तमाशा मेरे आगे | संगीत की बारिश में सुबह की सैर
दीमक लगे चार बांसों और पीछे की दीवार से सटाकर तने हुए नीले रंग के तिरपाल से पानी की कई मोटी धार उसके दोनों तरफ़ गिर कर नाली तक का सफ़र तेज़ी से पूरा कर रही हैं… बाएं हाथ पर बने मिट्टी के चूल्हे से हल्का धुआं उठ कर नीले आसमान पे भटक रहे बादलों-सा दिखता है…एल्युमिनियम की पतीली से फिसलती भाप बताती है कि उसमें शायद चाय का पानी होगा, जो उबलने को था… मैं उससे पूछने में हिचक रहा हूं…
बारिश अब धीमी हो चली है… सड़क के दूसरी तरफ के पेड़ के नीचे से निकल कर मैं उसकी तरफ़ आ जाता हूं… जूतों के अंदर पानी भर जाने से फच-फच की भौंडी आवाज़ निकलती है… मिट्टी के पुराने घड़े पर चलते उसके हाथ कुछ लम्हों के लिए रुकते हैं और वो दाएं हाथ की उंगलियों में पहनी तीन मोटी-मोटी अंगूठियों को घुमाने और सरकाने लग जाता है… बारिश फिर तेज़ हो गई है सो मैं तिरपाल के अंदर सरक आता हूं… वो बेझिझक मेरे भीगे लंबे बालों को ग़ौर से देख रहा है… मैं मुस्कुराता हूं, वो भी… कुछ कहने को उसके होंठ ज़रा से खुलते हैं तो उसके चमकीले सफ़ेद दांत मुझे चौंका देते हैं…
तिरपाल से जहां पानी की धार उतर रही हैं, उनसे एक मीटर दूर थर्मोकोल के तीन बड़े और मोटे सफ़ेद चौकोर टुकड़े पड़े हैं, जो शायद किसी भारी-भरकम सामान की पैकिंग रही होगी… उनमें कई आकार के ख़ाने बने हैं, चौकोर, गोल और कुछ छिदे हुए… कुछ में पानी भरा है… बारिश की हल्की-भारी बूंदें जब उन पर गिरती हैं तो एक अजीब-सा संगीत निकलता है, मानो बहुत से पुराने वाद्य अपने आप बज रहे हों… कुछ सुर में हैं तो कुछ बारिश के हिसाब से बेसुरे – जैसे फच्च फच्च पच्च…
वो शख़्स मिट्टी के घड़े को अपने पेट के पास सटा लेता है… एक बार मेरी तरफ़ देखता है और फिर सामने पड़े थर्मोकोल पर गौर करता हुए अपना एक कान उस तरफ मोड़ देता है… उसके कान में चांदी का एक मोटा-सा बुन्दा नीली तिरपाल के नीचे उगे चांद जैसा दिखता है…
उसने आंखें बंद कर लीं और उसकी उंगलियां घड़े पर थिरकने लगीं… मैं बैठ जाता हूं… थर्मोकोल पर टपकती बारिश, तिरपाल से गिरती पानी की धार, सड़क से चल नाली में बहते पानी की कल-कल और उसका घाटम यानि घड़ा – ग़ज़ब… मुझे लगा सपना-सा है, मैं उस धुन में राग ढूंढने की नाक़ाम कोशिश कर रहा हूँ… यह सब क़रीब तीन या चार मिनट तक चला और जब रुका तो जैसे कोई सम्मोहन टूटा हो, किसी नशे का ख़ुमार तारी हो गया… ये सब हो रहा है… सच्चा संगीत, रूहानी-सा… बारिश से जुगलबंदी… ताल से आई बेहोशी से बाहर आने में मुझे वक़्त लगता है…
‘वाह’, कह के मैंने उसकी पीठ थप थपा दी… नाम: भूप सिंह चंदेला… पैदाइश: चंबल (राजस्थान की तरफ़ वाला)… पेशा: पत्थर के फर्श लगाना… तालीम: पांच जमात… उम्र: 39 साल..
मैंने पूछा, उम्र कैसे पता है? मां ने बताया था उस दिन इंदिरा गांधी को गोली मारी गई थी… संगीत में रुचि कैसे? संगीत में नहीं, रुचि बरसात और पानी में है… मैं चौंका… उसकी नरम लम्बी उँगलियों के पोर घड़े की मिट्टी को सहला रहे हैं…
बारिश फिर धीमी हो गई… मैंने पूछा गाते भी हो? वह सोचने लगा… कुछ देर तक सोचता रहा, फिर शरमा के बोला, फिर किसी दिन… मैने सलाम किया और बारिश में सुबह की सैर पूरी करने आगे निकल गया… संगीत भी तो भिगो सकता है, कभी-कभी बारिश से भी ज्यादा.
(अगस्त की बारिश में सुबह की सैर)
सम्बंधित
तमाशा मेरे आगे | सतपाल जी का साइकिल इश्क़
तमाशा मेरे आगे | घुटनों का दर्द और तरखान की याद
अपनी राय हमें इस लिंक या feedback@samvadnews.in पर भेज सकते हैं.
न्यूज़लेटर के लिए सब्सक्राइब करें.
अपना मुल्क
-
हालात की कोख से जन्मी समझ से ही मज़बूत होगा अवामः कैफ़ी आज़मी
-
जो बीत गया है वो गुज़र क्यों नहीं जाता
-
सहारनपुर शराब कांडः कुछ गिनतियां, कुछ चेहरे
-
अलीगढ़ः जाने किसकी लगी नज़र
-
वास्तु जौनपुरी के बहाने शर्की इमारतों की याद
-
हुक़्क़ाः शाही ईजाद मगर मिज़ाज फ़क़ीराना
-
बारह बरस बाद बेगुनाह मगर जो खोया उसकी भरपाई कहां
-
जो ‘उठो लाल अब आंखें खोलो’... तक पढ़े हैं, जो क़यामत का भी संपूर्णता में स्वागत करते हैं