आध्यात्मिक अनुभव है बर्ड वॉचिंगः आशीष लोया

बिजनौर | प्रकृति में रम जाने के बाद जिस तरह का संतोष, जैसा आनंद मिलता है, किसी रुतबे या पैसे की चमक-दमक उसके मुक़ाबले कुछ भी नहीं. आशीष लोया ने इसे किताब में लिखे दर्शन की तरह पढ़ा नहीं, यह तजुर्बा उन्होंने ख़ुद जी कर पाया है.

प्रकृति प्रेमी, फ़ोटोग्राफ़र और बर्ड वॉचर के तौर पर पहचाने जाने वाले आशीष अकोला में जन्मे, राजस्थान में इंजीनियरिंग की पढ़ाई की और फिर नौकरी करने न्यूयॉर्क चले गए. वहाँ सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा था, तभी उन्होंने श्रीश्री रविशंकर को सुना. उनसे इतना प्रेरित और प्रभावित हुए कि सब कुछ छोड़-छाड़कर अध्यात्म की दुनिया से जुड़ने का इरादा कर लिया. सन् 1997 में न्यूयॉर्क गए आशीष सन् 2012 में आर्ट ऑफ़ लिविंग से जुड़ गए. उन्हें वेस्ट यूपी में आर्ट ऑफ़ लिविंग प्रोजेक्ट‍ की ज़िम्मेसदारी मिली तो बिजनौर आ गए.

परिंदे नज़र आए तो पुराना शौक़ जागा
आशीष लोया बताते हैं कि आर्ट ऑफ़ लिविंग के काम के सिलसिले में वह पश्चिमी उत्तर प्रदेश के तमाम ज़िलों में आते-जाते रहते थे. इन्हीं यात्राओं के दौरान उनकी नज़र गंगा बैराज के आसपास प्रवासी पक्षियों पर पड़ी तो उनका बचपन का शौक जाग उठा. उन्होंने एक बाइनॉकुलर और एक कैमरा ख़रीदा और भोर में उठकर गंगा की तरफ़ जाना शुरू कर दिया. यह सन् 2014 की बात है. उन्होंने ग़ौर किया कि सैकड़ों प्रजातियों के पक्षी वहाँ आते हैं.

उन्होंने लगातार चार साल वहां जाकर बर्ड वॉचिंग की और अपनी खींची हुई तस्वीरें ई-बर्ड वेबसाइट पर डालनी शुरू कर दी. बर्ड वॉचिंग का उनका यह शौक़ कब प्रोफ़ेशनल बर्ड वॉचर के रूप में बदल गया, पता ही नहीं चला. सन् 2018 में उनकी मुलाक़ात इलाक़े के दौरे पर आए सहारनपुर के तत्कालीन कंज़र्वेटर फ़ॉरेस्ट वीके जैन से हुई.

उनसे बातचीत में उन्होंने गंगा बैराज पर मिलने वाले परिदों और उनकी क़िस्मों के बारे में चर्चा की. इसके बाद फ़ॉरेस्टन विभाग और सहारनपुर के तत्कालीन कमिश्नर संजय कुमार की पहल और दिलचस्पी से इस इलाक़े का ऐसा विकास संभव हो सका कि अब यह एक शानदार बर्ड सेंचुरी जैसा ही हो गया है.

हैदरपुर वेटलैंड ख़ूबसूरत परिंदों का बसेरा
आशीष लोया कहते हैं कि हैदरपुर वेटलैंड गंगा का ही इलाक़ा है. देसी परिंदों के साथ ही जाड़ों में यहाँ बेशुमार विदेशी परिंदे भी डेरा जमाते हैं. अब तक यहाँ पक्षियों की क़रीब 310 प्रजातियाँ चिन्हित की जा चुकी हैं. कई किलोमीटर में फैली झील और इसके आसपास का सारा क्षेत्र वन्य जीव बहुल है.

इसके आसपास डॉल्फ़िन, घड़ियाल और हिरण वगैरह भी देखे जा सकते हैं. यह आते हुए और जाते हुए प्रवासी पक्षियों के ठहरने के लिए रैन बसेरे का काम भी करता है. बीतते मौसम के आख़िर तक प्रवासी पक्षी यहाँ इसी वजह से देखने को मिल जाते हैं, क्योंकि दक्षिणी राज्यों से लौट रहे पक्षी आराम के लिए यहाँ रुक जाते हैं.

बर्ड वॉचिंग शानदार मेडिटेशन भी
बक़ौल आशीष, जब वह छठी में पढ़ते थे तभी से शौक़िया तौर पर बर्ड वॉचिंग किया करते थे, लेकिन अमेरिका में नौकरी के दौरान उका यह शौक कम हो गया था. हालांकि वहां जब भी मौक़ा मिलता, बर्ड वॉचिंग करने निकल ही जाते.

बिजनौर आने और हैदरपुर वेटलैंड इलाक़े से परिचय के बाद अपने शौक को लेकर वह गंभीर होते गए. वह कहते हैं कि बर्ड वॉचिंग शानदान ‘स्ट्रेास बस्टर‘ तो है ही, यह मेडिटेशन जैसा असर भी करता है. जब भी आप कोई नया पक्षी या अपनी पंसद का पक्षी देखते हैं, तो वह उत्साह अलौकिक होता है. उसे निहारते हुए आप सब कुछ भूल जाते हैं.

उनका मशविरा है कि हमें अपने बच्चों में शुरू से यह शौक पैदा करना चाहिए. उन्हें बचपन से पक्षियों की जानकारी देनी चाहिए. एक नए बर्ड वॉचर के लिए एक बाइनॉकुलर और एक गाइड बुक ज़रूरी है. ख़ुद उन्होंने ‘इंडियन बर्ड’ नाम की एक किताब से बहुत कुछ सीखा.

इस कोविड काल में जब सारी गतिविधियाँ बंद हैं, उनका ज्यादातर वक़्त पक्षियों के बीच ही गुज़रता है.

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