किसी सिपाहसालार नहीं, सूफ़ी बुज़ुर्ग के नाम पर है बख़्तियारपुर

  • 2:53 pm
  • 22 September 2020

– अतीत जानने के लिए पढ़ना होगा, गढ़े हुए क़िस्सों से इतिहास नहीं बनता –
एक बार क़ुतुबमीनार देखने गया. वहाँ के गाइड ने बताया के यह ग़ुलाम वंश के पहले बादशाह क़ुतुबउद्दीन ऐबक के नाम पर बनी है, पर दर हक़ीक़त वो वहीं पास में आराम फ़र्मा रहे एक सूफ़ी बुज़ुर्ग हज़रत बख़्तियार क़ुतुब काकी के नाम पर है. इसी तरह की कई मनगढ़ंत या फर्ज़ी कहानियाँ हमें देश के अलग-अलग हिस्से में सुनने को मिल जाती हैं.

अब यही मामला देख लीजिए… हमारे कुछ जानने वाले हैं, अभी पटना ज़िले के एक बिल्कुल ही छोटे से क़स्बे बख़्तियारपुर का नाम बदलने को लेकर आंदोलन की बात कर रहे हैं. उनका कहना है कि इस जगह का नाम बख़्तियारपुर एक तुर्क सिपाहसालार बख़्तियार ख़िलजी के नाम पर है, जिसने नालंदा और आसपास के इलाक़े पर क़ब्ज़ा किया था. और साथ ही यहाँ पर मौजूद बुद्ध मत के केंद्र नालंदा यूनिवर्सिटी को तबाह कर दिया था. ठीक है…

अब आते हैं मुद्दे पर, पटना ज़िला में एक क़दीमी क़स्बा है – बाढ़. इसके क़दीम होने की कई वजहें हैं. इसमें एक वजह है – वहाँ गंगा किनारे मौजूद उमानाथ मंदिर. इस शहर में सन् 1812 के दौरान डी.एच. बुकनान आए. वो मगध के इलाक़े का सर्वे करने आए थे. डी.एच. बुकनान बाढ़ में कई दिन रहे. उन्होंने कई जगहों दौरा किया, और हर जगह के बारे में विस्तार से लिखा. उन्होंने बाढ़ को बार (Bar) लिखा है, मगर बख़्तियारपुर के बारे में उन्होंने कुछ भी नहीं लिखा. बख़्तियारपुर अगर सचमुच कोई समृद्ध इलाक़ा होता तो उसका ब्योरा लिखा जाता, क्यूँकि उन्होंने बख़्तियारपुर के आसपास के तमाम इलाक़े दुरियापुर, हुलासगंज, हिलसा और बिहार(शरीफ़) का दौरा किया, सबके बारे में कई पन्ने लिखे. पर बख़्तियारपुर के बारे में एक शब्द लिखना मुनासिब नहीं समझा.

वैसे बख़्तियारपुर के आसपास कई गाँव हैं – सलीमपुर, ख़ुसरुपुर, हसनचक, मोईनपुर, हाजीपुर, बुर्हनापुर, बाज़िदपुर, इब्राहीमपुर, मुबारकपुर, सैदपुर, तालिबपुर, नेज़ामपुर, मसूदबिघा, मोहीउद्दीनपुर आदि. अब इन नामों पर ग़ौर कीजिए. इनमें से अधिकतर नाम किसी न किसी बुज़ुर्ग सूफ़ी के नाम पर है, मसलन सलीमपुर फ़तेहपुर सिकरी वाले हज़रत सलीम चिश्ती, बाज़िदपुर बस्ताम के बायज़ीद बस्तामी, ख़ुसरुपुर दिल्ली वाले अमीर ख़ुसरू, नेज़ामपुर दिल्ली के हज़रत निज़ामउद्दीन औलिया, मसूदबिघा भी सालार मसूद के नाम पर है. ठीक वैसे ही बख़्तियारपुर का नाम क़ुतुब उल अक़ताब, ख़्वाजा सय्यद मुहम्मद बख़्तियार अलहुस्सैनी क़ुतुबउद्दीन बख़्तियार काकी के नाम पर है. बाक़ी कुछ नाम क़ाज़ियों और ज़मींदारों के नाम पर है.

इस सिलसिले में हमने पुरातत्ववेत्ता डॉ. अनंत आशुतोष द्विवेदी से बात की. उन्होंने बिहार और ख़ास कर मगध के इलाक़े में ही पुरातात्विक महत्व की कई बड़ी साइट्स की खुदाई अपनी निगरानी में कराई है, अब भी करा रहे हैं. डॉ. द्विवेदी का मानना है कि बख़्तियार ख़िलजी, जिसने पूरे इलाक़े को जीत लिया था, वो किसी देहात का नाम अपने नाम पर क्यूँ रखता? अगर उसे अपने नाम पर कुछ रखना होता तो वो आज के बिहार शरीफ़ का नाम अपने नाम पर रखता क्यूँकि उस समय राजधानी तो वही थी. उनके अनुसार बख़्तियारपुर वैसे भी पुरातत्व विभाग के लिए कोई बहुत महत्वपूर्ण जगह नही है.

