कैटलॉग | स्टीफ़न हर्बर्ट की फ़ोटो प्रदर्शनी ब्राज़िलिया-चंड़ीगढ़
नवम्बर, सन् 2008 का यह कैटलॉग स्टीफ़न हर्बर्ट की प्रदर्शनी में शामिल रही ढेर सारी तस्वीरों के साथ ही कई ऐतिहासिक संदर्भ का दस्तावेज़ भी है. बीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध में आबाद हुए दो शहर जो उत्तर-आधुनिक वास्तुकला का नायाब नमूना हैं, एक देश की राजधानी है तो दूसरा दो सूबों की, कंक्रीट और क़ुदरत के अनूठे तालमेल के बीच बसे इंसानों की कितनी ही कहानियां इन तस्वीरों में देखी-सुनी जा सकती हैं.
ब्राज़िलिया, यूनेस्को ने जिसे 1987 ईस्वी में ही लुसियो कोस्टा की शहरी स्थापत्य की विलक्षण कलात्मक उपलब्धि मानते हुए इसे विश्व धरोहर का दर्जा दे दिया था. और इसी तरह की दावेदारी वाला ली कार्बूजिए की कल्पना का शहर चंडीगढ़ (जिसके हिस्से में यह ख़िताब आया ज़रूर, मगर काफ़ी इंतज़ार के बाद. कैपिटल कॉम्प्लेक्स को यूनेस्को की विश्व धरोहर स्मारकों की सूची में 2016 में जगह मिली).
स्टीफ़न की तस्वीरों की एक ख़ूबी तो उनमें निहित ‘अकथ कहानियां’ हैं ही, इस्पात और कंक्रीट में ढले आकारों में कविता के तत्व तलाश कर उन्हें तस्वीरों में लाना भी यक़ीनन चुनौती रही होगी, जिसे उन्होंने मनोयोग से निबाहा है. बक़ौल स्टीफ़न, ‘तरल सौंदर्य’ रचने वाले ब्राज़िलिया और ‘अकथनीय विस्तार’ वाले चंडीगढ़ के वास्तुशिल्प के चलते इन शहरों में बेशुमार खुलापन है और आज़ादी का शांत बोध भी – गतिशील बने रहने की आज़ादी, हवाओं और सूर्य रश्मियों को बिखरने की आज़ादी भी. और ये सारे तत्व फ़ोटोग्राफ़र के लिए अच्छी ख़ासी चुनौती भी बन जाते हैं.
वह कहते हैं कि शहरीकरण और प्रकृति का उद्दात रूप इन शहरों की विरासत है. भले ही ये हज़ारों मील के फ़ासले पर हैं, दो अलग-अलग देशों में है मगर यहां बसे लोगों को अपनी इस विरासत पर फ़ख्र है. आप इसे पसंद करें या न करें मगर एक बात पक्की है कि इनसे हम ‘शहरों को जीना’ तो सीख ही सकते हैं.
स्टीफ़न की तस्वीरें इन दो अलग-अलग शहरों में, जगहों- इमारतों में, उनकी ज्यामिति, घुमाव और कोणों में लोगों में और उनकी जीवन-शैली में साम्य तलाश लेती हैं और उन्होंने दीवार पर ये तस्वीरें इसी तरह लगाई थीं, जैसे कि कैटलॉग में – ब्राज़िलिया और चंडीगढ़ की तस्वीरों का एक युग्म, एक जगह.
ये तस्वीरें ग्वाटेमाला में पैदा हुए ऐसे फ़ोटोग्राफ़र की निगाह से शहर को देखना था, जो फ़्रांस में ली कार्बूजिए की डिज़ाइन की हुई एक इमारत में बरसों रहा हो और फिर अचानक उन्हीं के नज़रिये पर बना एक पूरा शहर जिसकी निगाहों के सामने खुल गया हो.
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कैटलॉग | इण्डिया – हेनरी कार्तिए-ब्रेसाँ
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