सेंट पीटर्सबर्ग | नए तजुर्बों की दुनिया में वह पहला सफ़र

फ़ोटोग्राफ़र के तौर पर तजुर्बा हासिल करने के लिहाज़ से यों तो हर दिन ख़ास ही होता है. जब आप काम कर रहे होते हैं तो दरअसल कुछ नया सीख भी रहे होते हैं. फिर भी सन् 2015 मेरे लिए बेहद ख़ास और अहम् था. उस साल मैं बहुत फ़ुर्सत से घूमा-फिरा, साथ ही कड़ी मेहनत करके बहुत कुछ सीखा भी.

इसकी शुरुआत भी दो साल पहले बड़े दिलचस्प और ड्रामाई अंदाज़ में हुई थी. मैं एक फ़ोटो-प्रदर्शनी देखने दिल्ली गया हुआ था और वहीं मुझे वह फ़ोटोग्राफ़र भी मिल गए, जिनके काम का मैं अर्से से मुरीद रहा हूँ. मुझे लगा कि यह बढ़िया मौक़ा है. तो उस मुलाक़ात में मैंने उनकी शागिर्दी की दरख़्वास्त भी कर डाली. जवाब मिला – अपना पोर्टफ़ोलियो लेकर कभी स्टुडियो आना, इस बारे में तभी बात करेंगे.

मैंने इस बारे में पापा से बात की. उनकी इज़ाज़त मिल गई तो कुछ दिनों बाद अपनी तस्वीरें लेकर मैं दिल्ली चला गया. स्टुडियो में उनसे मिला, अपना काम दिखाया. मेरे खींचे फ़ोटोग्राफ़ वह ग़ौर से देख रहे थे और उनकी प्रतिक्रिया जानने के लिए मैं उनका चेहरा. फ़ोटोग्राफ़ी के माहौल में ही बड़ा हुआ हूँ, कैमरा समझना-बरतना कम उम्र में ही जान गया था और लंबे समय से फ़ोटो खींचता भी रहा हूँ मगर कुछ व्यवस्थित ढंग से सीखने की ख़्वाहिश और कुछ उनकी फ़ोटोग्राफ़ी का असर. तो जब उनकी सम्मति मिली तो मैं बेहद ख़ुश हुआ था. उन्होंने कहा, “ठीक है, तीन महीने के लिए मेरे पास आओ.”

फिर साल 2015 आया, जब मैं उनके सहायक के तौर पर काम करने गया.

कुछ दिनों तक मेरे काम करने का तरीक़ा देख लेने के बाद उन्होंने मुझे एक शूट पर रूस चलने का न्योता दिया. मैं ख़ासा उत्साहित था. यह मेरे अनुभव की दुनिया के विस्तार का अहम् मौक़ा साबित होने वाला था – मेरा पहला अन्तर्राष्ट्रीय ट्रिप भी. नई संस्कृति और नए लोगों को जानने के साथ ही नई तरह का काम करने का पहला मौक़ा.

हमें वहाँ प्रॉडक्ट शूट’ के लिए जाना था – हिन्दुस्तानी पोशाक की तस्वीरें बनानी थीं. कई ब्रांड्स ने शूट के लिए तक़रीबन 40-45 पोशाकें हमें दे रखी थीं. तो क़रीब 30-30 किलो वज़न वाले चार सूटकेस हमारे साथ थे. फिर क्योंकि वहाँ सर्दियों का मौसम था तो हमारे अपने कपड़े भी अच्छे-ख़ासे थे. हिसाब लगाया तो मालूम हुआ कि हमारा बैगेज ओवरवेट होने लगा था. तो कुछ सामान मैंने अपने हैंड बैगेज में रखने की सोची. फिर भी बैगेज तय सीमा से क़रीब सात किलो ज़्यादा हो रहा था. इसमें वह सब कुछ था, जो साथ ले जाना ज़रूरी था.

नतीजा यह कि अपनी कैमरा किट में से कुछ चीजें मुझे छोड़नी पड़ीं और इनमें कई लेंस भी थे. एक 24-70 मिलीमीटर के लेंस के सिवाय बाक़ी सारे लेंस मुझे बरेली में ही छोड़ने पड़े. इस मजबूरी के चलते मैं कुछ निराश था, थोड़ा उदास भी कि मैं किट लेकर नहीं जा पा रहा था. फिर ख़ुद को समझाया कि ज़्यादा ज़रूरी तो उद्देश्य है और उद्देश्य था मेरा सीखना.

सफ़र का पहला दिन

    वह तारीख़ 11 अगस्त थी. सेंट पीटर्सबर्ग के लिए दिल्ली से हमारी उड़ान रात को 9.50 बजे थी. हम तीन घंटे पहले एयरपोर्ट पहुंच गए थे. कस्टम ऑफ़िस में जाकर अपने साथ ले जा रहे कैमरा-लैपटॉप वगैरह की डिटेल्स दर्ज कराई और सिक्योरिटी चेक के बाद हमारे पास क़रीब दो घंटे ख़ाली थे. फ़ूड कोर्ट में खाना खाया और क़रीब सवा नौ के बाद बोर्ड करने की उद्घोषणा के बाद अपनी सीट पर जा बैठे.

    हमारा पहला स्टॉप दुबई था. क़रीब दस घंटे के इस लेओवर में मैं एक मिनट भी नहीं बैठा. मारे उत्साह के मैंने एमिरेट्स का पूरा टर्मिनल छान मारा था. कभी गैजेट्स के स्टॉल पर जाकर ठहर जाता तो कभी गाड़ियों को निहारता फिरता. सारा समय मैंने यूं ही भटकते हुए बिता दिया. वहाँ से सवेरे क़रीब दस बजे रवाना हुई हमारी फ़्लाइट दोपहर को तीन बजे सेंट पीटर्सबर्ग पहुँची.

