‘बातों-मुलाक़ातों में शहरयार’ का उर्दू तर्जुमा कराची से भी छपा
पढ़ने-लिखने की दुनिया के लोगों को हमेशा ही इस बात पर एतबार रहा है कि किताबें आपसी रिश्तों को मज़बूत बनाने का बेहतर ज़रिया हैं. शहरयार पर प्रेम कुमार की किताब का उर्दू तर्जुमा कराची से छपने के मौक़े पर एक बार फिर यही बात याद आई है.
अलीगढ़ | कराची से एक ख़त आया है – राशिद अशरफ़ का. रस्मुलख़त उर्दू का है सो प्रो.अतहर सिद्दीक़ी ने हिंदी में अनुवाद करा के मेल किया. ख़त के मजमून में एक ख़ास बात यह भी है कि पाकिस्तान और हिंदुस्तान के आम लोगों के बीच प्रेम और सम्मान का रास्ता किताबों के ज़रिये भी बनाया जा सकता है.
राशिद अशरफ़ पेशे से इंजीनियर हैं और बीस किताबों के लेखक और संपादक भी. ‘ज़िंदा किताबें’ (अलाइव बुक्स) की सीरीज़ में 108 किताबें छाप चुके हैं. उनका यह ख़त इसी सीरीज़ में कथाकार प्रेम कुमार की किताब ‘बातों-मुलाक़ातों में शहरयार’ का उर्दू संस्करण छापने के हवाले से है. सन् 2013 में हिंदी में छपकर आई इस किताब में शहरयार के इंटरव्यू हैं और उनके बारे में प्रेम कुमार की स्मृतियाँ और संस्मरण.
बक़ौल राशिद, ‘बातों मुलाक़ातों में शहरयार’ को कराची से ‘ज़िंदा किताबें’ में छापना हमारे लिए एक सुखद अनुभव है. डॉ.प्रेम कुमार ने अपनी इस दिलचस्प किताब के ज़रिये निःसंदेह उर्दू साहित्य के एक शांत लेकिन अत्यधिक सम्मानित साहित्यकार के प्रयासों के विभिन्न पहलुओं पर रौशनी डाली है. पाकिस्तान में इस किताब को बहुत पसंद किया जा रहा है. ‘ज़िंदा किताबें’ के पाठकों ने इसकी सराहना की है.
पाकिस्तान से भारतीय पुस्तकों का प्रकाशन हमेशा एक मुश्किल मुद्दा रहा है. प्रो. अतहर सिद्दीक़ी साहब के अद्वितीय सहयोग के चलते हमारे लिए यह काम बहुत आसानी से पूरा हुआ. डॉ. प्रेम कुमार इसलिए भी बधाई के पात्र हैं कि उन्होंने कई कार्यक्रमों में अपने कठिन परिश्रम से शहरयार साहब जैसे शांत स्वभाव वाले शख़्स से कई अहम् बातें कहलवाईं. इंटरव्यूअर के नाते उन्होंने पूरी इमानदारी और बुद्धिमता के साथ अपनी भूमिका निभाई है. पाकिस्तान के पाठकों की तरफ़ से भी उन्हें बधाई है.
पाकिस्तान और हिंदुस्तान के आम आदमी एक दूसरे से नफ़रत हरगिज़ नहीं करते. वे एक-दूसरे से मिलना-जुलना चाहते हैं, संपर्क में रहना चाहते हैं. पाकिस्तान के लोग हिंदुस्तानी तथा हिंदुस्तान के लोग पाकिस्तानी साहित्य पढ़ना चाहते हैं. प्रेम और सम्मान का यह रास्ता किताबों के माध्यम से भी स्थापित हो सकता है.
शहरयार की ज़िंदगी पर अपने ढंग की इस अनूठी किताब का उर्दू अनुवाद एएमयू की पत्रिका ‘तहज़ीबुल अख़लाक़’ से किस्तों में छपा. यह अनुवाद ग़यास अहमद ने किया था. बाद में इसी उर्दू अनुवाद को प्रो.अतहर सिद्दीक़ी ने तरतीब दी और ब्राउन बुक्स ने हिंदी वाले शीर्षक से ही यह किताब उर्दू में छापी. एक लिहाज से कराची में इस किताब के छपने का आधार यही किताब बनी.
18 दिसंबर की फ़ेसबुक पोस्ट में इसका एलान करते हुए राशिद अशरफ़ ने लिखा है – प्रिंट ऑन डिमांड, किताब #2:ज़िंदा किताबों की श्रृंखला संख्या 107. मूल्यः 800…डाक के साथ रियायती दाम 600. डिज़िटल प्रिंटिंग में दूसरी किताब. इसे सीमित संख्या में प्रकाशित किया गया है.
इंटरव्यू के रूप में शहरयार की जीवनी.
भारत में अभी तक इस किताब की डिलीवरी शुरू नहीं हुई है. यह लेखक की अनुमति से एक सप्ताह की छोटी अवधि में ‘लिविंग बुक्स’ में प्रकाशित हुई है.
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