शब्द पर्व | ‘वैकल्पिक विन्यास’ के हवाले से हबीब तनवीर के रंगमंच पर विमर्श

  • 10:12 pm
  • 1 September 2022

प्रयागराज | इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में बृहस्पतिवार को ‘शब्द पर्व’ में अमितेश कुमार की किताब ‘वैकल्पिक विन्यास’ पर परिचर्चा की गई. यह किताब आधुनिक हिंदी रंगमंच और हबीब तनवीर के रंगकर्म पर विस्तार से बातचीत करती है. आज से हबीब तनवीर का जन्मशती वर्ष भी शुरू हो रहा है. इस कार्यक्रम का आयोजन बैकस्टेज और रज़ा फाउंडेशन की ओर से किया गया.

रंगकर्मी प्रवीण शेखर ने स्वागत वक्तव्य में रंगमंच की संस्था बैकस्टेज और रज़ा फाउंडेशन के बारे में मेहमानों को बताया. कार्यक्रम का संचालन कर रहे दीना नाथ मौर्य ने कहा कि यह किताब रंगमंच की परम्परा की शिनाख़्त करती है. यह रंगमंच के माध्यम से खुद को तलाशने की कोशिश है. उन्होंने संस्कृत, पारसी और लोक की नाट्य परंपराओं, हिंदी के साथ-साथ क्षेत्रीय रंगमंच, रंगमंच पर औपनिवेशिक दौर का प्रभाव तथा नाटक में विविधता के वैशिष्ट्य पर विस्तार से अपनी बात रखी.

श्री मौर्य ने कहा कि जड़ों से जुड़ने का मतलब जड़ हो जाना नहीं है. हबीब तनवीर अपने विचारों और कर्म से जड़ परम्परा पर प्रहार करते हैं. वे विषय और शिल्प की दृष्टि से प्रयोगशील थे. लोक की विशेषताओं को अपने नाटकों में समाहित करके उन्होंने एक नई रंग परम्परा विकसित की.

रायपुर से आए अभिनेता और बस्तर बैंड के संस्थापक अनूप रंजन पाण्डेय ने ‘वैकल्पिक विन्यास’ पर बात करते हुए हबीब तनवीर को न सिर्फ भारतीय रंगमंच का उस्ताद बल्कि विश्व रंगमंच का महागुरु बताया. उन्होंने रतन थियाम की लिखी हुई भूमिका से अपनी बात शुरू की. कहा कि यह किताब भारतीय रंगमंच की परम्परा से जुड़ने की कोशिश करती है. इसकी भाषा सरल है. अपनी बात कहने के लिए यह क़िस्सागोई का तरीका अपनाती है. इसमें नाट्य परम्परा को विकसित करने वाले लोक कलाकारों की भी पड़ताल की गई है. उन्होंने कहा कि हबीब तनवीर समकालीन हिंदी रंगमंच की नई भाषा गढ़ते हैं. उनकी भाषा में व्याकरण भी है और उन्मुक्तता भी.

शब्द पर्व में शिरकत के लिए भोपाल से आईं मूर्तिकार और संस्कृतिकर्मी सुश्री शंपा शाह ने ‘वैकल्पिक विन्यास’ पर बात करते हुए कहा कि अमितेश की यह किताब परम्परा शील रंगमंच के गुमनाम रंगकर्मियों को समर्पित है. इन अनाम लोगों के प्रति उनमें गहरी संवेदना का भाव है. शहरों में हो रहे वर्तमान रंगकर्म से असंतुष्टि ने उन्हें वैकल्पिक रंगमंच की तलाश के लिए प्रेरित किया. उन्होंने इसे आधुनिकता का लक्षण बताया. उन्होंने हबीब तनवीर के रंगकर्म की तुलना घास के गुलदस्ते से की. उनके अनुसार यह किताब क्लासिक और लोक परम्परा के बीच लेन-देन को भी दर्शाती है.

समालोचक और हिंदी विभाग के अध्यक्ष प्रो.प्रणय कृष्ण मानते हैं कि ‘वैकल्पिक विन्यास’ ने अकादमिक और रंगमंच की दुनिया के बीच पुल का काम किया है. दीवार की दरारों से जिस तरह कोई पेड़ उग आता है, उसी तरह यह किताब अकादमिक दुनिया की दीवारों के बीच उग आई है. इसमें हिंदी रंगमंच और अन्य भारतीय रंगमंच के आत्मसंघर्ष, भारतीय रंगमंच के खोज की दिशाओं तथा रंग-भाषा पर विस्तार से बात की गई है. प्रो.प्रणय ने कहा कि यह किताब उपनिवेशवाद के दौर में भारतीयता के निर्माण को भी बताती है. उनके अनुसार शास्त्र और लोक के द्वंद्व से भारतीयता का निर्माण हुआ है. इस किताब में हबीब तनवीर के प्रति पूज्य भाव नहीं है. अमितेश ने उनके अंतर्विरोधों और विफलताओं को भी उजागर किया है.

सुश्री नगीन तनवीर ने इस किताब पर अपने विचार व्यक्त किए. भोपाल से आईं सुश्री तनवीर गायिका और संस्कृति कर्मी हैं. उन्होंने कहा कि इस सृष्टि में जो कुछ हो रहा है, सब ड्रामा है. कला का लक्ष्य है कि जीवन को परिवर्तित कर दे. असली तरक्की तब होगी जब क्वालिटी ऑफ़ लाइफ़ बढ़े. उनके अनुसार हबीब तनवीर के नाटक नदी के बहाव जैसे थे. उनके अपने एस्थेटिक्स थे तथा विचारों की क्लैरिटी (स्पष्टता) थी. सुश्री तनवीर ने रंगमंच के लिए अपने जड़ों से कनेक्ट होने की बात कही तथा एकाग्रता और साइलेंस पर बल दिया.

सुश्री तनवीर ने अपना वक्तव्य पूरा करने के बाद ‘चोला माटी के हे राम’ गीत भी सुनाया.

डॉ.बसंत त्रिपाठी, डॉ.अमरेंद्र कुमार, डॉ.बृजेश पांडेय, डॉ.लक्ष्मण गुप्ता, डॉ.सुजीत कुमार सिंह, डॉ.विनम्र सेन सिंह ने अतिथियों को स्मृति चिह्न और पौधा भेंट किया. बारां फ़ारुक़ी, स्मृति, प्रो.अनीता गोपेश, प्रो.संतोष भदौरिया, आनंद मालवीय, अतुल यदुवंशी, मधु शुक्ला, अजीत बहादुर, सुरेंद्र राही, अनिल मिश्रा, राजेश कुमार सिंह, लालसा यादव, अनीता त्रिपाठी, प्रो.सूर्यनारायण, मीना, उमेश चंद्रा सतीश प्रजापति, श्लेष गौतम भी कार्यक्रम में उपस्थित रहे.

यूनिवर्सिटी थिएटर के सदस्यों की ओर से ‘वैकल्पिक विन्यास’ के लेखक अमितेश कुमार के सम्मान के साथ कार्यक्रम पूरा हुआ.

कवर फ़ोटो | प्रो.प्रणय कृष्ण, अनूप रंजन पाण्डेय और सुश्री शंपा शाह

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