विन्सेंट वान गॉग के कला-मर्मज्ञ दोस्त डॉ.गैशे ने थियो को एक चिट्ठी में लिखा था – ‘कला के प्रति प्रेम’ सूक्ति विन्सेंट के मामले में सटीक नहीं बैठती, उसे ‘आस्था’ जैसा कोई नाम देना चाहिए, ऐसी आस्था जो शहादत की प्रेरणा देती है. [….]
भीष्म साहनी को श्रद्धांजलि देते हुए कमलेश्वर ने लिखा था – यह भी विरल घटना है कि भीष्म को जो यश हिन्दी से मिला वह उनके जीवित रहते हिन्दी का यश बन गया. हिन्दी में जिन लेखकों ने उजाड़े के साल को और समाज पर उसके असर को पूरी संवेदनशीलता से दर्ज किया है, भीष्म साहनी उन्हीं थोड़े से लेखकों में शरीक हैं. [….]
जब हम एक लेखक की ‘आत्मकथा’ पढ़ते हैं तो वह उन्हीं के शब्दों के माध्यम से अपनी ‘कहानी’ कहता है जो उसने अपनी कविताओं, उपन्यासों में प्रयोग किए थे किंतु जब एक चित्रकार या संगीतज्ञ अपने जीवन के बारे में कुछ कहता है तो उसे अपनी सृजन भाषा से नीचे उतर कर एक ऐसी भाषा का आश्रय लेना पड़ता है, जो एक दूसरी दुनिया में बोली जाती है [….]