आर्मंड डुप्लांटिस | डाला घोड़ा चौक का बार और ऊँचा हुआ

एथलेटिक्स सभी खेलों का मूल है. उसकी तमाम स्पर्धाएं दर्शकों को रोमांच और आनंद से भर देती हैं. कुछ कम तो कुछ ज्यादा. और कहीं उसकी किसी स्पर्धा को कोई असाधारण साधक मिल जाए तो वो स्पर्धा दर्शकों को अनिर्वचनीय आनन्द से भर देती है. मसलन पोल वॉल्ट स्पर्धा को जब आर्मंड गुस्ताव ‘मोंडो’ डुप्लांटिस जैसा साधक मिल जाए तो क्या ही कहा जा सकता है! एथलेटिक्स ही नहीं बल्कि खेलों में रुचि रखने वाला हर खेल प्रेमी इस बात से सहमत होगा कि डुप्लांटिस पोल वॉल्ट के अद्भुत साधक हैं. एक असाधारण एथलीट. वे अपनी क़ाबिलियत से जब जब अपनी स्पर्धा को छू भर देते हैं, तो स्वतः ही श्रेष्ठता के नए मानदंड स्थापित होने लगते हैं.
ऐसा ही कुछ बीते सोमवार टोक्यो में घटित हो रहा था. वे टोक्यो के नेशनल स्टेडियम में आयोजित विश्व एथलेटिक्स प्रतियोगिता की पोल वॉल्ट स्पर्धा में 6.30 मीटर ऊंची छलांग लगाकर कुल 14वीं बार और साल 2025 का अपना चौथा विश्व रिकॉर्ड बेहतर बनाकर एक अनोखे काम को अंजाम दे रहे थे. इस दफ़ा उनके बार की ऊंचाई पिछली दफ़ा से एक सेंटीमीटर अधिक थी.
और कमाल ये कि इस कारनामे के सम्मान में बिल्कुल ऐसा ही वाक़या टोक्यो से हज़ारों मील दूर स्वीडन के शहर अवेस्ता में घट रहा था. इस शहर के लोगों ने भी 14वीं बार नगर के डाला हॉर्स चौक पर स्थापित पोल वॉल्ट बार को थोड़ा और ऊंचा किया. एक सेंटीमीटर ऊंचा. दरअसल ये दुनिया के महानतम और सर्वश्रेष्ठ पोल वॉल्टर डुप्लांटिस का उनकी मां के गृहनगर अवेस्ता के निवासियों द्वारा अपने चहेते पोल वॉल्टर के सम्मान का अनोखा तरीक़ा था.
ये साल 2020 था. उस साल तोरुन पोलैंड में आयोजित यूरोपियन इनडोर प्रतियोगिता में डुप्लांटिस ने पहली बार 6.17 मीटर पार कर इस स्पर्धा का नया रिकॉर्ड बनाया था. उस समय तक अवेस्ता नगर के निवासियों ने तय किया कि वे अपनी विश्व प्रसिद्ध 11 मीटर ऊंची काष्ठ की डाला घोड़े की मूर्ति वाले चौक पर एक पोल वॉल्ट बार स्थापित करेंगे, जिसकी ऊंचाई डुप्लांटिस के रिकॉर्ड के बराबर होगी. उसके बाद वे जब भी अपने विश्व रिकॉर्ड को बेहतर करते हैं, डाला घोड़े वाले इस चौक पर स्थापित इस पोल वॉल्ट बार की ऊंचाई उतनी ही बढ़ती जाती है, जितना डुप्लांटिस रिकॉर्ड की बढ़ोतरी करते हैं.
2020 में रेनॉड लैविल्लेनी का 6.16 मीटर के पुराने रिकॉर्ड को तोड़ने के बाद से, मोंडो ने 14 बार विश्व रिकॉर्ड को बेहतर ही नहीं किया बल्कि उन्होंने 49 प्रतियोगिताओं में लगातार जीत हासिल की है और अजेय रहे हैं. उन्होंने लगातार इनडोर और आउटडोर चैंपियनशिप में लगातार आठ वैश्विक ख़िताब जीते. वह दो बार के ओलंपिक चैंपियन, तीन बार के विश्व आउटडोर चैंपियन और तीन बार के विश्व इनडोर चैंपियन हैं. डुप्लांटिस इतिहास के उन गिने-चुने एथलीटों में से एक हैं जिन्होंने युवा, जूनियर और सीनियर स्तर पर विश्व चैंपियनशिप ख़िताब जीते हैं. वे अभी केवल 25 वर्ष के हैं और अविश्वसनीय तरीक़े से जीत रहे हैं तथा विश्व रिकॉर्ड बना रहे हैं.