    वहाँ एयरपोर्ट पर पहले हमें सिक्योरिटी चेक के लिए बुलाया गया मगर फिर रोक दिया गया. चूंकि रोकने की कोई वजह हमें नहीं बताई गई थी तो हम इसी उधेड़बुन में लगे रहे कि आख़िर माज़रा क्या है. हमारे साथ ही श्रीलंका और पाकिस्तान से आ रहे लोग भी थे. थोड़ी देर बाद उन लोगों को तो जाने की इज़ाज़त मिल गई. मगर हम सिक्योरिटी वालों के मेहमान बने रहे. उतनी देर में फ़िल्मों में देखे हुए स्मगलर और जासूसों के चेहरे भी याद आते रहे. पूरे दो घंटे तक वे जाने क्या तहक़ीकात करते रहे, फिर हमें भी रुख़सती की इज़ाज़त मिल गई.

    हमें या हमारे सामान को लेकर सिक्योरिटी के लोगों की जिज्ञासा क्या थी, ये तो वे ही जानते होंगे मगर मुझे एक फ़ायदा ज़रूर हुआ. रोके गए मुसाफ़िरों में पाकिस्तान से आ रहा एक शेफ़ भी था. मुश्किल की घड़ी में यों भी अजनबी लोगों के बीच दोस्ती स्वाभाविक बात है, सो कुछ देर की बातचीत में हमारी दोस्ती गई. उसने हमें अपने रेस्तराँ आने का न्योता भी दिया.

    तो उतनी गहरी जाँच-पड़ताल से गुज़रकर जब हम बाहर निकले तो कोई फ़िल्मी दृश्य फिर दिमाग़ में घूम गया – हमें लेने के लिए आए उन सज्जन की सजधज और मुखमुद्रा थी ही ऐसी. चमकती हुई चाँद वाले उस शख़्स ने काले रंग का सूट पहन रखा था, आखों पर काला चश्मा चढ़ा हुआ था. और पहली नज़र में उनका चेहरा ख़ासा सख़्त लगा था. उनके इशारे पर सामान रखकर हम उनकी मर्सिडीज़ वैन में सवार हो गए.

    एयरपोर्ट से होटल तक पहुंचने में क़रीब सवा घंटा लग गया. वैन के शीशे से बाहर की दुनिया झांक रही थी – इमारतें, लोग, मोटरें. होटल पहुँचे तो नई दुनिया से पहला साबका शॉक की तरह लगा. उस होटल में लिफ़्ट नहीं थी और न ही हमारा सामान कमरे तक पहुंचाने के लिए कोई मुलाज़िम. हिंदुस्तान के होटलों में ऐसा तजुर्बा पहले कभी हुआ नहीं तो इसकी आदत भी नहीं थी. 30-30 किलो के उतने सारे बैग उठाकर तीन मंज़िल ऊपर अपने कमरे तक पहुँचाने में ही दम निकल गया.

    इतनी मशक़्क़त के बाद आराम लाजिमी था. सो हाथ-मुंह धोकर बिस्तर पर पड़ रहा. शाम को क़रीब 8 बजे हम खाने की जगह की तलाश में बाहर निकले. सेंट पीटर्सबर्ग की ख़ास बात यह कि भौगोलिक स्थिति की वजह से वहाँ दिन का उजाला देर तक बना रहता है. अगस्त के महीने में व्हाइट नाइट्स की वजह से रात काफ़ी देर में होती है. हम तो आठ बजे बाहर निकले थे मगर धुंधलके की नौबत रात के 11 बजे तक आ सकी थी. बाहर का नज़ारा दुनिया के उस हिस्से में लोगों की ज़िंदगी से पहला परिचय था.

    लोग सड़कों पर घूम रहे थे, नाच रहे थे, गा रहे थे. अपना कैमरा मैं साथ लेता आया था. तो मैंने उस माहौल की कई तस्वीरें बना डालीं. बाद में उन तस्वीरों को देखते हुए मुझे समझ में आया कि स्ट्रीट फ़ोटोग्राफ़ी के लिहाज़ से 24-70 मिलीमीटर का लेंस कितना कारगर है. चूंकि मैं कैमरा हमेशा मैनुअल मोड पर ही रखता हूँ तो शटर दबाने से पहले तस्वीर की अपनी ज़रूरत और उपलब्ध लाइट के हिसाब से सेटिंग की मशक़्क़त मेरी आदत में है.

    आप अगर स्ट्रीट या ट्रेवल फोटोग्राफी कर रहे हैं तो यह ज़रूरी नहीं कि आप भी ऐसा ही करें. कैमरे को शटर प्रियॉरिटी पर रखकर भी बढ़िया तस्वीरें बना सकते हैं क्योंकि उस वक़्त एक निश्चित शटर स्पीड ज़्यादा ज़रूरी है, बाक़ी काम के लिए आप कैमरा पर भरोसा कर सकते हैं. हम जानते हैं कि किसी दृश्य में निखार के लिए कम्पोज़िशन की भूमिका ख़ासे महत्व की होती है तो मैंने भी ज़्यादातर शटर स्पीड और फोकल लेंथ में ही बदलाव करता रहा. उस दौरान बनाई हुई तस्वीरों में से कुछ तस्वीरें कैमरा सेटिंग्ज़ के साथ आपसे साझा कर रहा हूँ, उम्मीद है कि आपके काम की होंगी.

    खाना खाकर हम जल्दी ही होटल लौट आए गए क्योंकि अगली सुबह 6 बजे उठकर हमें अपने शूट की तैयारी भी करनी थी.

    (इस सफ़रनामे की अगली कड़ी जल्दी ही)

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