नैनीताल का हैपी बर्थडे है आज

  • 3:02 pm
  • 18 November 2020

18 नवम्बर 1841. ‘द इंग्लिशमैन कलकत्ता’ अख़बार ने कुमाऊं की पहाड़ियों में अल्मोड़ा के क़रीब एक ख़ूबसूरत झील की खोज की घोषणा की. दुनिया के बीच नैनीताल खोज लिए जाने की मुनादी वाला यही दिन उसकी सालगिरह बन गया. नैनीताल का हैपी बर्थडे है आज.

नैनीताल की खोज का श्रेय रोज़ा (शाहजहांपुर) के शराब और चीनी के एक कारोबारी पीटर बैरन को दिया जाता है. “नोट्स ऑफ़ वांडरिंग्ज़ इन द हिमालय” में पीटर ने लिखा है, “हिमालय में डेढ़ हज़ार मील के दुर्गम सफ़र में इससे बेहतर नज़ारा मैंने कहीं नहीं देखा.” बाक़ी दुनिया के नैनीताल से परिचय का यह पहला ब्योरा है.

यों नैनी झील या उस वादी तक पहुंचने वाला पीटर पहला इंसान नहीं था, पहला यूरोपियन भी नहीं. घने जंगलों से घिरे उस इलाक़े में पहाड़ी आदिवासियों और गड़ेरियों को झील की मौजूदगी के बारे में बहुत पहले से मालूम था. झील को पवित्र मानने वाले इन लोगों ने यह जानकारी बाहर की दुनिया के लोगों से जानबूझकर छुपाए रखी ताकि लोगों की आवाजाही से वहां की पवित्रता भंग न हो.

शेर का डांडा की पहाड़ी को पार करके जंगलों से घिरी ख़ूबसूरत झील तक पीटर के पहुंचने की कई दिलचस्प कहानियाँ कही-सुनी जाती हैं. कुमाऊं में एक दिलकश झील की मौजूदगी के बारे में पीटर बैरन ने पहले से सुन रखा था, साथ ही यह भी कि स्थानीय लोग जानबूझकर बाहर के लोगों से यह बात छुपाते हैं. कुछ लोगों का मानना है कि अपने शिकारी दोस्त के साथ इलाक़े में घूम रहा पीटर रास्ता भटकर झील तक पहुंच गया था.

दूसरा क़िस्सा यह है कि पीटर के गाइड ने जब किसी ऐसी झील के बारे में जानकारी से इन्कार कर दिया तो पीटर ने उसके सिर पर एक बड़ा पत्थर रखा दिया कि झील के मिलने तक उसे वह पत्थर ढोना पड़ेगा क्योंकि उसका इरादा झील के किनारे घर बनाने का है और सुना है कि वहाँ पत्थर नहीं मिलते. पत्थर भारी था और गाइड ने उसके बोझ से पीछा छुड़ाने के लिए न सिर्फ़ झील के बारे में बताया बल्कि यह भी बताया कि वहाँ इफ़रात पत्थर मिलते हैं. यह वाक़या सन् 1839 का है.

कुमाऊं और गढ़वाल के सन् 1815 में ब्रिटिश हुकूमत के अधीन आने के बाद कुमाऊं डिविज़न के दूसरे कमिश्नर बने जॉर्ज विलियम ट्राइल दरअसल नैनीताल पहुंचने वाले पहले यूरोपियन रहे. राजस्व बंदोबस्त के लिए दौरे करते हुए 1823 में वह नैनीताल गए थे. पहाड़ों और चारागाहों से घिरी हुई इस ख़ूबसूरत झील और स्थानीय लोगों के लिए इसके धार्मिक महत्व का पता चलने के बाद उन्होंने नैनीताल की जानकारी किसी से साझा करने के बजाय इसे गोपनीय रखना ज़्यादा मुनासिब समझा.

बहरहाल, घुमक्कड़ पीटर को नैनीताल की नैसर्गिकता बहुत भायी, साथ ही वहां नए कारोबार की संभावना ने उसे आकर्षित किया. दो आने की सालाना लीज़ पर ज़मीन लेकर उसने वहाँ ‘पिलग्रिम लॉज’ के नाम से यूरोपियनों के लिए कॉलोनी बसाई. अभी जहाँ नैनीताल क्लब है, यह जगह उसके ऊपर की ओर हुआ करती थी. धीरे-धीरे और बस्तियाँ आबाद होनी शुरू हुईं, ख़ूबसूरत नज़ारों और बेहतरीन मौसम के चलते सैलानियों की आवाजाही शुरू हो लगी. सन् 1862 में ‘समर कैपिटल’ बनने के बाद नैनीताल में आबादी का ख़ूब विस्तार हुआ, बाज़ार, डाक बंगले और क्लबों के लिए तमाम इमारतें बनीं और यह सैलानियों की निगाह में भी चढ़ गया.

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