दरअसल पोल वॉल्ट का नशा उनकी रगों में बह रहा था. सन् 1999 में अमेरिका के लुइसियाना प्रांत के लाफ़ायेत शहर में जन्मे डुप्लांटिस के पिता ग्रेग डुप्लांटिस पूर्व पोल वॉल्टर हैं जिनका व्यक्तिगत सर्वश्रेष्ठ 5.80 मीटर है, जबकि उनकी माँ हेलेना हेप्टाथलीट और वॉलीबॉल खिलाड़ी हैं.
जानकारों का मानना है कि उनकी असाधारण सफलता का श्रेय उनके माता पिता को जाता है, जो उनके कोच भी हैं. डुप्लांटिस स्प्रिंट रेसर हैं और सौ मीटर के धावक भी. उनके कोच माता पिता ने डुप्लांटिस की गति को तकनीक से लैस किया. दरअसल गति डुप्लांटिस का सबसे बड़ा हथियार है. जिस प्रयास में उन्होंने टोक्यो में पिछले रविवार 6.30 मीटर का विश्व रिकॉर्ड बनाया उस प्रयास में जमीन छोड़ने से ठीक पहले उनकी गति 22 मील प्रति घंटा थी. इसके अलावा वे अपेक्षाकृत कम लचीले पोल का प्रयोग करते हैं ताकि वे कुछ अतिरिक्त उछल पा सकें. ऐसा माना जाता है उनकी इस सफलता के पीछे प्यूमा शू कंपनी द्वारा खास उनके लिए डिजाइन किए जूते ‘द क्ला’ भी एक कारक हैं.
पर डुप्लांटिस पोल वॉल्ट यानी बांस कूद के अकेले साधक नहीं हैं. पोल वॉल्ट का कोई भी इतिहास सर्गेई बुबका का उल्लेख किए बिना पूरा नहीं हो सकता. दरअसल पोल वॉल्ट का समूचा इतिहास इन्हीं दो पोल वॉल्टर के कारनामों का रोमांचक और उत्तेजक इतिहास भर है. एक से इस स्पर्धा का इतिहास शुरू होता है और दूसरे पर आकर ठहर जाता है. एक इसका अतीत, दूसरा वर्तमान.
सर्गेई बुबका का जन्म सन 1963 में यूक्रेन के शहर लुहांस्क में हुआ. यूं तो वे स्प्रिंट रेसर और लांग जंपर भी थे लेकिन उन्हें चैंपियन एथलीट बनाया पोल वॉल्ट ने. ये साल 1983 था, जब केवल 19 साल की उम्र में हेलसिंकी फिनलैंड में आयोजित विश्व एथलेटिक्स प्रतियोगिता में उन्होंने पोल वॉल्ट का स्वर्ण पदक जीता. इस जीत के साथ वे प्रसिद्धि के ऐसे रथ पर सवार हुए जिसे कभी न रुकना था, न थकना.
उन्होंने अपना पहला विश्व रिकॉर्ड 1984 में चेकोस्लोवाकिया के शहर ब्रातिस्लावा में बनाया, जब उन्होंने 5.85 मीटर की ऊंचाई पार की. वे लगातार 6 बार विश्व एथलेटिक्स चैंपियनशिप के विजेता रहे. 1985 में छह मीटर और फिर 1991 में 20 फीट (6.10 मीटर) पार करने वाले वे पहले पोल वॉल्टर थे. उन्होंने अपने करियर में कुल 35 बार विश्व रिकॉर्ड को बेहतर किया. उनके द्वारा 1993 में बनाया गया 6.15 मीटर का इनडोर और 1994 में 6.14 मीटर का आउटडोर रिकॉर्ड उस समय तक अजेय रहा जब तक कि रेनॉड लैविल्लेनी ने फरवरी 2014 में 6.16 मीटर पार कर तोड़ नहीं दिया.
