राजेंद्र कृष्ण | कामयाब ही नहीं, नायाब रचने वाला गीतकार

  • 10:15 pm
  • 6 June 2021

यों राजेन्द्र कृष्ण फ़िल्मी दुनिया के ऐसे गीतकार हैं, जिन्होंने फ़िल्मों की कहानी, स्क्रिप्ट और संवाद भी लिखे. इन सभी विधाओं में उन्होंने अधिकार से लिखा और कामयाब भी रहे. मगर उनके चाहने वालों में उनकी पहचान गीतकार की ही है. चार दशकों में उन्होंने कितने ही ऐसे नायाब गीत रचे, जो अब भी पसंद किए जाते हैं.

जलालपुर जट्टां में जन्मे राजेंद्र कृष्ण दुग्गल ने पन्द्रह साल की उम्र में मुशायरों में जाना शुरू कर दिया था और उनकी शायरी को दाद भी ख़ूब मिलती. शायरी का शौक मगर अपनी जगह और ग़म-ए-रोजग़ार का मसला अपनी जगह. लिहाजा साल 1942 में उन्होंने शिमला म्युनिसिपल कार्पोरेशन में क्लर्क के तौर पर मुलाज़मत शुरू कर दी. इस नौकरी में हालांकि उनका मन रमता नहीं था और नौकरी के साथ उन्होंने लिखने-पढ़ने और मुशायरों में शिरकत करना जारी रहा.

यह वो दौर था, जब सांस्कृतिक कार्यक्रम के तौर पर मुशायरों-कवि सम्मेलनों की बड़ी धूम हुआ करती थी. अपनी पसंद के शायरों को सुनने सैकड़ों लोग दूर-दूर से मुशायरों में पहुंचते थे. शिमला में भी हर साल अजीमुश्शान ऑल इंडिया मुशायरा होता था. मुल्क भर के नामचीन शायर अपना क़लाम पढ़ने आया करते.

यह साल 1945 का वाक़या है. नौजवान राजेंद्र कृष्ण भी मुशायरे में शामिल थे. जब पढ़ने की बारी आई, तो उन्होंने अपनी ग़ज़ल का मतला पढ़ा, ‘‘कुछ इस तरह वो मेरे पास आए बैठे हैं/ जैसे आग से दामन बचाए बैठे हैं’’. इस शे’र को ख़ूब वाह-वाही मिली. दाद देने वालों में मजमे के साथ-साथ जिगर मुरादाबादी की आवाज़ भी शामिल थी.

जिगर मुरादाबादी की तारीफ़ से राजेन्द्र कृष्ण को अपनी शायरी पर एतमाद पैदा हुआ और उन्होंने शायरी और लेखन को ही पेशा बनाने का फ़ैसला कर लिया. बुलंद इरादे के साथ शिमला छोड़कर वह बंबई जा पहुंचे.

वहां उन्हें ज्यादा मशक़्कत नहीं करनी पड़ी. बसे पहले फ़िल्म ‘जनता’ की पटकथा लिखने को मिली. यह फ़िल्म 1947 में आई. उसी साल उनकी एक और फ़िल्म ‘जंज़ीर’ आई, जिसमें उन्होंने दो गीत लिखे. लेकिन उन्हें असली पहचान मिली ‘प्यार की जीत’ से. सन् 1948 में आई इस फ़िल्म में हुस्नलाल भगतराम के संगीत निर्देशन में उन्होंने चार गीत लिखे. फ़िल्म के सारे गाने ही सुपर हिट हुए. ख़ास तौर पर सुरैया की सुरीली आवाज़ से राजेन्द्र कृष्ण के गाने ‘तेरे नैनों ने चोरी किया मेरा छोटा-सा जिया परदेसिया’ ने जादू जगा दिया. यह गाना पूरे देश में ख़ूब मकबूल हुआ.

