द नेम इज़ बॉण्ड… जेम्स बॉण्ड
उनके बाद कई बॉण्ड आए, आगे भी आते रहेंगे मगर ओरिजिनल बॉण्ड के तौर पर शॉन कॉनरी हमेशा याद किए जाएंगे. अपनी पुरकशिश शख़्सियत, अभिनय और ख़ास अंदाज़ के लिए. उम्रदराज़ अभिनेता के तौर पर वह जैसा बने रहना चाहते थे, बने रहे.
फ़िल्मी दुनिया के पहले जेम्स बॉण्ड शॉन कॉनरी कहा करते थे, ‘मैं हिचकॉक और पिकासो की तरह बूढ़ा होना चाहता हूँ – एक ख़ुशनुमा चेहरे वाला बूढ़ा.’ और 90 बरस की उम्र में शनिवार को कल जब उन्होंने दुनिया को ‘गुड बाय’ कहा तो उनकी यह ख़्वाहिश अधूरी नहीं रह गई थी. ज़माना उन्हें ख़ुशनुमा बूढ़े की तरह भी याद रखेगा. पीपुल मैग्ज़ीन ने जब उन्हें ‘सेक्सिएस्ट मैन अलाइव’ का ख़िताब दिया था, तब उनकी उम्र 59 साल थी.
बॉण्ड के किरदार में गहरे तक बंध गई अपनी पहचान और लोकप्रियता भले ही उन्हें उबाऊ लगती रही हो मगर यह भी सही है कि वह हमेशा ही असली जेम्स बॉन्ड के तौर पर याद किए जाते रहे और आगे भी याद किए जाएंगे. जेम्स बॉण्ड की भूमिका में पर्दे पर उनके कितने ही संवाद ‘स्टाइल स्टेटमेंट’ बन गए – ‘अ मार्टिनी, शेकेन नॉट स्टायर्ड.’, ‘शॉकिंग. पॉज़िटिवली शॉकिंग.’ या फिर ‘आय मस्ट बी ड्रीमिंग.’ और ख़ुद का परिचय देने वाला यह अंदाज़ भी – द नेम इज़ बॉण्ड… जेम्स बॉण्ड.
जेम्स बॉण्ड सीरीज़ में उनकी फ़िल्में डॉ.नो (1962), फ़्रॉम रशा विद लव (1963), गोल्डफ़िंगर (1964), थंडरवॉल (1965), यू ऑनली लिव ट्वॉयस (1967), डायमण्ड्ज़ आर फ़ॉर एवर (1971), नेवर से नेवर अगेन (1983) हैं. जेम्स बॉण्ड सीरीज़ की फ़िल्मों के अलावा उन्होंने तमाम किरदार निभाए हैं. 1987 में आई फ़िल्म ‘द अनटचेबल्स’ में शिकागो पुलिस का किरदार निभाने के लिए उन्हें ऑस्कर पुरस्कार मिला.
इसके साथ ही अल्फ़्रेड हिचकॉक की फ़िल्म मार्नी (1964), द विंड एण्ड द लॉयन (1975), जॉन ह्यूस्टन की फ़िल्म मैन हू वुड बी किंग (1975), स्टीवन स्पीलबर्ग की इंडियाना जोन्स एण्ड द लास्ट क्रूसेड (1989) और द हण्ट फॉर रेड अक्टूबर (1990) में उनकी भूमिकाएं यादगार बन गईं. सन् 2003 में आई ‘द लीग ऑफ़ एक्स्ट्राऑर्डिनरी जेंटलमेन’ उनकी आख़िरी फ़िल्म थी.
अपने स्कॉटिश होने पर उन्हें उम्र भर नाज़ रहा. स्वतंत्र स्कॉटलैंड आंदोलन के समर्थक थे, इसलिए उन्हें नाइटहुड से नवाज़ने का फ़ैसला टलता रहा, आख़िरकार सन् 2000 में उन्हें नाइटहुड दी गई – सर थॉमस शॉन कॉनरी.
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