लेकिन अपनी तमाम प्रतिभा के बावजूद चार प्रयासों में केवल एक ओलंपिक स्वर्ण पदक जीत सके 1988 के सियोल ओलंपिक में. 1984 के लॉस एंजिल्स ओलंपिक के सोवियत बहिष्कार के कारण के कारण वे ओलंपिक में भाग नहीं ले सके जबकि वे उस समय विश्व रिकॉर्डधारी थे. 1992 के बार्सिलोना ओलंपिक में वे आश्चर्यजनक रूप से 5.70 मीटर की छलांग लगाने में असफल रहे. 1996 के अटलांटा ओलंपिक में एड़ी की चोट के कारण हटना पड़ा. और अंततः 2000 के सिडनी ओलंपिक में पुनः 5.70 मीटर की छलांग लगाने के तीन असफल प्रयास के बाद क्वालीफाई नहीं कर सके. नियति का विधान कुछ ऐसा ही रचा गया.
बुबका ने सन 2001 में जब सक्रिय खेल जीवन से विदा ली हुए तो उस समय उनकी उपलब्धियों में छह विश्व चैम्पियनशिप ख़िताब, चार विश्व इंडोर चैम्पियनशिप ख़िताब, यूरोपीय चैम्पियनशिप में एक स्वर्ण और यूरोपीय इंडोर चैम्पियनशिप में एक अन्य स्वर्ण पदक शामिल थे.
आख़िर उनकी इस असाधारण सफलता का राज क्या था. वे पोल को सामान्यतः पकड़े जाने वाले स्थान से कहीं अधिक ऊपर से पकड़ते थे. ये तकनीक उन्हें अतिरिक्त लाभ पहुंचाती. लेकिन ये तभी संभव हो सकता है जब खिलाड़ी में शक्ति,गति और शरीर में लचीलापन हो और बुबका में कमाल की गति,ताकत और किसी जिम्नास्ट सरीखा लचीलापन था. इतना ही नहीं बुबका को एक ऐसा गुरु मिला जिन्होंने उनकी क्षमता और योग्यता को तराश कर उन्हें कोहिनूर हीरा सरीखा बना दिया. ये गुरु थे विताली पेत्रोव. वो असाधारण कोच थे जिन्होंने सर्गेई बुबका, येलेना इसिनबायेवा और ग्यूसेप गिबिलिस्को जैसे दिग्गज पोल वॉल्टर्स को प्रशिक्षित किया था. ये तीनों विश्व चैंपियन थे और पहले दो ने न केवल ओलंपिक स्वर्ण पदक जीते बल्कि विश्व रिकॉर्ड भी स्थापित किए .
2001 में संन्यास लेते समय बुबका ने अपने संबोधन में कहा था “कभी-कभी, जब मैं अपने किए पर विचार करता हूं, तो मुझे लगता है कि मैंने एथलेटिक्स के इतिहास में योगदान दिया है.” ये न तो आत्मश्लाघा थी और न अतिशयोक्ति. ये वक्तव्य एक यथार्थ था. निःसंदेह बुबका ने मानवीय क्षमता के नए प्रतिमान गढ़े थे.
लेकिन प्रतिमान रूढ़ नहीं होते. देश काल के साथ साथ बदलते जाते हैं. बुबका द्वारा बनाए गए प्रतिमानों को ध्वस्त होना था और वे हुए. एक समय लगता था बुबका अजेय हैं. लेकिन फिर आए डुप्लांटिस.
बुबका ने शुरुआत 5.85 मीटर से की और उसे 6.14 तक लेकर आए. उन्होंने रिकॉर्ड को कुल मिलाकर 29 सेंटीमीटर बेहतर किया. डुप्लांटिस 6.17 मीटर को 6.30 मीटर तक ले आए हैं. अभी तक 13 सेंटीमीटर बेहतर कर चुके हैं.
तो यक्ष प्रश्न यही कि बुबका की विरासत को डुप्लांटिस कहां तक ले जायेंगे. डुप्लांटिस की प्रतिभा कहने को मजबूर करती है आकाश को छू लेने की कोशिश करते डुप्लांटिस के लिए इस खेल में ‘आकाश ही सीमा’ है.
पोल वॉल्ट के इतिहास के सर्गेई बुबका और अर्मांडा डुप्लांटिस दो ऐसे नक्षत्र हैं, जिनकी प्रतिभा और हैरतअंगेज कारनामों की चमक से बाक़ी की चमक फीकी पड़ जाती है. आकाश नापने के इनके प्रयासों की गाथा में बाकी सभी पोल वॉल्टर उस गाथा में उन दो से छूटे स्पेस और अंतरालों को भरने के निमित्त मात्र हैं.
कवर फ़ोटो | सोशल मीडिया से साभार
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