चित्रकूट | तीर्थ के साथ ही कला-पुरातत्व में भी समृद्ध

चित्रकूट जाने से पहले जब किसी मित्र से इसकी चर्चा की तो उन्होंने तपाक से पूछा, “चित्रकूट में है ही क्या? क्या देखोगे?” उनके इस सवाल ने ही मेरी यात्रा का लक्ष्य निर्धारित कर दिया. एक सरल-सहज जिज्ञासु की तरह सोचा कि चलो इस बार यही खोज कर बताते हैं कि चित्रकूट में क्या-क्या है? मन ही मन चित्रकूट के इतिहास, भूगोल, व्यवसाय, सैलानियों के आकर्षण वाली जगहें, नदी, जंगल, कला, संस्कृति, मंदिर-आश्रम सारे पन्ने एक-एक करके खंगालने लगा. चित्रकूट के बारे में यह तथ्य कम रोचक नहीं कि यह देश के कुछ चुनिंदा शहरों में है, जिसका विस्तार दो राज्यों (उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश) की सीमाओं में है. उत्तर प्रदेश का हिस्सा चित्रकूट ज़िले में है तो मध्य प्रदेश का भू-भाग सतना ज़िले में है.

चित्रकूट के नगर देवता कामतानाथ हैं, जिन्हें राम का ही स्वरूप मानते हैं. कामतानाथ मंदिर के चारो तरफ़ कामदगिरी का पाँच किलोमीटर का परिक्रमा पथ आपको गुज़रे ज़माने की ट्रेकिंग की याद दिला सकता हैं. परिक्रमा पथ के एक ओर कामदगिरी वन की हरियाली है तो दूसरी तरफ़ बेशुमार छोटे-बड़े मंदिर, बीच-बीच में मिलने वाली दुकानें-बाज़ार इस परिक्रमा को और रोचक बनाते हैं. मान्यता है कि वनवास के दौरान राम क़रीब 11 साल तक चित्रकूट में रहे. दिवाली की अमावस्या पर श्रद्धालु अपनी मान्यता-मनौती के लिए यहाँ के मंदिरों में दीया जलाने दूर-दूर से आते हैं. 

मंदाकिनी नदी के दोनों किनारों पर पक्का बना राम घाट है. नदी का पाट कम होने के चलते दोनों तटो को चित्रकूट में आप आसानी से देख सकते हैं. मंदाकिनी में संध्या आरती के समय नाव में बैठकर पूजा-आरती में शामिल हुआ जा सकता है. यहाँ की नावें सुंदर, सुसज्जित और रंग-बिरंगी झालरों से ढंकी मिलती हैं. शाम के वक़्त घाटों के दोनों तरफ़ बैठे सैलानियों की भीड़, नाव में बैठे लोग, मंत्रोच्चार के स्वर, मंदाकिनी में झिलमिलाती रोशनी से एक अप्रतिम दृश्य की निर्मिती होती है, जो दिन भर की परिक्रमा की थकान भी भुला देता है.

चित्रकूट से क़रीब बीस किलोमीटर दूर गुप्त गोदावरी की दो शिला गुफाएं हैं. ऐसी मान्यता है कि गोदावरी नदी यहाँ गुप्त रूप से प्रवाहित हो रही है. सीढ़ियों से चढ़कर संकरे गुफा के रास्ते इस जगह पहुंचा जा सकता है. राम घाट पर स्थित मृगयेन्द्र शिव मंदिर कैलाश टीले की ऊंचाई पर स्थित है, मानते हैं कि यहाँ शिव की पूजा कर राम ने शिव से चित्रकूट में निवास करने की आज्ञा ली थी.

सती अनुसुइया आश्रम का भव्य बड़ा मंदिर मंदाकिनी नदी के उद्गम स्थल पर स्थित है. आश्रम के सामने से बहती मंदाकिनी और चारों तरफ़ हरियाली और खुलापन आश्रम के नाम को सार्थक करता है. यहाँ ऋषि अत्रि की पत्नी अनुसुइया का मंदिर है. कहते हैं कि यहाँ माता अनुसुइया ने सीता को पत्नी धर्म के उपदेश दिए थे.

मंदाकिनी के तट पर स्थित स्फटिक शिला पुरातत्व और जनमान्यता की अनुपम मिसाल है. कहते हैं कि राम और सीता के बैठने की जगह थी. जयंत की कथा, जनश्रुति इसी से जुड़ी हुई है.

चित्रकूट में देखने लायक़ महत्वपूर्ण जगहों में हनुमान धारा का विशेष महत्व है. यह पहाड़ियों पर स्थित एक जलधारा है, जहाँ कहते हैं कि लंका दहन के बाद हनुमान अपनी जलती हुई की पूँछ बुझाने के लिए आए थे. यहाँ तक पहुंचने के लिए अब रोप-वे बन गया है.

राघव घाट, गोयनका घाट, भरत मिलाप, हनुमान धारा, रामदर्शन, स्फटिक शिला, सती अनुसुइया आश्रम, आरोग्य धाम, भरतकूप जैसे मंदिर और कई ऐतिहासिक स्थल चित्रकूट के पर्यटन को और समृद्ध करते हैं. पहाड़ी से बहती मंदाकिनी की धारा इसके सौंदर्य को और बढ़ाती है.

रामघाट से तीन किलोमीटर दूर शिल्पकारों का गांव सीतापुर है. चित्रकूट की एक विशेषता यहाँ बनने वाले लकड़ी के खिलौने हैं. बनारस की तरह यहाँ बने खिलौने अलबत्ता जनसामान्य की निगाह में अभी नहीं आए हैं. यहां के कुछ शिल्पकार सुपारी से खिलौने बनाते हैं और इन शिल्पियों ने राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाई है .

गोबर से दीवार पर सजाई गई महबुलिया चित्रशैली आज भी दूर-दराज के गांवों में अपनी पहचान के साथ विद्यमान है. गुफा पेंटिंग के बहुत से महत्वपूर्ण स्थल चित्रकूट में विद्यमान है जो कला और पुरातत्व में दिलचस्पी रखने वालों के लिए अध्ययन और शोध का विषय रहे हैं.

सतना वाले हिस्से में रामघाट रत्नेश्वर मंदिर में रामायण के प्रसंगों के भित्ती चित्र भी देखने से ताल्लुक रखते हैं.

सोचा था कि दो दिन में चित्रकूट की यात्रा पूरी हो जाएगी, लेकिन जितने गहरे गया उसने ही मोती निकलते गए. पर्यटन, तीर्थाटन, साहित्य, इतिहास, पुरातत्व,लोकशिल्प और लोककला सब कुछ है चित्रकूट में. बस थोड़ा गहरे पानी उतरने की ज़रूरत है. चित्रकूट महिमा अमित… तुलसी ने पहले ही कह दिया है.

कवर | अतुल द्विवेदी

सम्बंधित

काष्ठ-शिल्प | चित्रकूट की एक और पहचान


अपनी राय हमें  इस लिंक या feedback@samvadnews.in पर भेज सकते हैं.
न्यूज़लेटर के लिए सब्सक्राइब करें.