योगी अरविंद | पंसारी की शिकायत पौधे रोपने की प्रेरणा बन गई

  • 9:52 am
  • 8 November 2023

ख्यातिलब्ध योग आचार्य समर्थ योगी अरविंद पतंजलि योग सूत्र, अष्टांग योग और कुंडलिनी योग के विशेषज्ञ होने के साथ ही समर्पित पर्यावरण प्रेमी भी हैं. योग और पर्यावरण के प्रति जनजागृति के उद्देश्य से हज़ारों किलोमीटर की पदयात्रा कर चुके योगी अरविंद आयुर्वेदिक पौधे रोपने की मुहिम चला रहे हैं. देश के विभिन्न राज्यों के साथ ही जनजागृति के अभियान के साथ उन्होंने ब्राज़ील, इंडोनेशिया और दुबई की यात्रा भी की. हाल ही में लखनऊ में उन्हें तुलसी गौरव सम्मान से नवाजा गया. ऐशबाग रामलीला कमेटी की ओर से आयोजित कार्यक्रम में राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्र ने उन्हें यह सम्मान दिया. उनकी मुहिम के बारे में विस्तार से जानने के लिए हमने उनसे ऑनलाइन साक्षात्कार किया.

पर्यावरण, ख़ासकर हरियाली लंबे समय से दुनिया भर में चिंता का विषय बनी हुई है. पौधे रोपने की आपकी मुहिम की शुरुआत कैसे हुई. इसका विचार आपके मन में कैसे जागा? और आयुर्वेदिक महत्व के पौधों के बारे में ही आपने क्यों सोचा होगा?

– तक़रीबन 16 वर्ष पूर्व से आध्यात्मिक कारणों से हम भारत भ्रमण कर रहे हैं. और विश्व भ्रमण भी. भारत भ्रमण में हमने कन्याकुमारी से श्रीनगर, कश्मीर तक पैदल यात्रा की हैं. कुछ अंतर के लिए वाहन आदि का प्रयोग करना पड़ा. इस यात्रा में हमने यह महसूस किया कि भारत में वृक्ष तेज़ी से काटे जा रहे हैं. महामार्गों के चल रहे निर्माण कार्य, नई इमारतों का निर्माण, खेती योग्य ज़मीन बनाना, घरों में चूल्हे की जलावन आदि कारणों से पेड़ काटे जा रहें थे. पश्चिम घाट (सह्याद्रि), आंध्र एवं तेलंगाना के कुछ जंगल, पंचमढ़ी, अमरकण्टक और शिवालिक एवं हिमालय के घने जंगल इनके अलावा भारत के अन्य भागों में वृक्ष बहुत कम दिखाई पड़े.
हमारी पदयात्रा के दरमियान हम जगह-जगह के आयुर्वेदाचार्यों से अवश्य मिलते थे और सब के सब औषधि बनाने के लिए काष्ठ एवं जड़ी बूटी, फल फूल पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध न होने की बात कहते थे. जबलपुर में एक पंसारी से बात करते समय उन्होंने जब काष्ठोषधियों की कमी और उससे आयुर्वेदिक औषधियों के गिरते मानक के बारे में सुनाया तब हमने ठान लिया कि पूरे देश में आयुर्वेदीय औषधि वृक्ष लगाते घूमेंगे. इस अभियान का आरंभ संयोगवश श्रीनगर (कश्मीर) में चिनार के पौधे लगाकर हुआ. फिर राजस्थान के हनुमान गढ़ ज़िले के भादरा ब्लॉक में कलाना गाँव के गौशाला के समीप बंजर ज़मीन पर पीपल, शीशम आदि पौधे लगाए. और विगत ग्यारह वर्षों से पौधरोपण की यह यात्रा जारी हैं. हमने कर्नाटक, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, गुजरात, उत्तराखण्ड आदि राज्यों में वृक्षारोपण किया हैं. उत्तराखण्ड के टिहरी और पौड़ी ज़िलों में, महाराष्ट्र के सूखाग्रस्त मराठवाड़ा के धाराशिव ज़िले में विशेष वृक्षारोपण किया हैं. हमारा मानस हैं कि अपने जीवन काल में हम एक करोड़ से अधिक पौधे लगाकर हम धरती माँ की सेवा करें. अब तक छह लाख के क़रीब वृक्ष लगाए हैं. अब वृक्षारोपण का हिसाब-किताब रखने से ज़्यादा पौधे लगाने में ही मन लगता हैं.

