व्यंग्य | उखड़े खम्भे
एक दिन राजा ने खीझकर घोषणा कर दी कि मुनाफ़ाखोरों को बिजली के खम्भे से लटका दिया जाएगा.
सुबह होते ही लोग बिजली के खम्भों के पास जमा हो गए. उन्होंने खम्भों की पूजा की, आरती उतारी और उन्हें तिलक किया.
शाम तक वे इंतज़ार करते रहे कि अब मुनाफ़ाखोर टांगे जाएंगे – पर कोई नहीं टांगा गया.
लोग जुलूस बनाकर राजा के पास गए और कहा, “महाराज, आपने तो कहा था कि मुनाफ़ाखोर बिजली के खम्भे से लटकाये जाएंगे, पर खम्भे तो वैसे ही खड़े हैं और मुनाफ़ाखोर स्वस्थ और सानन्द हैं.”
राजा ने कहा, “कहा है तो उन्हें खम्भों पर टांगा ही जाएगा. थोड़ा समय लगेगा. टांगने के लिये फन्दे चाहिए. मैंने फन्दे बनाने का आर्डर दे दिया है. उनके मिलते ही, सब मुनाफ़ाखोरों को बिजली के खम्भों से टांग दूंगा.
भीड़ में से एक आदमी बोल उठा, “पर फन्दे बनाने का ठेका भी तो एक मुनाफ़ाखोर ने ही लिया है.”
राजा ने कहा, “तो क्या हुआ? उसे उसके ही फन्दे से टांगा जाएगा.”
तभी दूसरा बोल उठा, “पर वह तो कह रहा था कि फांसी पर लटकाने का ठेका भी मैं ही ले लूंगा.”
राजा ने जवाब दिया, “नहीं,ऐसा नहीं होगा. फांसी देना निजी क्षेत्र का उद्योग अभी नहीं हुआ है.”
लोगों ने पूछा, ” तो कितने दिन बाद वे लटकाये जाएंगे.”
राजा ने कहा, “आज से ठीक सोलहवें दिन वे तुम्हें बिजली के खम्भों से लटके दीखेंगे.”
लोग दिन गिनने लगे.
सोलहवें दिन सुबह उठकर लोगों ने देखा कि बिजली के सारे खम्भे उखड़े पड़े हैं. वे हैरान हो गये कि रात न आंधी आई, न भूकम्प आया, फिर वे खम्भे कैसे उखड़ गए!
उन्हें खम्भे के पास एक मजदूर खड़ा मिला. उसने बतलाया कि मजदूरों से रात को ये खम्भे उखड़वाए गए हैं. लोग उसे पकड़कर राजा के पास ले गए.
उन्होंने शिकायत की ,”महाराज, आप मुनाफ़ाखोरों को बिजली के खम्भों से लटकाने वाले थे ,पर रात में सब खम्भे उखाड़ दिए गए. हम इस मजदूर को पकड़ लाए हैं. यह कहता है कि रात को सब खम्भे उखड़वाए गए हैं.”
राजा ने मजदूर से पूछा, “क्यों रे, किसके हुक्म से तुम लोगों ने खम्भे उखाड़े?”
उसने कहा, “सरकार, ओवरसियर साहब ने हुक्म दिया था.”
तब ओवरसियर बुलाया गया.
उससे राजा ने कहा,” क्यों जी तुम्हें मालूम है, मैंने आज मुनाफ़ाखोरों को बिजली के खम्भे से लटकाने की घोषणा की थी?”
उसने कहा, “जी सरकार!”
“फिर तुमने रातों-रात खम्भे क्यों उखड़वा दिए?”
“सरकार, इंजीनियर साहब ने कल शाम हुक्म दिया था कि रात में सारे खम्भे उखाड़ दिए जाएं.”
अब इंजीनियर बुलाया गया. उसने कहा उसे बिजली इंजीनियर ने आदेश दिया था कि रात में सारे खम्भे उखाड़ देना चाहिए.
