नाओमी ओसाका | इस संगीत की गूंज दूर तक सुनाई देगी

पत्रकार-साहित्यकार नीलाभ लिखते हैं कि ‘जैज संगीत एफ़्रो-अमेरिकंस के दुःख-दर्द से उपजा चट्टानी संगीत है’. फ्लशिंग मीडोज़ का बिली जीन किंग टेनिस सेंटर और विशेष रूप से आर्थर ऐश सेन्टर कोर्ट मुझे एक ऐसा स्थान लगता है, जहां ये संगीत नेपथ्य में हर समय बजता रहता है क्योंकि हर बार कोई एक अश्वेत खिलाड़ी मानो उस समुदाय के दुख-दर्द के किसी तार को हौले से छेड़ देता हो और फिर उसकी अनुगूंज बहुत दूर तक और बहुत देर तक सुनाई देती रहती है.

ये एक ऐसा सेन्टर है जहां खेल के साथ-साथ इस समुदाय के लिए गौरव भरे क्षण उपस्थित होते रहते हैं. याद कीजिए, 2017 का महिला फ़ाइनल. ये दो एफ़्रो-अमेरिकन खिलाड़ियों के बीच मुक़ाबला था. स्लोअने स्टीफेंस ने मेडिसन कीज को 6-3, 6-0 से हराकर अपना पहला ग्रैंड स्लैम जीता और मैच पूरा होते ही ये दो प्रतिद्वंद्वी लेकिन दोस्त एक-दूसरे को इस तरह से जकड़े थीं मानो अब जुदा ही नहीं होना है और दोनों की आँखों से अश्रुओं की ऐसी अविरल धारा बह रही थी जैसे सावन बरस रहा हो. वह एक अद्भुत दृश्य भर नहीं था बल्कि टेनिस इतिहास की और एफ़्रो-अमेरिकन इतिहास के एक अविस्मरणीय क्षण की निर्मिति भी थी. उस दिन से ठीक साठ बरस पहले 1957 में पहली बार एफ़्रो-अमेरिकन महिला खिलाड़ी एल्थिया गिब्सन द्वारा यूएस ओपन जीतने की 60वीं वर्षगाँठ का पहले एफ़्रो-अमेरिकी पुरुष एकल यूएस ओपन विजेता आर्थर ऐश कोर्ट पर दो एफ़्रो-अमेरिकी खिलाड़ी फ़ाइनल खेल कर जश्न मना रही थीं.

अगले साल 2018 के फ़ाइनल में एकदम युवा खिलाड़ी ओसाका नाओमी और उनके सामने उनकी रोल मॉडल टेनिस इतिहास की महानतम खिलाड़ियों में से एक 37 वर्षीया सेरेना विलियम्स थीं. अम्पायर के एक फ़ैसले से नाराज़ होकर सेरेना ने वो मैच अधूरा छोड़ दिया था और अम्पायर पर भेदभाव करने का आरोप लगाया. उनका ये आक्रोश जितना अपनी सन्निकट आती हार से उपजा था, उतना ही अपने साथ हुए भेदभाव को लेकर बनी मनःस्थिति को लेकर भी था. अब टेनिस और खेल जगत में पुरुषों के बरक्स महिलाओं से भेदभाव को लेकर एक बहस शुरू हो गई थी. और टेनिस जगत को एक नई स्टार खिलाड़ी मिली थी जो न केवल उसी समुदाय से थी बल्कि हूबहू अपने आदर्श की तरह खेलती थी. बिल्कुल उसी की तरह का पावरफुल बेस लाइन खेल और सर्विस.

2019 में एक बार फिर सेरेना फ़ाइनल में थीं. अपना रिकॉर्ड 24वां ग्रैंड स्लैम जीतकर सर्वकालिक महिला खिलाड़ी बनने की राह पर. पर एक बार वे फिर चूक गईं. इस बार एक दूसरी टीनएजर कनाडा की एंड्रेस्क्यू ने उनका सपना तोड़ दिया. जैज संगीत फिर सुना गया पर कुछ ज़्यादा उदास था. सेरेना के खेल के आसन्न अवसान की ध्वनि से गूंजता ये संगीत कम कारुणिक नहीं था.