अपने देश में, विशेषकर उत्तर भारत में पेड़ों का अंधाधुंध कटान गंभीर समस्या बन गया है. एक मुश्किल यह भी है कि किसी मिट्टी के गुण के मुताबिक कौन से पेड़ लगाए जाएं, यह सोचने के बजाय वृक्षारोपण के नाम पर कुछ भी रोप दिया जाता है. यूकैलिप्टस और पापलर जैसे पेड़ व्यावसायिक मुनाफ़े के लिए उगाए जा रहे हैं, जबकि ये दलदली ज़मीन के लिए मुनासिब हैं. सेमल की लकड़ी पेंसिल बनाने में इस्तेमाल होती है, हालांकि सेमल के पेड़ ही अब कम दिखाई देते हैं. सड़कों के किनारे लगे पाकड़ जैसे लंबी उम्र वाले पेड़ सड़कें चौड़ी करने के नाम पर काटकर ख़त्म किए जा रहे हैं. आपके हिसाब किस प्रजाति के पौधे भारतीय जलवायु, यहां की मिट्टी के अधिक अनुकूल हैं और पर्यावरण दुरुस्त रखने में ज़्यादा मददगार हो सकते हैं?

उत्तर भारत के बारे में पेड़ कटाई के मामले में आपका आकलन एकदम सही हैं. उत्तराखण्ड में सड़कें चौड़ी करते समय बहुत वृक्ष काटे गए हैं. और यह देखकर मन काफ़ी आहत हुआ हैं. परन्तु हमारी अब कि उत्तर प्रदेश यात्रा में हमने लखनऊ-अयोध्या के रास्ते में सड़क किनारे पीपल के वृक्ष देखें और मन को सुकून मिला. सड़कों के किनारे पंच पल्लव प्रजाति के वृक्ष लगाना उचित हैं, ऐसा हमारा मानना हैं. पीपल, बड़, जामुन, आम, अर्जुन इनको पंचपल्लव कहते हैं. इसमें कहीं इमली, कहीं गूलर, कहीं आँवला भी गिना जाता हैं. इसके अलावा पाकड़ जैसे वृक्ष उत्तर प्रदेश की भूमि और जलवायु के अनुरूप हैं. उत्तर प्रदेश में नदियों, नालों की संख्या अधिक होने से वहाँ पर अर्जुन के वृक्ष बहुत अधिक मात्रा में रोपे जाने चाहिए. अर्जुन का नाम ही नदीसार हैं, जो नदियों के किनारे बढ़नेवाला हैं. उत्तर प्रदेश पूरे विश्व के लिए हृदय रोग के दवा का भण्डार हो सकता हैं क्योंकि अर्जुन हृदय के स्वास्थ्य की सर्वोत्तम नैसर्गिक औषधि हैं. बिमल, सेमल के पेड़ भी अधिक मात्रा में लगाने चाहिए. बुंदेलखंड ज़ैसे जल अभाव के क्षेत्र में गूलर बड़ी मात्रा में लगाना चाहिए. गूलर की जड़ों में पानी रोककर रखने की क्षमता होती हैं और गूलर अपने आसपास के क्षेत्र में नमी बढ़ाता हैं.

किसान यूकैलिप्टस और पापलर को बड़ी मात्रा में लगाकर अपना और देश का बहुत नुक़सान कर रहे हैं. इसके अलावा मथुरा-वृंदावन के आसपास अपने आप फैल रहें कीकर (जेरुसलम थोर्न) के पौधे बहुत नुक़सान कर रहें हैं. उत्तराखण्ड के पहाड़ चीड़ के वृक्षों ने मानो तबाह किए हैं. विदेशियों ने भारत की धरती को कृषि और गौपालन के लिए अननुकूल बनाने के लिए विगत सौ वर्षों से इन वृक्षों के बीज भारत में फैलाना आरंभ किया, ऐसा माना जाता हैं.

हरिद्वार-नजीबाबाद-कोटद्वार हाईवे, बंगलुरु-तुमकुरू मार्ग, बंगलुरु-तिरुपति महामार्ग आदि स्थानों पर सड़क किनारे अर्जुन के पौधे बहुतायत में पाए जाते हैं. ये सारे वृक्ष सौ से अधिक वर्ष पुराने हैं . कर्नाटक में बंगलुरु के आसपास सर विश्वेश्वरैया ने पंच पल्लव प्रजाति के पौधों का अधिक रोपण किया था, जिससे वहाँ का पर्यावरण काफ़ी समृद्ध हैं. राजस्थान, बुंदेलखंड, गुजरात, महाराष्ट्र आदि राज्यों में जहां गर्मी का प्रकोप अधिक होता हैं, वहाँ सड़क किनारे पंचपल्लव वृक्षों के साथ शीशम, करंज, नीम आदि पौधे प्रचुर मात्रा में बोने चाहिए. ये गर्मियों में हरे-भरे तो रहते ही हैं परन्तु गर्मी से उत्पन्न शारीरिक व्याधियों में औषधि के तौर पर काम आते हैं. पहाड़ों में वृक्षों के साथ-साथ शतावर जैसी जड़ी-बूटी को सड़क से थोड़े दूरी पर लगाना चाहिए, जिसकी जड़ें मिट्टी को धँसने नहीं देती हैं और भूस्खलन को रोका जा सकता हैं.

