‘बाज़ी’ | ज़ोरदार रंगभाषा और प्रभावी अभिनय की अभिव्यक्ति

  • 10:16 pm
  • 25 August 2023

प्रयागराज | ‘बैकस्टेज’ के कलाकारों ने शुक्रवार को नाटक ‘बाज़ी’ की प्रस्तुति दी. असरदार रंगभाषा और प्रभावी अभिनय के साथ ही स्पेस के ख़ूबसूरत प्रयोग के लिए दर्शकों ने नाटक को ख़ूब सराहा. यह प्रस्तुति एंटोन चेखव की 1889 में लिखी कहानी ‘द बेट’ पर आधारित है, जिसका नाट्य रूपांतरण अविनाश चंद्र मिश्र ने किया है. यह नाट्य प्रयोग मृत्युदंड और आजन्म कारावास के बीच दिलचस्प कथा विन्यास, कहन और बहस के साथ आगे बढ़ता है और जीवन की अर्थवत्ता की बात करते हुए पूरा होता है. प्रवीण शेखर के निर्देशन में यह प्रदर्शन बैकस्टेज प्लेहाउस, जॉर्ज टाउन में हुआ.

नाटक की कथावस्तु और प्रयोग की संवेदना में मानवीयता का तत्व इतना गहरा गुंथा हुआ है कि बहुत त्रासद स्थितियों में भी सूरज की रोशनी और सुंदरता के शाश्वत गुणों को इसमें देखा गया है. नाटक अति सूक्ष्म मानवीय संवेदनाओं, जीवन की छोटी-मामूली बातों, निर्मम सच्चाइयों, ज़िंदगी में आस्था और वेदना की सहज अभिव्यक्ति है.

‘बाज़ी’ जीवन की प्रकृति और मूल्यों के बारे में एक शर्त है. एक अमीर गोयल मानते हैं कि मृत्युदंड आजीवन कारावास से अधिक मानवीय और नैतिक है. इसके उलट एक युवा वकील श्री सक्सेना का तर्क है कि बिल्कुल नहीं से कहीं बेहतर है जीवित रहना, किसी भी तरह जीना अपने आप में मरने से बेहतर है. तमाम तर्कों के बाद दोनों इस बात पर सहमत होते हैं कि वकील अगर दस साल का कारावास काट ले तो गोयल उसे एक बड़ी रक़म देगा, और यही वह बाज़ी है. हालांकि, तकनीकी रूप से गोयल की जीत होती है, लेकिन नैतिक जीत युवा वकील की होती है. वह जीवन का अर्थ, स्वर्ग, नर्क से जुड़े तमाम सवाल छोड़ जाता है.

बाज़ी नाटक के कुछ दृश्य.

अपने कारावास की अंतिम रात को लिखे गए पत्र में, वकील उन सभी अनुभवों और ज्ञान को प्रकट करता है जो उसने पिछले दस वर्षों के दौरान पढ़कर हासिल किया है और फिर वह मृत्यु के आगे इसे बेकार, क्षणभंगुर और भ्रामक ठहराता है. अपने इसी विश्वास को ज़ाहिर के लिए, वकील शर्त के अपने दस करोड़ रुपये त्याग देता है और रिहा होने से कुछ मिनट पहले ही चला जाता है. ‘बाज़ी’ का अंत लोगों को सोचने के लिए छोड़ देता है कि जीवन का अर्थ क्या है? क्या जीवन का कोई अर्थ है? क्या स्वर्ग का कोई अर्थ है?

कथा और नाटक की बुनावट को सुंदर तरीके से प्रस्तुत करते इस नाटक में सतीश तिवारी (गोयल), अमर सिंह (वकील), प्रत्यूष वर्सने (पत्रकार तनेजा), स्मृति श्रीवास्तव (श्रीमती गोयल) ने अपनी चरित्रों को बख़ूबी जिया. रामसेवक की भूमिका में मोहित कुमार ने भी प्रभावित किया. प्रकाश योजना टोनी सिंह ने की, कहन से एकरूप होता संगीत अमर सिंह का, वेशभूषा परिकल्पना स्मृति श्रीवास्तव और वातावरण निर्माण सिद्धार्थ पाल ने किया. सहायक निर्देशन नम्रता सिंह, प्रगति रावत, विविध नेपथ्य कर्म सुदेश पांडेय, अनुकूल सिंह, अनुज कुमार, दिलीप श्रीवास्तव, अनुराग तिवारी आदि ने किया.

इसी नाटक का दूसरा शो कल यानी 26 अगस्त को शाम सात बजे बैकस्टेज प्ले हाउस में ही होगा.

(विज्ञप्ति)


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