इंसानी दख़ल से बचे तो अब तक खिले हैं ब्रह्मकमल

देहरादून | हिमालय के ऊंचाई वाले इलाक़ों में खिलने वाला ब्रह्मकमल इस साल अभी तक दिखाई दे रहा है. पिछले कई वर्षों से ऐसा होता आया है कि सितम्बर आते-आते ब्रह्मकमल दिखना बंद हो जाते थे. वैज्ञानिकों का मानना है कि महामारी के चलते इस साल पर्यटकों की आवाजाही बंद रही है और पहाड़ों के पर्यावरण पर इसका अच्छा प्रभाव पड़ा है.

उत्तराखण्ड का राज्य पुष्प ब्रह्मकमल (Saussurea obvallata) हिमालय में चार हज़ार मीटर से ज़्यादा ऊंचाई वाले इलाक़ों में पाया जाता है. पूजा-पाठ में इस्तेमाल के साथ ही इसके फूल और पत्तियों का दवाओं में इसका ख़ूब इस्तेमाल होता है. स्थानीय लोग व्याधियों से बचने के लिए इसके फूल घरों के दरवाज़े पर भी टांग देते हैं. ब्रह्मकमल मानसून के दिनों में खिलता है. केदारनाथ और असकोट वाइल्डलाइफ़ सेन्क्चुअरी तथा नंदादेवी रिज़र्व में यह संरक्षित प्रजाति है.

इस बार घी विनायक और नंदीकुंड पांडवसेरा में अब भी हज़ारों ब्रह्मकमल खिले हुए हैं. विशेषज्ञ मानते हैं कि पिछले कई वर्षों से बुग्यालों में बेरोकटोक आवाजाही और पर्यटन के चलते पहाड़ों के पर्यावरण पर प्रतिकूल असर पड़ा है. ज़ाहिर है कि ब्रह्मकमल भी इससे प्रभावित हुआ. सैलानी इसके फूल पहले ही तोड़ देते थे, जिससे उसके बीज ढंग से फैल नहीं पाते थे. इस बार का हाल देखते हुए अगले साल ब्रह्मकमल की तादाद और बढ़ने की संभावना है.

फ़ोटो | विकीमीडिया कॉमन्स

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