सूची की रामलीला और संवेदना का लोक

  • 12:29 pm
  • 11 October 2024

इसे अपने अतीत से दुबारा मुलाक़ात या बोलचाल कह सकते हैं. इसे अपने ही लोक की संवेदना से एक बार फिर जुड़ने, उसे जानने या संवेदना के लोक से गुज़रने, उसमें विचरने का अवसर माना जा सकता है या फिर उसे अपनी विज़ुअल लिटरेसी या दृश्यों की साक्षरता में कुछ दृश्य और जोड़ने के लोक आयोजन के रूप में ले सकते हैं, जिसमें विचित्र लेकिन आश्वस्त करने वाला सौंदर्य मौजूद था-लगातार, पूरी रामलीला में.

लोक की धड़कन महसूस करने और लोक के स्वर को सुनने, उसमें अपना सुर शामिल करने का अवसर मिला रायबरेली शहर से 22 किलोमीटर दूर सूची गाँव में. यह मेरी थिएटर प्रैक्टिस में नितांत अनूठा ड्रैमैटिक रिलीफ़ और नया टेक्स्ट लगा. यह सब कुछ तमाम उलझनों या जाल-पेंच से मुक्त था.

पहले दस दिन, फिर जनता की बेहद मांग पर चार दिन का विस्तार पाकर चली सूची गाँव की रामलीला अनचाहे-अनजाने-अनगाये एक सांस्कृतिक मुहिम-सी लगी. उसमें घोषित अर्थों में सायास कुछ भी नहीं था. अपने ही रचे-गढ़े फ़ार्म और व्याकरण में प्रस्तुत वह रामलीला धार्मिक या आध्यात्मिक संदर्भों से कहीं बढ़कर उस अर्थ और प्रासंगिकता को समेटे रही जो संवेदनहीन होते जा रहे समाज के लिए अनिवार्य ट्रीटमेंट है. अपनी जड़ों से कटते, उजड़ते, विस्थापित होते जा रहे जन को अपनी अस्मिता से जोड़े रखने में इस तरह के सांस्कृतिक उपकरण आज कहीं ज्यादा कारगर और ज़रूरी हैं.

सीता स्वयंवर का ही प्रसंग लीजिए. उत्तर भारत में होने वाले वैवाहिक अनुष्ठानों के साथ राम-सीता विवाह का दृश्य चल रहा था. वर के पाँव पूजने की रस्म की तैयारी के साथ हज़ारों महिलाएं और पुरूष आए थे यानी वर को पूजने के लिए कुछ न कुछ लेकर चले आए. सिक्के् से लेकर बड़े नोट, थाली, लोटा, धोती, कपड़ा या घरेलू और व्यक्तिगत इस्तेमाल की दूसरी कई वस्तुओं के साथ लोगों ने देवता नहीं, दूल्हा राम का पाँव पूजन किया. उस दिन राम प्रभु नहीं गाँव-जवार के दामाद थे, हर घर के जँवाई और सीता जनकपुत्री नहीं बल्कि, घर-घर की बेटी थी, पूरे गाँव की बेटी थीं. मालूम तो सबको था कि यह लीला है, मनुष्य निर्मित लीला, रात भर का ड्रामा! लेकिन आस्था, विश्वास और भावनाओं जैसे शब्द यहीं अपना अर्थ पाते हैं. भोले, गरीब, निरीह जन के बीच, आत्ममुग्ध व बनावटीपन से दूर लोगों के बीच. अभिजात जन की भाषा में कहा जाए तो भदेस भारतीयों के बीच.

अब सीता की विदाई का प्रसंग था. सूची और उसके आस-पास के गांव के लोग समय से पहले आ गए. आज सीता विदा होकर अवधपुरी चली जाएंगी लेकिन लोक मानस में यह भाव है कि गाँव की सबसे दुलारी बेटी या कहें कि सारे घरों की बेटियाँ आज विदा हो जाएंगी. अभी तो व्यास जी ने गद्दी भी नहीं संभाली है. साजिंदे माइक में फूंक मार रहे हैं— हैलू माइक टेस्टिंग वन, टू…. दल के मुस्लिम कलाकार विभिन्नम भूमिकाएँ अभिनीत करने से पहले ग़ज़ल गाएँगे. इसके बाद प्रदीप के भजनों का कैसेट बजेगा… ‘देख तेरे संसार की हालत क्या हो गई भगवान, कितना बदल गया इंसान.’ भजन के बाद लीला शुरू होगी. सूची से लगे दर्जनों गाँवों के लोग बाज़ार वाले मैदान में जहाँ जगह मिली, बैठ गए हैं,

व्यास जी का गायन शुरू हुआ… ‘मंजु मधुर मूरति उर आनी, भये सनेह सिथिल सबरानी. पुनि धीरजु धरि कुंअरि हेकारी, बार-बार भेंटहिं महतारी. पहुँचावहिं फिर मिलहिं बहोरी, बढ़ी परस्पर प्रीति न थोरी. पुनि-पुनि मिलत सखिन्ह बिल गाई, बाल बच्छ जिन थेनु लवाई..’ जिसके पास जो भी था, वह लेकर आया. कुछ ने पैसे-रुपये दिए तो बेहतर आर्थिक हैसियत वालों ने साड़ी आदि वस्त्र और उपहार में दूसरी वस्तुएँ सीता को भेंट में दी. सीता के जनकपुर के छूटने के दुःख के समय हज़ारों गँवई लोग जनकपुर वासी हैं लेकिन अगले ही दृश्य में वही लोग अवधपुरी के ‘लोक’ हो जाते हैं और सीता के वियोग और राम के मिलन के दुःख-सुख में भीगते रहते हैं. लगता है कि वाकई, इस लोक नाट्य को राम की नहीं रामकथा की आयु मिली है.

