मीना कुमारी | महजबीं भी वही, और नाज़ भी

  • 9:47 pm
  • 31 March 2021

भारतीय सिनेमा की ट्रेजडी क्वीन मीनाकुमारी की फ़िल्में, नज़्में और ज़िंदगी के क़िस्से ज़ेहन में आते ही पाकिस्तान के शायर मोहसिन चंगेज़ी बरबस याद आते हैं, ‘सुख का किरदार निभाने के लिए उम्र तमाम, मैं ने रोती हुई आंखों से अदाकारी की.’

चार साल की उम्र में ही हालात ने महजबीं बानो के लिए मुन्तख़िब कर दिया कि वह बाल कलाकार ‘बेबी मीना’ बनें. सिनेमा के पर्दे पर भारतीय औरत की ट्रेजडी उतारने की ज़िद ने मशहूर अदाकारा ‘मीना कुमारी’ बनाया और पढ़ने के जुनून ने उम्दा शायरा ‘नाज़’. महजबीं बानो को मीना कुमारी का नाम प्रकाश पिक्चर्स के विजय भट्ट ने दिया.

क़रीब 33 साल के कॅरिअर में 90 से ज्यादा फ़िल्में कीं. कुछ वक़्त मिला तो पढ़ने-लिखने का शौक़ पूरा किया. इन सब में इस क़दर मसरूफ हुईं कि निजी ज़िंदगी की ट्रेजडी के बारे में सोचने का वक्त ही नहीं मिला. इश्क हुआ तो फ़िल्म निर्देशक और पटकथा लेखक कमाल अमरोही की दूसरी बीवी बनीं और तीन तलाक का दंश भी झेला. इस तरह ज़िंदगी भर सुकून का साहिल तलाशती रहीं.

फ़िल्मों के क़िरदार में उनकी शख़्सियत कैसे घुल-मिल जाया करती थी, ज़रा ग़ौर तो कीजिए,

दिल अपना और प्रीत पराई (1960):
ज़िंदगी में अगर तमाम तमन्नाएं पूरी हों तो ज़िंदगी कहां रही, अल्लादीन का चराग हो गई कि जो चाहा हासिल. ज़िंदगी तो अक्सर तमन्नाओं का गला घोंट देती है.
दिल अपना और प्रीत पराई एक घुटी-घुटी औरत की तस्वीर थी. ये मेरा दिलपसंद किरदार था.

आरती (1962): सौ बार अंधेरे छाए सौ बार ज़माने बदले, हम सूरज बनकर डूबे हम सूरज बनकर निकले. फिल्म आरती में मैं एक ऐसी औरत हूं, जिसे लोग मीनाकुमारी कहते हैं. शीतल, शांत, गंभीर. इस फिल्म का गीत ‘कभी तो मिलेगी, कहीं तो मिलेगी बहारों की मंजिल, राहें…‘ मुस्तक़बिल की उम्मीदें लेकर सदैव मेरे साथ रहा है और रहेगा.

काजल (1965): फ़ौजी भाइयों से फ़िल्म का ज़िक्र करते हुए कहा, ‘काजर-काजर सब कहैं जानत बस मन मोर, दीपक हृदय जराय कर उभरियो नैनन कोर.’ यह फ़िल्म एक ऐसी औरत की दास्तां है, जो आम भी है और ख़ास भी.

साहब बीबी और ग़ुलाम (1962): अक्सर मैंने अपने आप को घुटा-घुटा ही पाया या तो बिल्कुल बाग़ी. साहब बीवी और ग़ुलाम की छोटी बहू मेरी हमजाया थी. मैंने उससे बहुत-बहुत प्यार किया.

पाकीज़ा (1972): इस फ़िल्म को अपना शाहकार मानती थीं और मौत का अहसास हो जाने पर इस फ़िल्म और ज़िंदगी दोनों की अधूरी कहानी मुकम्मल की.
कभी किसी ने उनकी ज़िंदगी के बारे में पूछा तो कहा, ‘तुम क्या करोगे सुनकर मुझसे मेरी कहानी, बेलुत्फ़ ज़िंदगी के किस्से हैं फीके-फीके.’
सवाल उठाया बेलुत्फ़ क्यों तो कह कर टाल गईं, ‘ख़ुदा आपको लुत्फ़ भरी ज़िंदगी दे.’

तहज़ीब, अदब व एहसासात से भरी अदाकारा ने अपने हर क़िरदार को हूबहू जिया। उनका मानना था कि क़िरदार को महसूस करो तो बाक़ी सब ख़ुद ब ख़ुद हो जाएगा. यही वजह है कि उनके निभाए क़िरदार व उनके ज़रिए वह ख़ुद रहती दुनिया तक ज़िंदा रहेंगी.

मीनाकुमारी का अदबी मेयार उनकी ही आवाज़ में मशहूर संगीतकार ख़य्याम के रिकार्ड किए गए एलबम ‘आई राइट आई रीसाइट’ और गुलज़ार की किताब ‘मीनाकुमारी की शायरी’ में महफूज़ है.

महजबीं नाज़ की नज़्में

-एक-
चांद तन्हा है आसमां तन्हा
दिल मिला है कहां-कहां तनहा
बुझ गई आस, छुप गया तारा
थरथराता रहा धुआं तन्हा
जिंदगी क्या इसी को कहते हैं
जिस्म तन्हा है और जां तन्हा
हमसफर कोई गर मिले भी कहीं
दोनों चलते रहे यहां तन्हा
जलती-बुझती-सी रौशनी के परे
सिमटा-सिमटा सा इक मकां तन्हा
राह देखा करेगा सदियों तक
छोड़ जाएंगे यह जहां तन्हा…

-दो-
टुकड़े-टुकड़े दिन बीता, धज्जी-धज्जी रात मिली
जिसका जितना आंचल था, उतनी ही सौगात मिली
रिमझिम-रिमझिम बूंदों में, जहर भी है और अमृत भी
आंखें हंस दी दिल रोया, यह अच्छी बरसात मिली
जब चाहा दिल को समझें, हंसने की आवाज सुनी
जैसे कोई कहता हो, ले फिर तुझको मात मिली
मातें कैसी घातें क्या, चलते रहना आठ पहर
दिल-सा साथी जब पाया, बेचैनी भी साथ मिली
होंठों तक आते-आते, जाने कितने रूप भरे
जलती-बुझती आंखों में, सादा-सी जो बात मिली.

-तीन-
आह रूह
बोझल बोझल
कहाँ पे हाथ से कुछ छूट गया याद नहीं
न जाने किस के चीख़ने की ये आवाज़ आई
और एहसास दराड़ों में कैसे जा पहुँचा
नगर वीराँ
झरोके ख़मोश
मुँडेरें चुप ख़मोशी उफ़ कि ख़लाओं का दम भी घुटने लगा
अचानक आ गई हो मौत वक़्त को जैसे
हाए रफ़्तार की नब्ज़ें रुकें
दिल बैठ गया
कहाँ शुरू हुए ये सिलसिले कहाँ टूटे
न इस सिरे का पता है न वो सिरा मालूम


अपनी राय हमें  इस लिंक या feedback@samvadnews.in पर भेज सकते हैं.
न्यूज़लेटर के लिए सब्सक्राइब करें.