आमतौर पर सरकारी अमले वृक्षारोपण को लेकर ख़ूब हो-हल्ला करते हैं. हर साल लाखों-करोड़ों पौधे रोपने के दावे भी होते हैं मगर हरियाली का हाल बद से बदतर होता जा रहा है…आपको क्या लगता है, ऐसा क्यों है?

सरकारी वृक्षारोपण आम जनमानस में हँसी की विषय रहा हैं कई दशकों से. परन्तु यह भी सत्य हैं की कुछ मात्रा में सरकारी वृक्षारोपण यशस्वी भी होते जा रहे हैं. सरकारी वृक्षारोपण की अयशस्विता का कारण विषय से गहरे जुड़ाव के अभाव में ही हैं. सरकारी अधिकारी वृक्षारोपण को अपनी सामाजिक ज़िम्मेदारी के रूप में देखने के बजाय एक टास्क को पूरा करने के रूप में देखते हैं. इसमें कुछ अपवाद भी हैं. वृक्षारोपण हों, गौसेवा हों, ग़रीबों की, मरीज़ों की सेवा हों, हमें हृदय से, पूरे संवेदनशीलता के साथ जुड़ना चाहिए तभी हम सफल हो पाएंगे. सरकारी कार्यक्रमों से अधिक सामाजिक, धार्मिक वृक्षारोपण यशस्वी होते हैं क्योंकि उनमें श्रद्धा होती हैं. हम जब पौधे लगाते हैं, लगवाते हैं तो प्रत्येक किसान को यह अवश्य बताते हैं कि कौन-से पौधे में कौन-से देवता विराजमान हैं. उससे उनका श्रद्धा भाव जागृत होता है और वे पूरी तन्मयता से पौधों की देखभाल करते हैं.

सरकारी वृक्षारोपण आमतौर पर शहर, क़स्बों से दूर पहाड़ियों पर, होता हैं. पौधे भी बड़ी मात्रा में लगाए जाते हैं. स्थान के चयन से लेकर, पौधों के प्रजातियाँ चुनने तक सब सरकारी ढंग से होता हैं. उसमें लोक सहभागिता विशेष कार्यक्रम तक ही होती हैं. बाद में वृक्ष संवर्धन में शिथिलता आती हैं. अतः लोक सहभागात्मक पौधारोपण होना चाहिए, जिससे पौधों के प्रति अपनत्व जागे. महाराष्ट्र में धाराशिव ज़िले के पुलिस मुखिया आईपीएस अतुल कुलकर्णी लोक सहभागिता से वृक्षारोपण की बढ़िया नज़ीर पेश कर रहे हैं.

हम अपने पौधरोपण कार्यक्रमों में किसान को पाँच या दस ही पौधे देते हैं. उनसे शपथ लेते हैं कि तीन से पाँच वर्ष तक उन्हें जीवित रखेंगे. पौधरोपण के स्थान का चयन किसान ही करते हैं. वृक्ष को देवता समान मानकर उनकी सेवा करते हैं. हर्ष से प्रतिवर्ष उसके विकास की जानकारी साझा करते हैं. स्कूली बच्चों के साथ भी यही मॉडल काम करता हैं. यह डिस्ट्रिब्यूटेड ट्री प्लांटेशन मॉडल काफ़ी सफल रहा हैं.

किसी मुहिम का आशय अगुवाई करना होता है, मुहिम सार्वजिनक चेतना गढ़ने का काम भी करती हैं, ताकि लोगों में जागरूकता का प्रसार हो, और एक जोड़ी हाथ के बजाय हज़ारों हाथ उस काम में जुट जाएं. इस नज़रिये से आप अपनी मुहिम को कितना कारगर पाते हैं?

हमारी वृक्षारोपण मुहिम अंतःप्रेरणा से आरंभ हुई हैं. हमारे लोकसंवाद से आरंभ हुई हैं. हमारे नंगे पैरों से की गई भारत यात्रा में प्रकृति के आदेश से यह वृक्ष मुहिम आरंभ हुई हैं. इसमें हम कोई अतिविशेष कार्य कर रहे हैं, ऐसा हम नहीं मानते. बल्कि पौधे रोपने जैसे महान कार्य के लिए प्रकृति ने हमारा चयन किया और कुछ सेवा हो पा रही हैं यह सौभाग्य और समाधान का विषय हैं.