सन् 1948 में ही उन्होंने ऐसा एक और गीत लिखा, जिसने उन्हें कालजयी शोहरत दिलाई. महात्मा गांधी की हत्या से पूरा देश ग़मगीन था. राजेन्द्र कृष्ण बापू के जानिब अपने जज्बात एक गीत में ढाले. बोल हैं – ‘सुनो सुनो ऐ दुनियावालों बापू की ये अमर कहानी’. तक़रीबन तेरह मिनट लंबे इस गीत में महात्मा गांधी का ज़िंदगीनामा है. मोहम्मद रफ़ी की आवाज़ ने इस गाने को नई ऊंचाइयां दीं. इस गीत के बोल की कशिश और असर आज तक बरक़रार है.

उनके गीतों की कामयाबी का सिलसिला एक बार शुरू हुआ, तो उन्हें फिर पीछे मुड़कर देखने की ज़रूरत नहीं पड़ी. एक के बाद ऐसी कई फ़िल्में आईं, जिनके गीतों ने धूम मचा दी. सन् 1949 में ‘बड़ी बहन’ में उन्हें एक बार फिर संगीतकार हुस्नलाल भगतराम के साथ काम करने का मौक़ा मिला. इसके भी सारे गाने हिट हुए. ख़ासतौर पर ‘चुप-चुप खड़े हो ज़रूर कोई बात है, पहली मुलाकात है ये पहली मुलाकात है’ और ‘चले जाना नहीं..’ ने नौजवानों को दीवाना बना दिया.

इसी तरह ‘बहार’ (1951) में शमशाद बेग़म का गाया गीत ‘सैंया दिल में आना रे, ओ आके फिर न जाना रे’ भी खूब मक़बूल हुआ. इन गानों ने राजेन्द्र कृष्ण को गीतकार के तौर पर स्थापित कर दिया. 1953 में फिल्म ‘अनारकली’ और साल 1954 में आई ‘नागिन’ में उनके लिखे सभी गाने सुपर हिट हुए. इन गानों की कामयाबी ने उनका नाम देश के घर-घर तक पहुंचा दिया.

फ़िल्म ‘अनारकली’ में वैसे तो उनके अलावा तीन और गीतकारों जांनिसार अख़्तर, हसरत जयपुरी और शैलेन्द्र ने भी गीत लिखे, मगर राजेन्द्र कृष्ण के लिखे सभी गीत ख़ूब पसंद किए गए. उनके लिखे गीतों ‘जिंदगी प्यार की दो-चार घड़ी होती है..’, ‘जाग दर्दे-ए इश्क जाग’, ‘ये ज़िंदगी उसी की है’ और ‘मोहब्बत में ऐसे कदम डगमगाए’ को हेमंत कुमार और लता मंगेशकर की जादुई आवाज़ ने और बुलंदियों पर पहुंचा दिया.

इसी फ़िल्म से उनकी जोड़ी संगीतकार सी. रामचंद्रा के साथ बनी. इस जोड़ी ने आगे चलकर कई सुपर हिट फिल्में ‘पतंगा’, ‘अलबेला’, ‘पहली झलक’, ‘आज़ाद’ आदि दीं. फ़िल्म ‘नागिन’ की क़ामयाबी के पीछे भी राजेन्द्र कृष्ण के इन गीतों का बड़ा योगदान रहा – ‘मन डोले, तन डोले, मेरे दिल का गया क़रार रे’, ‘मेरा दिल ये पुकारे आ जा’, ‘जादूगर सैयां छोड़ मोरी बैयां’, ‘तेरे द्वार खड़ा इक जोगी’, ‘ओ ज़िन्दगी के देने वाले, ज़िन्दगी के लेने वाले’.

संगीतकार हेमंत कुमार के शानदार संगीत और गायिका लता मंगेशकर की आवाज़ ने इन गीतों को जो ज़िंदगी दी, वह आज भी बहुतों के दिलों की धड़कन की तरह हैं. सरल, सहज ज़बान में लिखे उनके गीत लोगों के दिलों में बहुत जल्दी अंदर तक उतर जाते थे. जहां उन्हें मौका मिलता, उम्दा शायरी भी करते.