यूएस ओपन में साल दर साल यही होता आ रहा है. तो 2020 का यूएस ओपन अलग कैसे हो सकता था. कोरोना के साए में बड़े खिलाड़ियों और दर्शकों की अनुपस्थिति में शुरुआत कुछ नीरस-सी थी,पर प्रतियोगिता ज्यों-ज्यों आगे बढ़ती गयी, रोचक होती गई. इस बार यह प्रतियोगिता वैसे भी माओं के नाम रही. महिला वर्ग में नौ खिलाड़ी ऐसी थीं, जो मां बन चुकी थीं. इनमें से तीन सेरेना, अजारेंका और पिरेन्कोवा क्वार्टर फ़ाइनल तक पहुंची. दो सेरेना और अजारेंका सेमीफ़ाइनल तक पहुंची. यहां 39 वर्षीया सेरेना का 24 वां ग्रैंड स्लैम ख़िताब जीतने का सपना अजारेंका ने तोड़ा. और तब एक खिलाड़ी जो माँ थी, फ़ाइनल में पहुंची वो अजारेंका थीं. बेलारूस की अजारेंका अब 31 साल की हो चुकी थी और 2012 में नम्बर वन खिलाड़ी थीं और दो बार ऑस्ट्रेलियाई ओपन के साथ साथ 21 एटीपी ख़िताब जीत चुकी थीं. उनके पास पर्याप्त अनुभव था. वे गुलागोंग, मार्गरेट कोर्ट और किम क्लाइस्टर्स के बाद चौथी ऐसी खिलाड़ी बन एक इतिहास की निर्मिति के बिल्कुल क़रीब थीं, जिसने माँ बनने के बाद ग्रैंड स्लैम जीता हो.

दूसरे हॉफ से 2018 की चैंपियन हेतीयन पिता और जापानी माँ की संतान 22 वर्षीया नाओमी उनके सामने थीं. वे अदम्य ऊर्जा और जोश से लबरेज खिलाड़ी थीं. लेकिन उल्लेखनीय यह है कि वे खिलाड़ी भर नहीं हैं बल्कि सोशल एक्टिविस्ट भी हैं. उन्होंने अश्वेत समुदाय के विरुद्ध हिंसा के विरोध में हुए प्रदर्शनों में सक्रिय प्रतिभाग किया और यहां बिली जीन किंग टेनिस सेन्टर में भी वे मैदान में अपने प्रतिद्वंद्वियों से दो-दो हाथ नहीं कर रहीं थी बल्कि अश्वेत समुदाय के विरुद्ध हिंसा का प्रतिरोध भी कर रहीं थीं. इसके लिए हर मैच में हिंसा के शिकार एक अश्वेत का नाम लिखा मास्क पहन कर कोर्ट पर आतीं. फ़ाइनल में उनके मास्क पर 12 वर्षीय अश्वेत बालक तमीर राइस का नाम था, जो 2014 में क्लीवलैंड में एक श्वेत पुलिस अफ़सर के हाथों मारा गया था. उन्होंने सात मैच खेले और हर बार हिंसा के शिकार अश्वेत के नाम का मास्क लगाया. अन्य छह नाम थे – फिलैंडो कास्टिले ,जॉर्ज फ्लॉयड, ट्रेवॉन मार्टिन, अहमोद आरबेरी,एलिजाह मैक्लेन और ब्रेओना टेलर. नाओमी की स्मृति में 2018 का मुक़ाबला भी ज़रूर रहा होगा जब उनके पहले ख़िताब के जश्न और जीत को बीच में अधूरे छूटे मैच ने और दर्शकों की हूटिंग ने अधूरेपन के अहसास को भर दिया था. यहां वे एक मुक़म्मल जीत चाहती होंगी और अपने सामाजिक उद्देश्य के लिए भी जीतना चाहती होंगी. और निःसन्देह इन दोनों का ही उन पर अतिरिक्त दबाव रहा होगा.