बिजली इंजीनियर से क़ैफ़ियत तलब की गई, तो उसने हाथ जोड़कर कहा, “सेक्रेटरी साहब का हुक्म मिला था.”
विभागीय सेक्रेटरी से राजा ने पूछा, खम्भे उखाड़ने का हुक्म तुमने दिया था.”
सेक्रेटरी ने स्वीकार किया, “जी सरकार!”
राजा ने कहा, ” यह जानते हुए भी कि आज मैं इन खम्भों का उपयोग मुनाफ़ाखोरों को लटकाने के लिए करने वाला हूँ, तुमने ऐसा दुस्साहस क्यों किया.”
सेक्रेटरी ने कहा, “साहब, पूरे शहर की सुरक्षा का सवाल था. अगर रात को खम्भे न हटा लिए जाते, तो आज पूरा शहर नष्ट हो जाता!”
राजा ने पूछा, “यह तुमने कैसे जाना? किसने बताया तुम्हें?
सेक्रेटरी ने कहा, “मुझे विशेषज्ञ ने सलाह दी थी कि यदि शहर को बचाना चाहते हो तो सुबह होने से पहले खम्भों को उखड़वा दो.”
राजा ने पूछा, “कौन है यह विशेषज्ञ? भरोसे का आदमी है?”
सेक्रेटरी ने कहा, “बिल्कुल भरोसे का आदमी है सरकार. घर का आदमी है. मेरा साला होता है. मैं उसे हुजूर के सामने पेश करता हूं.”
विशेषज्ञ ने निवेदन किया, ” सरकार, मैं विशेषज्ञ हूँ और भूमि तथा वातावरण की हलचल का विशेष अध्ययन करता हूं. मैंने परीक्षण के द्वारा पता लगाया है कि ज़मीन के नीचे एक भयंकर प्रवाह घूम रहा है. मुझे यह भी मालूम हुआ कि आज वह बिजली हमारे शहर के नीचे से निकलेगी. आपको मालूम नहीं हो रहा है, पर मैं जानता हूं कि इस वक्त हमारे नीचे भयंकर बिजली प्रवाहित हो रही है. यदि हमारे बिजली के खम्भे जमीन में गड़े रहते तो वह बिजली खम्भों के द्वारा ऊपर आती और उसकी टक्कर अपने पावरहाउस की बिजली से होती. तब भयंकर विस्फोट होता. शहर पर हजारों बिजलियां एक साथ गिरतीं. तब न एक प्राणी जीवित बचता, न एक इमारत खड़ी रहती. मैंने तुरन्त सेक्रेटरी साहब को यह बात बताई और उन्होंने ठीक समय पर उचित कदम उठाकर शहर को बचा लिया.
लोग बड़ी देर तक सकते में खड़े रहे. वे मुनाफ़ाखोरों को बिल्कुल भूल गये. वे सब उस संकट से अविभूत थे, जिसकी कल्पना उन्हें दी गई थी. जान बच जाने की अनुभूति से दबे हुए थे. चुपचाप लौट गए.
उसी सप्ताह बैंक में इन नामों से ये रकमें जमा हुईं,
सेक्रेटरी की पत्नी के नाम – 2 लाख रुपये
श्रीमती बिजली इंजीनियर – 1 लाख
श्रीमती इंजीनियर – 1 लाख
श्रीमती विशेषज्ञ – 25 हजार
श्रीमती ओवरसियर – 5 हजार
उसी सप्ताह ‘मुनाफाखोर संघ’ के हिसाब में नीचे लिखी रकमें ‘धर्मादा’ खाते में डाली गईं,
कोढ़ियों की सहायता के लिये दान – 2 लाख रुपये
विधवाश्रम को – 1 लाख
क्षय रोग अस्पताल को – 1 लाख
पागलखाने को – 25 हजार
अनाथालय को – 5 हजार
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