काकोरी के शहीदों की याद

  • 6:05 pm
  • 19 December 2022

हिंदुस्तान की जंगे-आज़ादी में आज की तारीख़ ख़ासतौर पर अहम रही है. काकोरी में सरकारी ख़ज़ाना लूटने के इल्जाम में जिन चार लोगों को सज़ा-ए-मौत मिली, उनमें से तीन अशफ़ाक़ उल्ला, रामप्रसाद बिस्मिल और रोशन सिंह को 1927 में आज ही के दिन फांसी दी गई. राजेंद्र लाहिड़ी की फांसी का दिन भी 19 दिसंबर ही तय था मगर जनविद्रोह के डर से उन्हें दो रोज़ पहले ही यानी 17 दिसंबर को गोंडा जेल में फांसी पर लटका दिया गया था.

रामप्रसाद बिस्मिल
जन्म | शाहजहांपुर | 11 जून,1897
शहादत | गोरखपुर | 19 दिसंबर,1927

सन् 1927 में आज की तारीख़ आज़ादी के इस सेनानी की शहादत का दिन था. गोरखपुर जेल की वह कोठरी, बिस्मिल जहाँ अंतिम दिनों में रहे, जेल प्रशासन ने उनकी स्मृति में सहेजकर रखी है. इसी तरह शाहजहांपुर में आर्य समाज मंदिर की कोठरी, जहां बिस्मिल रहते और जो दूसरे कई क्रांतिकारियों से मिलने का ठिकाना थी, सहेजकर रख छोड़ी गई है. काकोरी में उनके नाम पर डिग्री कॉलेज है.
सुधीर विद्यार्थी ने तुर्की के दियारबाकिर सूबे में बिस्मिल की निशानी के बारे में विस्तार से लिखा है. बिस्मिल और कमाल पाशा के बीच क्रांतिकारी चेतना के रिश्ते और एक दूसरे के प्रति आदर की अभिव्यक्ति अलग-अलग तरह से हुई है. बिस्मिल ने अपनी आत्मकथा में साम्राज्य विरोधी संघर्ष के लिए कमाल पाशा का ज़िक्र किया है.
अतातुर्क कमाल पाशा ने क़ुर्द विस्थापितों को बसाने के लिए बने नए ज़िले और शहर का नामकरण बिस्मिल की स्मृति में किया था. सन् 1936 में दियारबाकिर में बिस्मिल ज़िला बना, जिसका मुख्यालय बिस्मिल शहर है.

अशफ़ाक़ उल्ला ख़ां
जन्म | शाहजहांपुर | 22 अक्टूबर,1900
शहादत | फ़ैज़ाबाद |10 दिसंबर, 1927

शाहजहांपुर ने अपने नायकों की स्मृतियों को काफ़ी हद तक संभालकर रखा है. अशफ़ाक़ उल्ला की मज़ार भी इनमें शामिल है. कुछ बरस पहले तक उनकी मज़ार के पीछे लगे पत्थर पर कई तारीख़ें दर्ज़ मिलती थीं….22 अक्टूबर 1900, 9 अगस्त 1925, 19 दिसंबर 1927. पहली तारीख़ उनके जन्म की, दूसरी काकोरी कांड का दिन और तीसरी उनकी फांसी की तारीख़. पत्थर पर सबसे नीचे स्वाधीनता रजत जयंती की तारीख़ के साथ शहर कांग्रेस कमेटी, शाहजहांपुर दर्ज मिलता था.
शहीदे-ए-वतन अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ वारसी हसरत की मज़ार अब संगमरमर के एक हॉल में है. साथ में एक पार्क और बाहर गेट पर उनके अश’आर के साथ संक्षेप में जीवन परिचय भी.

ठाकुर रोशन सिंह
जन्म | शाहजहांपुर | 22 जनवरी, 1892
शहादत | इलाहाबाद | 19 दिसंबर, 1927

उम्र और अनुभव में बाक़ी साथियों से बड़े और पक्के निशानेबाज़ रोशन सिंह बिस्मिल के सहयोगी थे. बरेली गोली-काण्ड में दो साल की सज़ा भी काट चुके थे. काकोरी की लूट में हालांकि वह सीधे शरीक नहीं थे मगर इस मामले में उन्हें भी फांसी हुई.

राजेंद्र नाथ लाहिड़ी
जन्म | पाब्ना | 29 जून, 1901
शहादत | गोंडा | 17 दिसंबर, 1927

काकोरी के क्रांतिकारियों में सबसे कम उम्र राजेंद्र नाथ लाहिड़ी पाब्ना (अब बांगलादेश में) ज़िले के गांव मोहनपुर में जन्मे थे. पढ़ाई के लिए बनारस आ गए राजेंद्र नाथ वहां शचींद्रनाथ सान्याल के संपर्क में आए. प्रतिबद्धता और कौशल के चलते जल्दी ही वह हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन की बैठकों में शामिल होने लगे थे. उन दिनों वह बीएचयू में एम.ए. (इतिहास) में पहले साल के छात्र थे, जब बिस्मिल ने उन्हें काकोरी की योजना में शामिल किया था.

वतन की राह में वतन के नौजवां शहीद हो
पुकारते हैं ये ज़मीन-ओ-आसमां शहीद हो.

राजा मेहदी अली ख़ान का लिखा हुआ यह गीत मोहम्मद रफ़ी ने ‘शहीद’ फ़िल्म में गाया है.

शहीद अरबी ज़बान से हिन्दुस्तानी में आया हुआ लफ़्ज़ है, जिसके मायने हैं – वह जो धर्मयुद्ध में शत्रु से लड़ता हुआ मारा गया हो. इसके उर्दू समानार्थी – जाँ-निसार, वसीक़ा और क़ुर्बान हैं. हिन्दी में इसका अर्थ हुतात्मा, बलिदानी, युद्ध मृत या वीरगति पाने वाला शख़्स हैं.
इसी से बने शहीदे आज़म, शहीदे वतन, शहीदे कर्बला और शहीदे इश्क़ भी अमल में हैं. अलबत्ता, शहादत के मायने बलिदान देना तो है ही, साक्षी और गवाह भी हैं.

और यही एक लफ़्ज़ शहीद जब अकबर इलाहाबादी को बरतना होता है तो देखिए कि मायने किस तरह बदल जाते हैं,
अकबर दबे नहीं किसी सुल्ताँ की फ़ौज से
लेकिन शहीद हो गए बीवी की नौज से.

एक शेर और देखिए, शायर का नाम हालांकि मालूम नहीं,
क़ातिल तिरी गली भी बदायूँ से कम नहीं
जिस के क़दम क़दम पे मज़ार-ए-शहीद है.

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