जो भी हो, इसमें कोई शक नहीं कि मुक़ाबला नए और पुराने के बीच था, द्वंद्व, जोश और अनुभव का था, आमना-सामना युवा शरीर का अनुभवी दिमाग से था, उत्साह का संयम से मुक़ाबला था. मुक़ाबला कड़ा था, टक्कर बराबरी की थी. पर जीत अंततः नए की, जोश की, युवा शरीर की, उत्साह की हुई.

जीत नाओमी की हुई. नाओमी ने अजारेंका को 1-6, 6-3,6-3 से हरा दिया. पहले सेट में नाओमी दबाव में दिखी. उन्होंने बहुत सारी बेजा ग़लती की. और पहला सेट 1-6 से गंवा बैठीं. दरअसल अजारेंका ने पहले सेट में शानदार सर्विस की और बढ़िया फोरहैंड स्ट्रोक्स लगाए. उन्होंने पूरा दमख़म लगा दिया. एक युवा शक्तिशाली प्रतिद्वंद्वी के ख़िलाफ़ आपको उस समय तक स्टेमिना और ऊर्जा चाहिए होती है जब तक मैच न जीत जाएं. अपनी सीमित ऊर्जा का मैनेजमेंट चतुराई से करना होता है. यहीं पर अजारेंका चूक गईं. उन्होंने सारी ऊर्जा पहले सेट में लगा दी. नाओमी ने दूसरे सेट में कमबैक किया. अपनी पावरफुल सर्विस और बेसलाइन स्ट्रोक्स से न केवल दूसरा सेट 6-3 से जीत लिया बल्कि तीसरे और निर्णायक सेट में भी 4-1 से बढ़त बना ली. एक बार फिर अजारेंका ने ज़ोर लगाया और अपनी सर्विस जीतकर नाओमी की सर्विस ब्रेक भी की और स्कोर 3-4 कर दिया. लगा मुक़ाबला लंबा खींचेगा. पर ये छोटा-सा पैच दिए की लौ की अन्तिम भभक साबित हुआ. अगले तीन गेम जीतकर अपना तीसरा ग्रैंड स्लैम नाओमी ने अपने नाम कर लिया. ये उनका तीसरा ग्रैंड स्लैम फ़ाइनल था और तीनों में जीत.

बड़े लोगों की बातें भी न्यारी होती हैं. खिलाड़ी जैसे ही अंतिम अंक जीतता है वो उस धरती का आभार प्रकट करने के लिए भी और उस जीत के पीछे की मेहनत को महसूसने के लिए अक्सर पीठ के बल मैदान पर लेट जाते हैं. नाओमी ने अपना अपना अंतिम अंक जीतकर अजारेंका को सान्त्वना देने के लिए रैकेट से रैकेट टकराया (नया सामान्य हाथ मिलाने या गले लगने की जगह) और उसके बाद आराम से मैदान पर लेट गईं और आसमान निहारने लगीं. उन्होंने मैच के बाद अपने वक्तव्य में में कहा कि ‘मैं देखना चाहती थी बड़े खिलाड़ी आख़िर आसमान में क्या देखते हैं’. ये तो पता नहीं कि उन्होंने क्या समझा होगा कि बड़े खिलाड़ी क्या देखते हैं,पर निश्चित ही उनकी आंखों ने आसमान की अनंत ऊंचाई को महसूस किया होगा और उनके इरादे भी उस ऊंचाई को छूने के लिए कुछ और बुलंद हुए होंगे.

हमारे समय के प्रख्यात पत्रकार प्रभाष जोशी की एक पुस्तक का नाम है – ‘खेल केवल खेल नहीं हैं’ और वे लिखते हैं कि ‘खेल के जरिए आप खेलने वाले के चरित्र, उसके लोगों की ताक़त और कमज़ोरियों को समझ सकते हैं’. तो इस बार नाओमी ने बिली जीन किंग टेनिस सेन्टर में अश्वेतों के दुख-दर्द के जिस तार को छेड़ा, उससे निःसृत संगीत की अनुगूंज अतिरिक्त दूरी और अतिरिक्त समय तय करेगी, ऐसी उम्मीद की जानी चाहिए. यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि यह साल अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव का साल भी है.

नाओमी ओसाका को जीत मुबारक!

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