पंजाब | मजदूरों के बग़ैर गेहूं की कटाई का संकट

  • 7:33 pm
  • 5 April 2020

जालंधर| गेहूं की फसल पककर तैयार है. और पंजाब के किसानों को कटाई के लिए आने वालों का इंतज़ार है. बिहार और यू.पी. समेत दूसरे सूबों से हर साल क़रीब आठ लाख मजदूर कटाई के लिए पंजाब आते रहे हैं. लॉकडाउन के चलते हालांकि इस बार उनके आने के आसार नहीं लगते. ऐसे में किसानों को सूबे के सात लाख मनरेगा मजदूरों का भरोसा हैं, पर मुश्किल यही है कि इनमें से ज़्यादातर फसल की कटाई के तरीके से वाकिफ़ नहीं हैं. कंबाइन मशीनें एक और विकल्प हैं मगर एक तो वे नाकाफ़ी हैं और दूसरे इन मशीनों के मालिक इनकी सर्विस-मरम्मत नहीं करा पाए हैं. मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने भरोसा दिलाया है कि गेहूं की फसल का एक भी दाना बेकार नहीं होने दिया जाएगा. फिर भी किसानों की चिंता बरकरार हैं.

प्रवासी मजदूरों की बनिस्बत सूबे में स्थानीय मजदूरों की तादाद काफी कम है. मालवा के बठिंडा, मुक्तसर, फरीदकोट और फाजिल्का जिलों में ही पंजाबी खेत मजदूर ज्यादा हैं. बाक़ी पंजाब फसल की कटाई के दौरान प्रवासी मजदूरों के हवाले रहता है. बाहर से आने वाले मजदूर 25 मार्च के आसपास पंजाब पहुंचकर डेरा डाल लेते थे. 70 के दशक से लेकर पिछली फसल तक यह सिलसिला क़ायम रहा है. रेलवे स्टेशनों और बस अड्डों पर बाहर से आने मजदूरों की भारी भीड़ रहती. किसान वहीं उनकी अगवानी करते थे. इस बार रेलवे स्टेशन और बस अड्डे सुनसान हैं. आवाजाही के तमाम रास्ते पूरी तरह बंद और किसान कमोबेश परेशानी के आलम में. जालंधर में खोजेवाला गांव के किसान प्रदुमन सिंह बताते हैं कि पूर्णिया से हर साल साठ मजदूर उनके यहां गेहूं की कटाई और धान की रोपाई के लिए पिछले चालीस सालों से आते रहे हैं. उन्हें फ़ोन पर इन मजदूरों की टोली के मुखिया गंगाशरण यादव से बात की तो उन्होंने भरोसा दिलाया कि रेलगाड़ियां चल पड़ें तो वे भी निकल पड़ेंगे. यह भी कि उनके लिए भी यह रोज़ी का मसला है. प्रवासी मजदूरों के ठेकेदार नरोत्तम दास के मुताबिक फिलहाल जो हाल पंजाब के किसानों का है, कमोबेश वैसा ही अपने-अपने घरों में बैठे मजदूरों का भी है.

लोहिया के जमींदार लक्ष्मण सिंह कंबोज कहते हैं, “कुदरत के कहर ने हमें पुरबिया मजदूरों की अहमियत का शिद्दत से एहसास कराया है. किसान अब भी उनका इंतजार कर रहे हैं. समझ से परे है कि वे नहीं आए तो हम क्या करेंगे?” पंजाब के लगभग हर किसान का घूम-फिर कर यही सवाल है. उन्हें लगता है कि किसी तरह मजदूर पंजाब पहुंच सकते तो ‘सोशल डिस्टेंसिंग’ का क़ायदा वे निभा लेते. जालंधर के गांव मंड के किसान गुरप्रीत सिंह कहते हैं कि वो तो लिखकर देने को तैयार है.

प्रवासी मजदूर किसानों का सहारा हैं तो आढ़तियों के बगैर भी किसान अधूरे हैं. पंजाब में 22 हजार से ज्यादा आढ़ती पंजीकृत हैं. किसानों की तरह ही आढ़तिए भी दिक्कत में हैं क्योंकि फसल की ख़रीद के दौरान हर आढ़ती के यहां 30 से 40 प्रवासी मजदूर काम करते हैं. फेडरेशन ऑफ आढ़ती एसोसिएशन ऑफ पंजाब के प्रधान विजय कुमार कालड़ा के मुताबिक प्रवासी मजदूर गेहूं की कटाई के लिए पंजाब नहीं आए तो किसानों के साथ-साथ आढ़तियों के कारोबार पर भी बुरा असर पड़ेगा.

चार अप्रैल को राज्य के खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री भारत भूषण आशू की अगुवाई में हुई बैठक में प्रवासी मजदूरों के नहीं पहुंच पान की सूरत में दूसरे विकल्पों पर लंबा विचार-विमर्श हुआ. तय हुआ कि जिला उपायुक्तों से मनरेगा मजदूरों की सूचियां मंगवाई जाएंगीं ताकि उन्हें गेहूं की कटाई में लगाया जा सके. व्यावहारिक दिक्क़त यही है कि लगभग 80 फ़ीसदी मनरेगा मजदूर फसल कटाई में दक्ष नहीं हैं. वे मंडियों में तो काम कर सकते हैं लेकिन खेतों में उन्हें मुश्किल पेश आएगी.

फ़ौरी दिक्क़त के साथ ही जून के बाद धान की रोपाई कैसे होगी, इस फ़िक्र से किसान अभी से जूझ रहे हैं.

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