मेरी तरह उनका भी यह मानना है कि किसी सात सौ साल पुराने गाँव का नाम आज तक बरक़रार रहना नामुमकिन है, वो भी उस समय जब वक़्त के साथ इलाक़े में कई बड़े बादशाह और सिपाहसालार गुज़रे, जिनमें शेरशाह सूरी और मान सिंह का नाम महत्वपूर्ण है.

असल में बख़्तियारपुर का नाम उस समय अमर हो गया, जब सन् 1866 में हावड़ा-दिल्ली मेन रेलवे लाइन की शुरुआत हुई. उस समय गुलज़ारबाग़ और बाढ़ में अफ़ीम के गोदाम हुआ करते थे. अंग्रेज़ों ने रेल लाइन गुलज़ारबाग़ और बाढ़ के बीच बिछाई. इस रेल लाइन के ज़द में कई गाँव आए, तो सहूलियत के हिसाब से छोटे-छोटे कई स्टेशन बनाए गए, और उन्हीं में से एक बख़्तियारपुर में भी बना. सन् 1902 में इसमें तलैया लाइन भी जुड़ी और तब यह छोटा-सा स्टेशन जंक्शन बन गया, और बख़्तियारपुर जंक्शन के नाम से जाना गया.

बाढ़ और आसपास के इलाक़े में वक़्त के साथ बहुत सारी जगह के नाम ख़ुद-ब-ख़ुद बदल गए, जैसे क़ाज़ी बुरहानद्दीनचक अब बूढ़न्नीचक हो गया, बार ख़ुद बाढ़ हो गया, बेहार (Behar) भी बिहार (Bihar) हो गया, पटना सिटी का एक अंग्रेज़ पर बना ‘मैंगिल्स टैंक’ हिन्दुओं का पवित्र मंगल तालाब हो गया, तो एक अंग्रेज़ के नाम पर बसा मुहल्ला बेकरगंज आज किसी मुस्लिम के नाम पर बसा हुआ समझा जाता है, ये तमाम वो जगहें हैं, जिनका लगभग पांच सौ साल तक के इतिहास का रिकॉर्ड है, पर वक़्त के साथ इलाक़ों के नाम बदल गए. लेकिन एक बख़्तियारपुर है, जो मुख्यमंत्री नितीश कुमार का अबाई वतन होने के बाद भी एक देहात से अधिक कुछ नहीं, पर उसका नाम पिछले सात सौ सालों से एक ही है. ग़ज़ब!

बख़्तियारपुर का नाम सिर्फ़ आम लोगों की चेतना में और ज़बान पर रह गया क्यूँकि यह हाल का बसा हुआ एक गाँव है, और इसके सामने से रेलवे की लाइन गुज़र गई. और स्टेशन का नाम उसी गाँव के नाम पर रख दिया गया. इसी स्टेशन की वजह कर एक गाँव को शहर के नाम से जाना गया. वर्ना आज भी इस छोटे से क़स्बे में नितीश कुमार के घर के अलावा यहाँ कुछ भी नहीं है. एक तिराहा सड़क है, और एक रेलवे जंक्शन, बस!

बाक़ी बख़्तियारपुर के पास अलीपुर, महमूदपुर, अकबरपुर, इब्राहीमपुर, मुहम्मदपुर, मोबारकपुर, निज़ामपुर, मुस्तफ़ापुर आदि जैसे सैकड़ों गाँवों को कौन पूछता है! वैसे मैंने ऊपर जितने भी गाँव और मुहल्लों के नाम गिनाए, उनमें अधिकतर ऐसे हैं, जहां मुस्लिमों की आबादी है ही नहीं. अब फिर उस पर बात शुरू होगी कि इसका नाम ऐसा कैसे? उसकी भी कहानी है, लेकिन उसे समझने के लिए पढ़ना होगा. क्या करना होगा? ‘पढ़ना’ होगा… पर आपको तो इलेक्शन का माहौल देख सियासत करनी है, कीजिए… वैसे नाम क्या रखना है? पंडित शीलभद्र याजी के नाम पर रखने की माँग ज़माने से की जा रही है, पर नितीश कुमार हमेशा इन्कार करते आ रहे हैं. शायद वह ख़ुद के नाम पर इस जगह का नाम ‘सुशासनपुर’ रखना चाहते हों.

(लेखक एजेके मास कम्युनिकेशन रिसर्च सेंटर में अध्येता हैं. बाढ़ के रहने वाले हैं)

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