फिर फ़ोटो को ज्यादा महत्व देने के लिए उन्होंने अपनी कल्पना से यह कहानी गढ़ ली.
अगस्त, 1983 में बीमार पड़ने के बाद फ़्लोरेंस को अस्पताल में भर्ती कराया गया. उनके परिवार की आर्थिक मदद की अपील के जवाब में उनके इलाज के लिए 25 हज़ार डॉलर इकट्ठे हो गए थे. 16 सितम्बर को उनकी मृत्यु हो गई. उनकी कब्र पर लगे पत्थर पर लिखा गया – फ़्लोरेंस लिओना थॉम्पसन. माइग्रेंट मदर – अ लेजेंड ऑफ द स्ट्रेंथ ऑफ अमेरिकन मदरहुड.
उन्हीं दिनों एक इंटरव्यू में उनके बेटे ट्राय ने कहा था कि मां के इलाज के लिए मदद के साथ ही हमें दो हज़ार चिट्ठियां भी मिलीं. मेरी मां और हम लोग ज़िंदगी भर उस फ़ोटो को अपमान और शर्मिंदगी की वजह मानते रहे, अभिशाप समझते रहे. मगर इन चिट्ठियों ने हमें एक ख़ास क़िस्म के गर्व का अहसास कराया है.
अब तक कितने ही पोस्टर, टी-शर्ट, किताबों-पत्रिकाओं और डाक टिकट पर यह फ़ोटो छप चुकी है.
सैन फ़्रैंसिस्को में डोरोथिया का पोर्ट्रेट स्टुडियो हुआ करता था, सन् 1919 से. मगर उन दिनों बेघर और बेरोज़गार लोगों को खाने की क़तारों में खड़ा देखकर वह इतना द्रवित हुई कि उन्होंने स्टुडियो छोड़कर उन लोगों की तस्वीरें बनाना शुरू कर दिया. इसी के चलते वह फॉर्म सिक्योरिटी एडमिनिस्ट्रेशन (एफ़एसए) के संपर्क में आईं. एफ़एसए का काम लोगों के जागरूकता पैदा करने और ग़रीब किसानों की मदद करना था. एफ़एसए अमेरिकी लोगों पर महामंदी के असर और लोगों के संघर्षपूर्ण जीवन को तस्वीरों के ज़रिये डॉक्युमेंट करा रहा था ताकि प्रभावित लोगों की दयनीय स्थिति की तरफ़ देश का ध्यान खींचा जा सके और इसकी पुनरावृत्ति से बचा जा सके. इस तस्वीर को मिली शोहरत की बदौलत डोरोथिया को बेहतरीन डॉक्युमेंट्री फ़ोटोग्राफ़र का ख़िताब मिला मगर वह ख़ुद यह विशेषण पसंद नहीं करती थीं. उनका मानना था कि फ़ोटोग्राफ़र के तौर पर समाज के लिए कुछ करने की उनकी तीव्र इच्छा और उत्साह का मान इससे कुछ कमतर महसूस होने लगता है.
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