सूदनपुर के क़िस्से | दिवाली बाद की रामलीला

  • 9:05 am
  • 7 November 2022

अलीगंज क़स्बे का सूदनपुर गांव वैसा ही है, जैसे कि उत्तर भारत के दूसरे गांव – ईंट के मकान, ईंट का खड़ंजा (कहीं-कहीं आरसीसी सड़क भी) और ट्रैक्टरों की होड़ में बचे रहे थोड़े-बहुत मवेशी, गलियों में खेलते-दौड़ते बच्चे, कहीं घर के बाहर निर्विचार चेहरे वाली बुजुर्ग औरतों की महफ़िल तो कहीं बीड़ी का धुंआ उड़ाते ज़ोर-ज़ोर से बतियाते लोग. गैनी से आगे आकर एक तिराहा मिलता है, जहां सामने की चौड़ी कच्ची-पक्की सड़क खेतों से होकर रामगंगा तक चली जाती है, और फिर उसे पार करके बरेली पहुंचा जा सकता है, और उल्टे हाथ मुड़कर आगे बढ़ने पर जो रास्ता मिलता है, वहां कभी सड़क ज़रूर रही होगी मगर अब उसके निशान भर मिलते हैं. साइकिलें और बैलगाड़ियां तो खरामा-खरामा गुज़र जाती है, ई-रिक्शा भी झूलते-पेंग मारते निकल जाते हैं, हां, फर्राटा भरने के आदी मोटरसाइकिल वालों की सारी शेखी यहां आकर मिट्टी में मिल जाती है, सो संभलकर चलते हैं, इसलिए भी कि बाईं ओर रास्ते के साथ दूर तक चला गया गहरा खड्ड है. एक नज़र में इसके नाला या नहर होने का भ्रम होता है मगर यह दोनों ही नहीं है. बारिश में या फिर सैलाब आने पर कुछ दिनों तक इसमें पानी दिखाई भी देता है. गांव में घुसने के पहले दाहिनी तरफ़ पाकड़ के कुछ नए, कुछ पुराने पेड़ हैं, जिन्हें घेरकर बने चबूतरों पर बैठे बतियाते-सुस्ताते लोग, और कुछ दुकानें हैं – पकौड़े और चाय का ठिकाना, तेल पेरने का कोल्हू, बीज और कीटनाशक की दुकान, धर्मकांटा, एकाध आढ़त और बायें हाथ हरे रंग की आभा वाला, कूड़े से अंटा वह बड़ा गड्ढ़ा जो कभी तालाब हुआ करता था.

गांव में दाख़िल होने पर धीरे-धीरे संकरा होता रास्ता तंग गलियों में तब्दील हो जाता है, जिसके दोनों तरफ़ मकान, मवेशी और जहां-तहां फसलों की हरियाली भी दिखाई दे जाती है. यही रास्ता पकड़कर बाईं तरफ़ मुड़ते-मुड़ते हम शिव मंदिर पहुंच गए. मंदिर के सामने और पीछे की तरफ़ के रास्ते अंदर आबादी में जाते हैं, और इसके साथ ख़ाली पड़ी जगह पर इन दिनों तम्बू तना हुआ है. सामने बने ऊंचे चबूतरे पर परदे की कई परतें हवा से फड़फड़ा रही थीं. अंदर कुछ नौजवान बैठे बतिया रहे थे, एकाध लेटे हुए भी थे. उस इतवार हमारा ठिकाना यह परिसर ही था. अभी तो वहां दौड़ते-भागते शोर मचाते बच्चों की दुनिया आबाद थी मगर रात में वहां जादू जगाया जाना था – अभिनय का जादू, संगीत का जादू और जिसे देखने-सुनने के लिए गांव के ढेर सारे लोग जुटने वाले थे. इन दिनों वहां रामलीला चल रही है. उस रोज़ शाम को ‘केवट संवाद’ होना था.

(ये तस्वीरें और परिचय उस रिपोर्ताज का हिस्सा है, जो अभी लिखा जा रहा है.)

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