रामजी राय की किताब ‘मुक्तिबोध:स्वदेश की खोज’ का विमोचन

रायपुर | लेखक और विचारक रामजी राय ने कहा कि फैंटसी भी यथार्थ को जानने का एक टूल है. सिर्फ़ कलाकारों की नहीं, सबकी अपनी-अपनी फैंटसी होती है. श्री राय यहां वृंदावन हॉल में अपनी किताब ‘मुक्तिबोध:स्वदेश की खोज’ के विमोचन के मौक़े पर बोल रहे थे. मुक्तिबोध के बेटों रमेश मुक्तिबोध, गिरीश मुक्तिबोध, दिलीप मुक्तिबोध ने किताब का विमोचन किया. आयोजन जन संस्कृति मंच की रायपुर इकाई ने किया.

रामजी राय ने मुक्तिबोध की कर्मभूमि छत्तीसगढ़ में किताब के विमोचन को उपलब्धि बताया. कहा कि ‘समकालीन जनमत’ की प्रबंध संपादक मीना राय के सुझाव से यह संभव हो सका. अपने वक्तव्य के दौरान बेहद भावुक हो उठे रामजी राय ने कहा कि अगर मुक्तिबोध के समूचे लेखन को खोजने का काम रमेश मुक्तिबोध ने नहीं किया होता तो आज उनका समग्र लेखन हमारे सामने नहीं आ पाता. कहा कि फैंटसी भी यथार्थ को जानने का एक टूल होता है. सबकी अपनी-अपनी फैंटसी होती है न कि सिर्फ़ कलाकारों की. लेनिन ने कहा था- तुमने हथियार साधू से लिया या डाकू से, यह महत्व नहीं रखता, इसका इस्तेमाल कहां करोगे ये मायने रखता है.

उन्होंने कहा कि मुक्तिबोध की भाषा पर भी काम होना चाहिए. कहा कि आज़ादी के समय से ही फासीवाद की झलक दिखने लगी थीं. आज फासीवाद अपने सबसे वीभत्स रुप में हमारे सामने हैं. फासीवाद को लेकर मुक्तिबोध की चिंता और अधिक जटिल यथार्थ की तरफ बढ़ रही है. हम केवल तर्कों से फासीवाद को हरा नहीं पाएंगे. इसे समझना होगा. इसके प्रतिवाद के लिए धरती पर कान लगाकर सुनना होगा.

इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर और कवि बसंत त्रिपाठी ने कहा कि मुक्तिबोध पर यह किताब हमारे समय की ज़रूरी किताब है. मुक्तिबोध के समूचे लेखन को लेकर अलग-अलग तरह के निष्कर्ष निकाले जाते रहे हैं, लेकिन पहली बार राम जी राय ने अपनी पुस्तक में नई व्याख्या की है, जिसमें मुक्तिबोध का प्रस्थान बिंदु, उनकी चिंतन धारा और उनकी सोच शामिल है.

छत्तीसगढ़ साहित्य परिषद के अध्यक्ष ईश्वर सिंह दोस्त ने कहा कि मूल्यांकन के बगैर आलोचना नहीं हो सकती और साहित्य का मूल्यांकन सिद्धांत के बग़ैर नहीं हो सकता. राम जी राय की यह किताब गहरी सैद्धांतिक बहस का पुनर्वास करती है. किताब मनोविश्लेषण और मार्क्सवाद के ताज़ा-तरीन सिद्धांतों के मार्फ़त मुक्तिबोध की फैटेंसी की अभिनव और बहस तलब व्याख्या को सामने लाती है.

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रणय कृष्ण ने कहा कि मुक्तिबोध के काम और उनके मूल्यबोध से स्पष्ट आत्मीयता रख पाना बेहद जटिल है, लेकिन राम जी राय ने यह काम कर दिखाया है. उन्होंने किताब के कई लेखों का जिक्र किया. कहा कि नक्सलबाड़ी और खाड़ी देश सहित अन्य लेखों को पढ़कर आज के फासीवाद को समझने की नई दृष्टि विकसित होती है. उन्होंने कहा कि अंतःकरण का जो मनोभाव मुक्तिबोध के पास है, वह इस किताब में उपस्थित हैं. तत्व विकास, अभिव्यक्ति का संघर्ष. अगर हिंदुस्तान में फासीवाद से लड़ना है तो व्यापक जनसंघर्ष की आवश्यकता होगी.

युवा आलोचक प्रेम शंकर ने मुक्तिबोध की रचनाओं के जरिए रामजी राय की पुस्तक की ख़ास बातों को रेखांकित किया तो आलोचना के संपादक आशुतोष ने कहा कि इस किताब पर आने वाले समय में ज़बरदस्त चर्चा होगी. यह किताब बताती है कि मुक्तिबोध को कैसे और क्यों पढ़ा जाए. किताब मुक्तिबोध को लेखकों की राजनीति से अलग करती है. उन्होंने कहा कि फासीवाद से लड़ने के लिए संसदीय लोकतंत्र के बाहर जाने की ज़रूरत क्यों है, इसे बेहद शिद्दत से इस किताब में महसूस किया जा सकता है.

अध्यक्षीय वक्तव्य में आलोचक सियाराम शर्मा ने मुक्तिबोध को समय के पहले का कवि निरूपित किया. उन्होंने कहा कि मुक्तिबोध संकट को पहचानते थे इसलिए अपनी कविताओं में प्रतिरोध भी रच देते थे. उन्होंने कहा कि मुक्तिबोध की कविता हमेशा एक कार्यकर्ता बने रहने की मांग करती है चूंकि यह किताब भी जनता के लिए हैं, इसलिए बेहद ख़ास है. मुक्तिबोध जनता से बहुत प्यार करते थे. हम चाहे कहीं भी चले जाए…अंत में हमको जनता के पास जाना ही होगा. जनता के पास ही सभी समस्याओं का समाधान है. उसमें अग्नि, उष्मा व प्रकाश विद्यमान है.

स्वागत वक्तव्य में जन संस्कृति मंच की रायपुर इकाई के अध्यक्ष आनंद बहादुर ने बताया कि तीन मई को जब रायपुर इकाई का गठन हुआ तब यह बात शिद्दत से उठी थीं कि सांप्रदायिकता को बढ़ावा देने वाली राजनीति के ख़तरनाक दौर में जब लेखकों और कलाकारों को मुखर होकर बोलने की सबसे ज़्यादा ज़रूरत है, वे ख़ामोश हैं. जन संस्कृति मंच ने तय किया है कि वह ज़रूरी हस्तक्षेप जारी रखेगा.

चार जून को हुए इस समारोह की शुरुआत अजुल्का सक्सेना और वसु गंधर्व के गायन से हुई. दोनों ने मुक्तिबोध की कविता पर शास्त्रीय प्रस्तुति दी. इस मौके पर नवारुण प्रकाशन और जन संस्कृति मंच की तरफ़ से किताबों और पोस्टर की प्रदर्शनी भी लगी. कार्यक्रम में साहित्यकारों और संस्कृतिकर्मियों की शिरकत तो थी ही, बड़े पैमाने पर जन-भागीदारी भी रही.

कार्यक्रम का संचालन युवा आलोचक भुवाल सिंह ने किया जन संस्कृति मंच के सचिव मोहित जायसवाल ने आभार जताया.
(विज्ञप्ति)


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