संगीतकार मदन मोहन के लिए उन्होंने जो गाने लिखे, वे अलग ही रंग के नज़र आते हैं. मिसाल के तौर पर ‘अदालत’ के लिए उनकी लिखी ग़ज़लें ‘उनको ये शिकायत है कि हम कुछ नहीं कहते’, ‘जाना था हमसे दूर बहाने बना लिये’ और ‘यूं हसरतों के दाग़ मुहब्बत में धो लिये’.

अपनी मखमली आवाज़ से पहचाने जाने वाले गायक तलत महमूद के जितने सुपर हिट गीत हैं, उनमें से ज्यादातर राजेन्द्र कृष्ण के लिखे हुए हैं. ‘ये हवा ये रात ये चांदनी तेरी इक अदा पे निसार है’, ‘बेरहम आसमाँ मेरी मंज़िल बता है कहां’, ‘हमसे आया न गया, तुमसे बुलाया न गया’, ‘इतना न मुझ से तू प्यार बढ़ा’, ‘आंसू समझ के क्यूं मुझे आँख से तुमने गिरा दिया’, ‘फिर वही शाम वही ग़म वही तनहाई है’, ‘मैं तेरी नज़र का सुरूर हूं, तुझे याद हो के न याद हो’ को मिसाल के तौर पर याद कर सकते हैं.

संगीतकार हेमंत कुमार के साथ भी उनकी जोड़ी अच्छी जमी. ‘नागिन’ के अलावा ‘मिस मैरी’, ‘लगन’, ‘पायल’, ‘दुर्गेश-नन्दिनी’ वग़ैरह फ़िल्मों में इस जोड़ी ने कई नायाब नग़मे दिए. ज़िंदगी के हर रंग और हर भाव पर उन्होंने गीत लिखे. उनके सुपर हिट गीतों की एक लंबी फेहरिस्त है – ‘कौन आया मेरे मन के द्वारे पायल की झंकार लिए’ ‘चल उड़ जा रे पंछी कि अब ये देश हुआ बेगाना’, ‘तुम्हीं हो माता, पिता तुम्हीं हो, तुम्हीं हो बन्धु सखा तुम्हीं हो’, ‘जहां डाल डाल पर सोने की चिड़ियां करती हैं बसेरा’.

उन्होंने कई कॉमेडी और अनूठे गीत भी रचे. जो अपनी ज़बान और अलबेले अंदाज की वजह से अलग ही पहचाने जाते हैं – ‘शाम ढले खिड़की तले तुम सीटी बजाना छोड़ दो’, ‘मेरे पिया गए रंगून, वहां से किया है टेलिफ़ून’, ‘ओ मेरी प्यारी बिन्दु’, ‘इक चतुर नार करके सिंगार’, ‘ईना मीना डीका’.

क़रीब 300 फ़िल्मों के लिए एक हज़ार से ज्यादा गीत उन्होंने लिखे. सौ से ज्यादा फ़िल्मों की कहानी, संवाद और पटकथा लिखीं. उनकी लिखी कुछ प्रमुख फ़िल्में ‘पड़ोसन’, ‘छाया’, ‘प्यार का सपना’, ‘मनमौजी’, ‘धर्माधिकारी’, ‘मां-बाप’, ‘साधु और शैतान’ हैं. एक वक्त ऐसा भी था, जब राजेन्द्र कृष्ण उन्हीं फ़िल्मों में गीत लिखते थे, जिसमें उनके संवाद और पटकथा होती थी.

अपने फ़िल्मी लेखन के बारे में उनके एक इंटरव्यू में कैफ़ियत थी, ‘‘आम तौर पर एक फ़िल्म में छह या सात गीत होते हैं. जिसमें रोमांटिक सिचुएशन ज़्यादा होती है. उसमें तो कोई पैग़ाम नहीं दिया जा सकता. मगर क्योंकि मैं स्क्रिप्ट राइटर भी हूं, संवाद भी लिखता हूं तो इसलिए कोई न कोई सिचुएशन ऐसी निकाल लेता हूं, जिसमें देशभक्ति, भजन, या समाजवाद की बात हो या ग़ज़ल हो जाए.’’ उनको जब भी मौक़ा मिला, उन्होंने अपने गीतों और संवादों से कोई सार्थक संदेश देने की कोशिश की.

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