अनवर मक़सूद को ‘लूज टॉक’ का आयडिया तो ‘हार्ड टॉक’ से आया

  • 10:05 pm
  • 26 March 2020

उनके अब्बा के हारमोनियम का क़िस्सा यों तो काफी पुराना है मगर हिन्दुस्तानियों ने पिछले बरस इसके सुर कुछ इस तरह गुने कि ‘लूज़ टॉक’ की धूम मच गई. ‘माफ़ करना, ग़ुस्से में थोड़ा इधर-उधर हो जाता हूं…’ लोगों का तक़ियाक़लाम बन गया और इस नए वाले वायरस की आमद दर्ज होने से पहले ख़ासा वायरल हुआ.उमर शरीफ़ के शो की मार्फ़त एक बड़ा तबक़ा मोइन अख़्तर के नाम से पहले से वाक़िफ़ था मगर ‘लूज़ टॉक’ में अनवर मक़सूद और मोइन अख़्तर की जोड़ी और बेबाक़ बतकही इस क़दर मारक है कि जब से यह शो यूट्यूब पर मिला, लोगों ने इसके बेहिसाब लिंक दोस्तों से साझा किए हैं. और इन्हीं सैकड़ों शो में से ‘अब्बा का हारमानियम’ लोगों की ज़बान पर चढ़ गया.

पाकिस्तान में ‘लूज़ टॉक’ की शुरुआत सन् 2005 में एआरवाई टीवी पर हुई. इंटरव्यू की शक़्ल वाले इस शो की स्क्रिप्ट अनवर मक़सूद लिखते, और वही शो के भी होस्ट भी होते. तंज-ओ-मज़ाह के लेखक के तौर पर और इसी मिज़ाज के टेलीविज़न शो के लिए अपने मुल्क में वह ख़ासे मक़बूल हैं. और यह जानना ख़ासा दिलचस्प है कि इस शो का विचार उन्हें बीबीसी के शो ‘हार्ड टॉक’ से आया. पिछले दिनों बीबीसी के लिए शुमाइला ख़ान को दिए एक इंटरव्यू में अनवर मक़सूद ने बताया कि वह ‘हार्ड टॉक’ देखा करते थे और वह शो उन्हें पसंद था. उन्होंने मोइन अख़्तर से पूछा कि ‘हार्ड टॉक’ देखते हो? मोइन ने वजह पूछी तो अनवर ने कहा कि पहले देख लो फिर बात करेंगे. और बाद में उन्होंने ‘लूज़ टॉक’ नाम से ऐसा ही शो करने का प्रस्ताव किया. मोइन ने कहा – सेट बड़ा होना चाहिए. अनवर का जवाब था – बड़े सेट का क्या करना है? जब बातचीत अच्छी हो तो सेट मायने नहीं रखता. और फिर जो हुआ, सबने देखा. अनवर मक़सूद की यह बात भी सही साबित हुई कि बातचीत अच्छी होनी चाहिए. तो एक मेज़ और दो कुर्सियों से काम चल गया. मोइन अख़्तर ने ‘लूज़ टॉक’ के 389 शो किए, हर बार एक नया क़िरदार. ज़ाहिर है कि नया गेट अप, नई ज़बान औऱ नया लहज़ा भी. कुछ ख़ातून के क़िरदार भी किए और छा गए.

‘लूज़ टॉक’ में आवाम की ज़िंदगी के तमाम मसाइल होते और इस बहाने पाकिस्तानी हुक़ूमत और निज़ाम की ख़बर भी लिया करते. कई बार बहुल लोकल मसलों पर भी बात होती, मसलन कराची की सड़के, बिजली-पानी, क़ानून के इंतज़ाम पर मगर दुनिया से ग़ाफ़िल नहीं रहे. ख़ासतौर पर हिन्दुस्तान का क्रिकेट, सियासत और अदब भी. और मज़ा यह कि उस क़िरदार का कोई नाम नहीं होता था. पहचानने वाले उसके क़िरदार से ही पहचानते या क़यास लगाते. देखने वाले बरेली के एक शायर का क़िरदार शायद न भूले होंगे. बीबीसी को इंटरव्यू में अब्बा के हारमोनियम वाले सवाल पर अनवर ने बताया है कि आमतौर पर शो में वह हंसते नहीं थे मगर इस एपिसोड की रिकॉर्डिंग में तीन-चार मौक़े ऐसे आए कि उनकी हंसी छूट गई और वह हिस्सा फिर से रिकॉर्ड कराना पड़ा.

अनवर मक़सूद ने अपने शो में ही कई बार अपनी हैदराबाद दक्क़न की पैदाइश का ज़िक्र किया है. इंटरव्यू में वह एक बार हैदराबाद आने की ख़्वाहिश भी जताते हैं. बताया कि बंटवारे बाद अक्टूबर 1948 में उनका कुनबा जब पाकिस्तान चला गया तब वह आठ बरस के थे मगर हैदराबाद उन्हें याद है. हिमायतगंज में एक मीनार की मस्जिद के क़रीब अपने सोलह कमरों वाले घर की याद भी है. यों वह हिन्दुस्तान कई बार आए हैं, बंबई, दिल्ली और भी कुछ शहरों में गए मगर हैदराबाद न गए. मगर अब जाना चाहते हैं.
‘लूज़ टॉक’ के एक शो में मोइन ने हिन्दुस्तान के प्रधानमंत्री मनमोहन का रूप धर के इंटरव्यू दिया था. शुमाइला ने उनसे पूछा कि अगर उन्हें हिन्दुस्तान के मौजूदा वज़ीरे आज़म से इंटरव्यू का मौक़ा मिले तो क्या पूछेंगे? जवाब आया – मुग़लिया सल्तनत के तोहफ़े उर्दू, ग़ालिब और ताजमहल से बढ़कर कोई और हिन्दुस्तानी पहचान बता दीजिए. इसी तरह पाकिस्तान के वज़ीरे आज़म से वह पूछना चाहेंगे कि साल भर में अवाम को सिर्फ़ 19-20 का फ़र्क़ ही क्यों लगता है?

कवर फ़ोटोः फ़ेसबुक


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