किताबों की दुनियाः सुभाष कुशवाहा की पसंद

  • 1:30 pm
  • 2 January 2020

सुभाष चंद्र कुशवाहा लेखक हैं, संस्कृतिकर्मी और घुमक्कड़ हैं. उनकी नज़र आमतौर पर उन विषयों पर रहती है, जिन पर हिन्दी में कम ही लिखा गया है. ‘चौरी चौरा विद्रोह और स्वाधीनता आन्दोलन’ और ‘अवध का किसान विद्रोह’ इतिहास पर उनकी शोधपरक किताबें हैं. हाल ही में उनकी किताब ‘कबीर हैं कि मरते नहीं’ आई है.

कविता और कहानियां लिखते हैं, समसामयिक विषयों पर टिप्पणियां भी. कुशीनगर में अपने गांव जोगिया जनूबी पट्टी में ‘लोकरंग’ नाम से लोक कलाओं का उत्सव आयोजित करते हैं. बीते साल में पढ़ी हुई किताबों में से अपनी पसंद की पांच किताबों पर उन्होंने अपना नज़रिया साझा किया है.

1. मदर इंडिया, कैथरीन मेयो
हम जिस भूभाग के बाशिंदे हैं, वहां पूर्व में, स्त्री की आज़ादी, इच्छा-अनिच्छा, शिक्षा और स्वतंत्र पहलकदमी जैसी चीज़ें नहीं रही हैं. मदर इंडिया पढ़ते हुए लगता है कि डोली से ससुराल में दाखिल होने के बाद, एक स्त्री दिन के उजाले में अपनी अर्थी के साथ ही बाहर आ पाती थी. 4 साल से लेकर 9 साल तक की बच्चियों से 60 साल के पुरुषों का विवाह हो जाता. स्त्री की औसत उम्र 23 वर्ष होती. बेटा न जनमने वाली को पुजारी से लेकर ओझा तक के हवाले कर दिया जाता. 4 से 9 साल की बच्चियों के ब्याह के पक्ष में रवींद्रनाथ टैगोर से लेकर मालवीय जी भी थे. सभी भारतीय संस्कृति की दुहाई देते, अंग्रेज़ों के सामाजिक सुधारों का विरोध करते. किताब महिलाओं की आज़ादी को वैज्ञानिक रूप से परिभाषित करने और उनकी आज़ादी को समाज के विकास और समझ के उन्नयन का बैरोमीटर समझने की ज़रूरत बताती है.

2. जाति का विनाश, डॉ.बी.आर.आंबेडकर
डॉ.बी.आर.आंबेडकर ने ‘एनिहिलेशन ऑफ कास्ट’ आलेख, लाहौर के जात-पात तोड़क मंडल के आमंत्रण पर उनके वार्षिक अधिवेशन में अपने अध्यक्षीय वक्तव्य के लिए तैयार किया था. इस लम्बे आलेख में आंबेडकर ने जाति के विनाश के लिए हिन्दू धर्म का ख़ात्मा अनिवार्य बताया था. कहा कि जाति ने सार्वजनिक भावना को नष्ट कर दिया है. इसी आलेख के अंत में उन्होंने यह घोषणा भी कर दी कि हिन्दू के रूप में यह उनका अंतिम भाषण होगा और इसके बाद वह हिन्दू न रहेंगे. ज़ाहिर है, आलेख की प्रति देखकर आयोजकों के पैरों तले की ज़मीन खिसक गई. जो कार्यक्रम 1936 के प्रारंभ में होना था, उसे मध्य तक स्थगित किया गया और बाद में उस सत्र को निरस्त कर दिया गया, जिसमें यह आलेख पढ़ा जाना था. वरिष्ठ पत्रकार राजकिशोर ने बेहद सरल और बोधगम्य भाषा में फॉरवर्ड प्रेस के लिए हिन्दी में इसका अनुवाद किया है. ‘एनिहिलेशन ऑफ कास्ट’ के इस अनुवाद में पढ़ने की रोचकता बढ़ाने के तीन कारण हैं. पहला इसका सरल अनुवाद. दूसरा डॉ. सिद्धार्थ द्वारा दिए गए ज़रूरी फुटनोट जो आलेख को समझने में हमारी मदद करते हैं और तीसरा कि आलेख के अलावा इस पुस्तक में जाति के विनाश संबंधित अन्य ज़रूरी संदर्भ भी दिए गए हैं जैसे कि आंबेडकर और गांधी के बीच बहस और गांधी द्वारा जाति का समर्थन किया जाना.

3. कुली लाइन्स, प्रवीण कुमार झा
कुली लाइन्स को पढ़ते हुए हम वैश्विक दुनिया में भारतीय नस्लों के फैलाव की जानकारी प्राप्त करते हैं. हम इस तथ्य से रूबरू होते हैं कि हिन्दू-मुस्लिम या ईसाई जैसे खांचे अमानवीयता का संरक्षण करते हैं जबकि श्रमशीलता, भाईचारे और साझी विरासत का निर्माण करती है. मनुष्य का विस्थापन जहां होता है, वहां मूल और नई, दोनों संस्कृतियों का टकराव होता है. विस्थापित सदा अपनी संस्कृति को ढोना चाहता है मगर समय के साथ उसमें बदलाव स्वाभाविक है. उन्होंने एक हद तक भारतीय जाति व्यवस्था से छुटकारा पाकर जो तरक्की की है, वह इस बात का भी प्रमाण है कि जाति व्यवस्था किस तरह समाज की प्रगति में बाधक है. हालांकि गिरमिटिया देशों में धार्मिकता के अलावा प्रगतिशीलता के तत्व कम ही पहुंचे. यही कारण है कि जातिविहीन हो चुकी गिरमिटिया की ज्यादातर पीढ़ियां धुर पाखंडी और किरतनियां बनी हुई हैं. उनके पास न तो गिरमिटिया जीवन संघर्ष को व्यक्त करने की कथाएं हैं और न लोकगीत.

4. सोल्जर साहिब्स, चार्ल्स एलेन
यह किताब उन्नीसवीं सदी में नार्थ-वेस्ट फ्रंटियर पर जनजातियों के विद्रोह को दबाने वाले एक ब्रिटिश सिपाही की गाथा है. इससे हम तत्कालीन समय में बलूचिस्तान क्षेत्र (जो आज पाकिस्तान में है), में जनजातियों के विद्रोह को समझ सकते हैं. फ़ौजियों की चिट्ठियों और डायरियों के हवाले से बुनी गई रोचक गाथाएं हैं.

5. बाबरनामा, हिन्दी अनुवादः युगजीत नवलपुरी
इस पढ़ते हुए हम समझ सकते हैं कि हिन्दू समाज की आंतरिक कमजोरियों से ही बाहरी हस्तक्षेप हुए. मुठ्ठी भर लोग, यहां कब्जा करते रहे. यहां के हिन्दू शासक इतने अलोकप्रिय रहे कि जनता कभी उनके साथ रही ही नहीं. वे हारते गए. यहां बाबर की क्रूरता ही नहीं, उसकी विद्वता भी देखने को मिलती है.

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