दो खिलाड़ी और दो लफ़्ज़ों की एक कहानी
इसे आप एक अद्भुत संयोग कह सकते हैं. दो अलग खेल. दो अलग देश. दो अलग महाद्वीप. दो अलग कहानियां. और कहानियों के दो अलग किरदार. लेकिन उन दो कहानियों में गजब की समानता. जो एक जगह पेरिस में, एक खेल आयोजन ओलंपिक में आकर अपने उत्कर्ष को प्राप्त होती हैं. बाकी ये क़िस्से किसी अंजाम को पहुंच पाते हैं या नहीं, यह भविष्य तय करेगा.
दो खेल रेसलिंग और जिम्नास्टिक. दो देश भारत और फ्रांस. दो महाद्वीप एशिया और यूरोप. और किरदार विनेश फोगाट और कायलिया नेमार.
ये कायलिया नेमार वही हैं, जिन्होंने अभी-अभी इस ओलंपिक में अल्जीरिया के लिए ही नहीं बल्कि पूरे अफ़्रीका के लिए पहला जिम्नास्टिक पदक जीता है और वो भी गोल्ड. पिछले साल विश्व चैंपियनशिप में भी उन्होंने अल्जीरिया और अफ्रीका के लिए विश्व चैंपियनशिप का पहला पदक जीता था. वो रजत पदक था.
वे जिम्नास्टिक के अनईवन बार्स (uneven bars) स्पर्धा की अप्रतिम कलाकार हैं. एक बार से दूसरे बार तक उनका संचरण और इस दौरान बार्स पर हाथों और शरीर से किए जाने वाले लयबद्ध करतब किसी सिद्धहस्त कलाकार द्वारा किए जा रहे अद्भुत नृत्य का आनंद देते हैं. वे अभी कुल 17 साल की हैं.
वे फ्रेंच माँ और अल्जीरियाई मूल के पिता की संतान हैं, जो पश्चिमी फ्रांस के एक क़स्बे अवोइन में रहती हैं और राष्ट्रीय जिम्नास्टिक केंद्र नेमोर्स अवोइन ब्यूमोंट से उनका घर कुछ मिनट की दूरी पर है. यहां पर राष्ट्रीय कोच के रूप के मार्क और चिरिलसेंको कायलिया को एक शानदार जिम्नास्ट के रूप में तराश रहे होते हैं. उनके प्रशिक्षण में मात्र 14 वर्ष की उम्र में वे अनईवन बार्स में फ्रांस की राष्ट्रीय चैंपियन बनती हैं. उसी समय वे ओलंपिक संभावितों में चुन ली जाती हैं और फ्रांस के जिम्नास्टिक संघ द्वारा उन्हें घर से काफी दूर कैम्प में जाने के लिए कहा जाता है. लेकिन वे अपने प्रशिक्षण केंद्र को छोड़कर जाना नहीं चाहती.
इस विवाद में उनकी चोट जले पर नमक का काम करती है. उनके प्रशिक्षक पर अत्यधिक प्रशिक्षण का आरोप लगता है. विवाद बढ़ता जाता है. अवोइन प्रशिक्षण केंद्र की मान्यता समाप्त कर दी जाती है. चिरिलसेंको को राष्ट्रीय कोच से हटा दिया जाता है और उनके विरुद्ध जांच बैठा दी जाती है जिसमें बाद में वे आरोप मुक्त कर दिए जाते हैं. संघ और कायलिया के बीच विवाद गहराता जाता है.
कायलिया अब अल्जीरिया की तरफ़ से खेलने का निर्णय लेती हैं. इसलिए कि उनके पिता के पास वहां का पासपोर्ट है. फ्रांस एक श्रेष्ठ जिम्नास्ट को जाने नहीं देना चाहता था. उसको अनुमति देने में रोड़े अटकाता है जो नियमानुसार दूसरे देश से खेलने के लिए ज़रूरी थी. अंततः 2023 में विश्व चैंपियनशिप से पहले फ्रांस उन्हें अल्जीरिया से खेलने की अनुमति दे देता है और कायलिया अल्जीरिया के लिए और अफ्रीका के लिए पहला पदक जीतती हैं.
और क्या ही विडंबना है कि उसके बाद अब पेरिस ओलंपिक में कायलिया जहां जन्मी, बड़ी हुई, खेल सीखा, अभी भी प्रशिक्षण ले रही है, ऐन वहीं एक दूसरे देश के लिए स्वर्ण पदक जीतती हैं, उन्हीं अधिकारियों के सामने जो उसे देश छोड़ने के लिए मजबूर करते हैं. ये जोर का तमाचा धीरे से लगता है. गूंज दूर तक जाती है.
अब विनेश की कहानी देखिए. वे भी अपने संघ से लड़ती हैं. और विवाद की जड़ में एक कारण प्रशिक्षण कैम्प का स्थल भी होता है. वे भी पेरिस पहुंचती हैं और लगभग स्वर्ण जीत ही लेने को होती हैं.
संघर्ष दोनों करती हैं. लेकिन एक फ़र्क़ है. कायलिया एक बीच का रास्ता चुनती हैं. वे देश छोड़ दूसरे देश चली जाती हैं. लेकिन विनेश ज़मीन की खिलाड़ी है. कायलिया ज़मीन से ऊपर बार्स की खिलाड़ी है. वो उड़कर दूर चली जाती है. विनेश ज़मीन पर, सड़कों पर अपनी लड़ाई लड़ती है. लेकिन संघर्ष दोनों करती हैं.
कायलिया को सलाम.
विनेश को सलाम.
कवर | इंस्टाग्राम से साभार
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