देहरादून के एक मुशायरे की सदारत शहंशाहे-तरन्नुम शायर जिगर मुरादाबादी सदारत कर रहे थे. उन्होंने जब नीरज को सुना तो एक के बाद एक उनसे तीन कविताएं पढ़वाईं और हर कविता के बाद नीरज की पीठ ठोककर कहा था, “उम्रदराज़ हो इस लड़के की. क्या पढ़ता है, जैसे नग़मा गूंजता है.” [….]