पंजाब | गेहूं दान की पुरानी रवायत का फिर से आगाज़

  • 11:28 am
  • 23 May 2020

सिखों के पहले गुरु श्री गुरु नानक देव के काल में उनके आदेश पर ‘गेहूं दान’ महाअभियान की परंपरा पंजाब में फिर से शुरू हुई है. क़रीब सौ साल बाद इस रवायत का फिर आगाज़ हुआ है.

सिख लोकाचार की सबसे बड़ी खसूसियतों में से एक है – ‘लंगर’. कोरोना-काल में देश-विदेश के तमाम गुरुद्वारे जरूरतमंदों के लिए लंगर सेवा लेकर दिन-रात हाज़िर रहे. लंगर के लिए रसद-राशन गुरुघरों की ‘गुल्लकों’ में डाली जाने वाली ‘भेंट’ से खरीदा जाता था. 1919 में शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) के गठन के बाद से यह नियम लागू था. लेकिन हाल की महामारी का असर ‘लंगर’ पर भी पड़ा. इसलिए कि लॉकडाउन के चलते श्रद्धालुओं का गुरुद्वारों में जाना बंद हो गया और इस तरह वे गुल्लक में भेंट चढ़ाने से भी वंचित रह गए. यानी लंगर के मद पर आकस्मिक रोक लग गई. गुरुद्वारों का संचालन करने वाली शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी अचानक बड़े आर्थिक अभाव में आ गई. हालांकि उसका सालाना बजट खरबों रुपए का है. बेशक गुरुद्वारों में दान आना बंद हो गया लेकिन वहां से लंगर बनना और ज़रूरतमंदों तक पहुंचाना एक दिन के लिए भी नहीं बंद हुआ.

आर्थिक संकट के मद्देनजर और लंगर की सेवा अटूट बनाए रखने के लिए एसजीपीसी ने पहली बार गुहार लगाई कि लोग लंगर के लिए गेहूं का दान करें. यह अपील तब जारी की गई जब गेहूं की फसल कट कर आ गई. इस अपील को जबरदस्त समर्थन हासिल हुआ है. एसजीपीसी के एक पदाधिकारी ने बताया कि एक हफ़्ते के दरमियान ही तमाम गुरुद्वारों के लंगर हॉल अथवा गोदाम लकालक भर गए हैं. एसजीपीसी प्रधान गोविंद सिंह लोगोंवाल के मुताबिक, “किसानों और आम लोगों ने दिल खोलकर गेहूं दान किया है और अब तमाम गुरुद्वारा परिसरों में पूरा साल निर्बाध लंगर चलते रहने का बंदोबस्त हो गया है. महामारी ने भुखमरी के हालात पैदा कर दिए हैं और पंजाब में भी लाखों लोगों को प्रतिदिन मिलने वाले लंगर का आसरा है. अब यह गेहूं के महादान के जरिए संभव हो रहा है.” एसजीपीसी प्रधान पुष्टि करते हैं कि गेहूं दान की अपील पहली बार की गई है.

अमृतसर स्थित स्वर्ण मंदिर, तख्त साहिब श्री दमदमा साहिब-तलवंडी साबो, दरबार साहिब-मुक्तसर, लुधियाना स्थित गुरुद्वारा श्री आलमगीर साहिब में ‘गेहूं दान महा अभियान’ के मुख्य भंडार केंद्र बनाए गए हैं. इन केंद्रों से पंजाब और दिल्ली सहित दूसरे राज्यों में लंगर के लिए सामग्री जा रही है. तलवंडी साबो से गेहूं से लदे कुछ ट्रकों को रवाना करते वक्त श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने अरदास की और हरी झंडी दिखाई. ज्ञानी हरप्रीत सिंह कहते हैं, “किसानों, ग्रामीणों और आम लोगों ने गेहूं दान अभियान में दिल खोलकर शिरकत की है. अमृतसर के श्री दरबार साहिब में ही 35 हजार क्विंटल गेहूं हर साल लंगर में लगता है और मौजूदा संकट काल में इसमें बेइंतहा इजाफा हुआ है. तख्त श्री दमदमा साहिब में 1500 क्विंटल, बठिंडा के तलवंडी साबो गुरुद्वारे में 1000 क्विंटल गेहूं की खपत होती है. अब गुरुद्वारों को पूरा साल गेहूं खरीदने की जरूरत नहीं पड़ेगी. संक्रमण के ख़ौफ़ में संगत गुरुद्वारों में नहीं आ रही लेकिन वहां ज़रूरतमंदों के लिए लंगर नियमित रूप से तैयार करके वितरित किया जा रहा है.”

शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी द्वारा संचालित तमाम गुरुद्वारों के साथ ही छोटे गुरुद्वारों को भी किसान खुलकर गेहूं दान दे रहे हैं. देहात में हर गांव से बारी-बारी गेहूं जमा किया जा रहा है. गुरुद्वारों से लाउडस्पीकर के जरिए गेहूं दान की अपील हो रही है. एक गाड़ी खड़ी कर दी जाती है और लोग अपनी श्रद्धा के अनुसार उसमें गेहूं डाल देते हैं. इतिहास के जानकारों के अनुसार कई सदियां पहले संकट के लिए इस मानिंद ‘गेहूं दान’ की गुहार लगाकर गेहूं इकट्ठा किया जाता था. पूर्व मंत्री सिकंदर सिंह मलूका कहते हैं, “संकट ने परंपरा की वापसी करा दी है.”


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