तमाशा मेरे आगे | तुम कहाँ हो जहाँआरा

सोचिये, 17वीं सदी के मुग़ल बादशाह शाहजहां और महारानी मुमताज महल की बड़ी बेटी, होने वाले मुग़ल सम्राट औरंगज़ेब की बड़ी बहन, छोटे भाई दारा शुकोह की प्यारी जहाँआरा बेगम अगर उन दिनों खो गई होतीं, अगवा कर ली गई होतीं तो क्या-क्या होता. मेरा मानना है कि अव्वल तो ये हो नहीं सकता या सोचा भी नहीं जा सकता पर अगर होता तो तारीख़ में हमें एक और बड़ी जंग या धर-पकड़ के बारे में पढ़ने को मिलता. (जहाँआरा बेगम 23 मार्च 1614 अजमेर – 16 सितंबर 1681, दिल्ली)

मान लीजिए कि किसी दुश्मन ने चाल चल भी ली होती कि उन्हें अगवा कर लिया जाए तो ये दिल्ली या आगरा के लाल क़िले के अंदर से तो मुमक़िन नहीं था, न ही बाज़ार चांदनी चौक से… तो फिर शहज़ादी जहाँआरा को कहाँ से उठाया जा सकता था. वैसे जहाँआरा को अच्छी घुड़सवारी आती थी, वो बन्दूक चलने और निशाना साधने में भी माहिर थीं, तीरंदाज़ी और तलवार चलाना तो हर मुग़ल शहज़ादे और शहज़ादी को बचपन में ही सीखा दिया जाता था. इतने सब हुनर होने के बाद जहाँआरा को अगवा करना कोई मज़ाक नहीं था.

जहाँआरा की तीन बहनें भी थीं, जो उनके साथ या आस-पास ही रहती थीं. पुरहुनर बानो उनसे बड़ी थीं, रोशन आरा उनसे छोटी और गौहर आरा सबसे छोटी. गौहर आरा महारानी मुमताज महल की चौदहवीं और आख़िरी संतान थीं. उनको जन्म देते हुए उनकी माँ मुमताज महल की मौत हो गई. गौहरा आरा बच गईं और 75 साल की लम्बी उम्र तक ज़िंदा रहीं.

बीच वाली बहन जहाँआरा से छोटी रोशन आरा नटखट और शैतान थीं. ये वही है रोशन आरा हैं, जिन्होंने उत्तरी दिल्ली में बहुत बड़ा बाग़ बनवाया और जिसके नाम पर वो बाग़ आज भी क़ायम है, रोशन आरा बाग़. इस बाग़ से थोड़ी दूर दिल्ली यूनिवर्सिटी के पास एक और बसा-रसा इलाक़ा है मलका गंज, उसे भी रोशन आरा ने ही बसाया. इस इलाक़े का असली नाम मल्लिका गंज था, यानि मल्लिका रोशन आरा द्वारा बसाया हुआ इलाक़ा, जहाँ उनके हाथी, घोड़े, सिपाह-सालार और उनके ज़ाती काम करने वाले मुलाज़िम रहते थे.

सम्राट शाहजहां के सिपाहियों और जासूसों की मानी जाए तो जहाँआरा को दिल्ली में जमुना पार अपने भाई दारा शुकोह के खेमे से यक़ीनन उठाया जा सकता था, जहाँ हिफ़ाज़त का इतना बंदोबस्त नहीं था. पर अब 500 साल बाद ये सब अटकलें बेमानी हैं. इस ज़माने में जब रोज़ अकेले दिल्ली से ही 100 से ज़्यादा बच्चे और बड़े या तो अगवा कर लिए जाते हैं या पुलिस रपट के मुताबिक़ खो जाते हैं तो कुछ भी हो सकता है. आजकल खो जाने वाले इन बच्चों, नौजवानों और बुज़र्गों को कहाँ खोजा जाए, कैसे ढूँढा जाए यह एक बहुत बड़ा सवाल है. इनमें से कुछ तो ख़ुद ही घर छोड़ के चले जाते हैं, कुछ हादसे वग़ैरह में मारे जाते हैं और कुछ चोर-डकैतों के गिरोहों द्वारा अगवा कर लिए जाते हैं.

इन खो जाने वालों में लड़कियों की ख़ासी बड़ी तादाद होती है. इन बेचारी लड़कियों को जाने क्या-क्या सहना पड़ता होगा, किन-किन मुश्किलों से गुज़रना पड़ता होगा. ज़्यादातर लड़कियां जिस्म बेचने और बाज़ारू काम के लिए अगवा कर के दूसरे शहरों और कई बार तो दूसरे मुल्कों में भी बेच दी जाती हैं. हमारी सरकारों को इस तरफ़ ख़ास ध्यान देना चाहिए.

ख़ैर, यहाँ ज़िक्र किसी और जहाँआरा का हो रहा है, आज की जहाँआरा का.

जहाँआरा खो गई है, ग़ुम हो गई है. जी हाँ, जहाँआरा. क्या मालूम उसे कोई अगवा कर के ले गया है या बेचारी किसी हादसे का शिकार हो गई हो या फिर वो किसी वजह से तंग आकर घर से भाग गई है. अखबार में इश्तिहार आया है. उसकी फ़ोटो भी छपी है, बेचारी मासूम बच्ची-सी दिखती है.

जहाँआरा दुख़्तर जहाँगीर. जी हाँ, 21वीं सदी के ज़हाँगीर की प्यारी बेटी है. कितने दुखी होंगे जहाँआरा के अब्बा और अम्मी. सोचिए तो. (वैसे ज़हाँगीर, शहज़ादी जहाँआरा के दादा थे – ये वाली जहाँआरा शाहजहाँ और मुमताज महल की बेटी नहीं है.)

जहाँआरा वल्द जहाँगीर दिल्ली के जहांगीर पुरी इलाके में रहती थी. उम्र 15 साल, रंग साफ़, गोरेपन की तरफ़, गोल चेहरा, गठा जिस्म, सुन्दर-सी दो चोटियां बनी हैं, पीला कुरता, काला पजामा और हवाई चप्पल पहने अपने घर के पास से 5 जुलाई से लापता है. पुलिस ने पूरी तहक़ीक़ात करने के बाद इश्तिहार दिया है. पर सोचिए, अब अगर पुलिस को ही नहीं मिल रही है तो जनता को कैसे मिलेगी ?

फिर भी आप सब कोशिश तो कीजिए. तस्वीर को ध्यान से देख लीजिए, शायद कहीं दिख ही पड़े और अगर दिख जाए तो इतिल्ला कीजिएगा.

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