अंतिम प्रसंग हरिश्चंद्र, तारा और राहुल का है. सांप के डंस लेने से मृत राहुल को लेकर तारा श्मशान भूमि पहुँचती है. तारा के पास कफ़न और लकड़ी के लिए धन नहीं है. सत्यवादी हरिश्चंद्र का कर्तव्य निर्वाह पुत्र मोह से बड़ा है, इसलिए बिना शुल्क लिए अंन्येष्टि की अनुमति नहीं देते. तारा अपना आंचल फाड़ने लगती है लेकिन यह क्या? इस मार्मिक दृश्य को देखकर लोगों की आंखें और गला पिघल जाता है. आँसू छलक पड़ते हैं. सैकड़ों लोग बारी-बारी तारा को कफ़न और लकड़ी के लिए पैसे देते हैं. गिनती हुई तो पता चला कि मृत राहुल की अंत्येष्टि के लिए तारा को सात हजार से ज्यादा रूपये मिले और यह मार्मिक प्रसंग जनता को इतना भाया कि रामलीला चार दिन तक बढ़ा दी गई यानी राहुल के जीवित होने और राजा हरिश्चंद्र के वचन रक्षा और राजपाट लौटने तक.

यह तो एक प्रतीक भर है. असल बात यह है कि यह कथा लोगों के हृदय में अथाह पवित्रता के साथ जीवित है, जिनमें उनका मर्म विश्राम पाता है. इस रस निष्पत्ति या सौदर्य के बारे में क्या कहेंगे? भले ही वह अपने शिल्प में गंवईपन, अनगढ़पन, भदेसपन लिए हुए है. उस नाट्य प्रभाव को क्या कहेंगे जो नाट्य सिद्धांतकार नाट्य प्रस्तुतियों में तलाशते रहते हैं? मंचन के दौरान कई व्यवस्थागत रुकावटें, उनका निवारण, व्यवधान फिर अलगाव इसके बाद इतना ज़बरदस्त ‘इनवॉल्वमेंट’. भरतमुनि, ब्रेश्ट और स्टांस्लावस्की जैसे नाट्य पंडितों की स्थापनाओं को एक साथ जीने की यह शक्ति रामलीला जैसी लोक नाट्य परंपरा में ही है.

रामलीला कोई तमाशा नहीं है. यह एक जीवंत घटना है. इसमें राम और राम-प्रसंग बार-बार और भावुक तरीक़े से घटित होते हैं और साधारण व्यक्ति इसका साझीदार हो जाता है. यहाँ राम लोक जीवन के वृत्त हैं और उनके चक्कर में ज़िंदगी गति पाती रहती है. लोक जीवन में राम को आदर, प्यार, दुलार, अनुराग (और गीतमय ‘गारी’ भी) सब कुछ मिलता है. साहित्य में भले ही वह रामकथा के नायक, अवतार, इतिहास पुरुष या साक्षात्‌ परम ब्रह्म हैं लेकिन लोक जीवन में वह व्यतीत नहीं होते. लोक अपने समय और ज़रूरत के मुताबिक उनका रूपांतरण करता रहता है और राम एक अवस्था से दूसरी अवस्था में संचरण करते रहते हैं.

रामलीला किसी बड़े नैतिक, सामाजिक, राजनैतिक परिवर्तन का ज़रिया भले न रह गई हो लेकिन संवेदनशीलता को बनाये रखने का हथियार तो है ही. यह भी देखने वाली बात है कि ‘लोक संस्कृति’ अपनी चीज़ों, परंपराओं को कैसे अपनी थाती की तरह सहेजता है, ‘लोक’ अपने कला रूपों को टेढ़-मेढ़े शिल्प के साथ किस प्रकार आश्रय देता है. सूची गाँव की रामलीला का दल भदोही से आता है. गाँव के लोग उनके लिए सिर्फ़ भोजन और रहने की व्यवस्था करते हैं. उनकी आय का स्रोत रोज़ मिलने वाला इनाम और रामलीला के दृश्यों के माध्यम से मिलने वाली भेंट ही है. महत्व की बात यह है कि ‘फ़ार्म और कन्टेंट’ में इतना उबड़-खाबड़ अजूबापन लिए इस रामलीला से एक बड़ा ‘स्पेस’ बनता, ब्रेक होता और फिर बनता है. इस ‘स्पेस’ पर न जाने कितने दिलों को ‘मेलोड्रेमैटिक रिलीफ़’ मिलना क्या अनोखी बात नहीं है?

(रंगकर्म पर लेखक की किताब ‘रंग सृजन’ से)

सम्बंधित

रिपोर्ताज | सूदनपुर की रामलीला और बदली में चांद

बरेली में होली के मौक़े पर रामलीला की अनूठी परंपरा

135 साल की परंपरा है महोबा की रामलीला


अपनी राय हमें  इस लिंक या feedback@samvadnews.in पर भेज सकते हैं.
न्यूज़लेटर के लिए सब्सक्राइब करें.