सार्वजनिक चेतना के रूप में मुहिम दिन-ब-दिन सफल ही होती दिखाई पड़ती हैं. जहाँ पर भी लोग मिलते हैं, फ़ोन या सोशल मीडिया पर संवाद साधते हैं तो वृक्षारोपण या जैविक खेती के सन्दर्भ में ही बात करते हैं. विविध राज्यों में जगह-जगह लोगों ने दल बनाए हैं, जो इस कार्य को अंजाम दे रहे हैं. रोपित पौधों की देखभाल के विषय में मुहिम काफ़ी यशस्वी रही हैं. स्कूली बच्चों में, युवाओं में, और बुजुर्गों में भी वृक्ष चेतना जाग गई हैं. चूँकि हम एक करोड़ ही नहीं बल्कि कई करोड़ वृक्ष लगाना चाहेंगे तो मुहिम का और प्रसार होना चाहिए, ऐसा मानते हैं. अभी बहुत दूर तक चलना हैं. साथी जुट रहे हैं.

हमारे भारत प्रवास में लोग हमें वृक्षयोगी, पेड़ बाबा, पेड़वाले महाराज जी आदि कई नामों से पुकारते हैं. इस से हमारे मन में अभिमान या गर्व उत्पन्न होता नहीं, परन्तु यह समाधान होता हैं कि वृक्ष के साथ पहचान जुड़ गई. योग में वृक्ष स्थिरत्व के प्रतीक हैं.

विदेशों में आपकी मुहिम को लेकर कैसी प्रतिक्रिया हुई? वहाँ भी तो जलवायु का अंतर हरियाली को प्रभावित करता है, वहाँ आपने किस तरह के पौधे रोपे हैं?

योग विद्याभ्यास के लिए अनेक देशों से विद्यार्थी हमारे पास आते हैं. वे हमारे वृक्षारोपण कार्य से बहुत प्रभावित हैं. भारत में हमारे अनेक वृक्षारोपण अभियानों के लिए हमारे देशी-विदेशी विद्यार्थियों ने धन जुटाया हैं. यह गौरव की बात हैं. वसुधैव कुटुम्बकम् का यह साक्षात् उदाहरण हैं.

हमारी विदेश यात्राओं में हम जहाँ भी जाते हैं, पौधरोपण अवश्य करते हैं. समय और संसाधनों की उपलब्धता के अनुसार विदेशों में पौधरोपण कार्यक्रम भारत जैसे बड़े होते नहीं. परन्तु उन प्रतीकात्मक कार्यक्रमों के माध्यम से हम वृक्ष चेतना जगा पाते हैं. विदेशों में भी हम ढूँढकर भारतीय प्रजाति या स्थानीय पारंपरिक प्रजाति के ही वृक्ष लगाते हैं, जो औषधि बनाने में काम आ सकें.

आप योग विशेषज्ञ भी हैं. योग और स्वास्थ्य और पर्यावरण के आपसी संबंधों के बारे में थोड़ा बताइए.

योग भारतीय वैदिक ज्ञान परम्परा से उत्पन्न सर्वोत्कृष्ट वरदान हैं. योग आत्मा के परमतत्त्व से एक होकर आनंदानुभूति प्राप्ति का शास्त्र हैं. इस योग मार्ग पर सफल बनने के लिए यम नियमों का पालन प्रथम पायदान हैं. यम – नियम मानव के प्रकृति के साथ सौहार्दपूर्ण संबंधों की विवेचना व नियमावली हैं. इसी श्रृंखला में अपनत्व के भाव की साथ वृक्षारोपण, वृक्ष संवर्धन आता हैं.
योगमार्ग पर अग्रसर व्यक्ति को पौधे, जड़ी-बूटियों का ज्ञान स्वाभाविक रूप से आवश्यक हैं. जब ज्ञान होगा, तभी उन जड़ी-बूटियों, काष्ठोषधियों के पौधों को रोप कर, संवर्धन कर ज़रूरतमंदों के लिए उपलब्ध किया जा सकेगा.
हमारे जीवन में दो प्रकार के धर्म पालन का संकेत हैं – इष्ट अर्थात यज्ञ याग और पूर्त अर्थात मंदिर जलाशय का निर्माण, वृक्षारोपण ,जीर्णोद्धार! इन दोनों का निर्देश इष्टपूर्त शब्द से होता है. अर्थात् वृक्षारोपण और वृक्षों के लिए जल सुविधा उत्पन्न करना श्रेष्ठ धर्म कार्य ही हैं.

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