मेजर शैतान सिंह | रेज़ांग ला की लड़ाई के नायक

  • 9:57 pm
  • 18 November 2020

18 नवंबर 1962 को रेज़ांग ला में हुई लड़ाई भारत-चीन युद्ध का अकेला ऐसा अविस्मरणीय आख्यान है, जिसे सुनहरे अक्षरों में दर्ज किया गया. मेजर शैतान सिंह इस लड़ाई के नायक हैं, जिनके नेतृत्व में कुमाऊं रेजिमेंट की 13वीं बटालियन के जवानों ने दुश्मनों के तेरह सौ जवान मार गिराए थे. मेजर शैतान सिंह और 114 भारतीय जवान इस लड़ाई में शहीद हुए. उन दिनों जब मेडल कम ही दिए जाते थे, इस एक कंपनी को एक परमवीर चक्र, पांच वीर चक्र और चार सेना पदक मिले थे.

पिछली रात को तेज बर्फ़ीले तूफ़ान के दौरान चीनी फ़ौजी रेज़ांग ला के क़रीब भारतीय सरहद के अंदर आकर छिप गईं. 18 नवंबर को 3.30 बजे तड़के चीनी सैनिकों ने पहले प्लाटून नंबर आठ और थोड़ी ही देर बाद प्लाटून नंबर सात पर हमला कर दिया. सुबह करीब पांच बजे मौसम ठीक होने पर चीनी सैनिकों ने अचानक सामने आकर भारतीय फौज पर हमला बोल दिया. चीनी सैनिकों के मुकाबले यहां भारतीय सैनिक कम थे, इसके अलावा गोला-बारूद भी बहुत नहीं था.

यहां तैनात मेजर शैतान सिंह की कमान में सी कंपनी रेज़ांग ला में एक स्थान पर थी, और पांच प्लाटून पोस्ट इसके बचाव में तैनात थीं. उनके साथ कुल 124 सैनिक थे. सुबह के हल्के उजाले में भारतीयों फ़ौजियों ने दुश्मन को सामने पाया तो लाइट मशीन गन, राइफल्स, मोर्टार और ग्रेनेड से उन पर हमला कर दिया और कई चीनी सैनिक मार गिराए. 5.40 बजे चीनी सेना ने फिर मोर्टार से हमले करने शुरू कर दिए. क़रीब 350 चीनी सैनिकों ने आगे बढ़ना शुरू किया।

सामने से किए गए हमले नाकाम होने के बाद क़रीब चार सौ चीनी सैनिकों ने पीछे से हमला किया. साथ ही 8वीं प्लाटून पर मशीन गन और मोर्टार से पोस्ट के तार बाड़ के पीछे से हमला किया गया और 7वीं प्लाटून पर 120 चीनी सैनिकों ने पीछे से हमला किया. भारतीयों ने मोर्टार के गोले से मुकाबला किया और कई चीनी सैनिकों को मार दिया. आख़िरी 20 भारतीय सैनिक जीवित बचे तो उन्होंने बंकरों से बाहर निकल कर चीनी सैनिकों से सीधी लड़ाई की. हालांकि जल्दी ही चीनी सैनिकों ने उन्हें घेर लिया और अंततः 7वीं और 8वीं प्लाटून का कोई सैनिक जीवित नहीं बचा.

युद्ध के दौरान मेजर शैतान सिंह लगातार अपनी पोस्टों के बीच आ-जाकर जवानों का हौसला बढ़ाते रहे. इसी दौरान वह गंभीर रूप से घायल हो गए थे और मोर्चे पर ही उन्होंने प्राण त्याग दिए. उन्हें मरणोपरांत देश के सर्वोच्च वीरता पुरस्कार परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया. इस लड़ाई में शहीद हुए 114 भारतीय जवानों में से अधिकांश रेवाड़ी के थे.
बर्फीली पहाड़ियों पर लड़ा गया यह युद्ध दुनिया के सर्वोत्तम युद्धों में से एक माना जाता है.


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