कर्टन रेज़र | पेरिस ओलंपिक में भारत की उम्मीदें

दुनिया का सबसे बड़ा खेल मेला 33वां ओलंपिक आज फ़्रांस की राजधानी पेरिस में विधिवत उद्घाटन के बाद औपचारिक रूप से शुरू हो जाएगा. अब अगले 17 दिन दुनिया के 200 से भी ज़्यादा देशों के सर्वश्रेष्ठ 10500 एथलीट 329 पदकों के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ देने को जान लगा देंगे. उनकी इस कोशिश और करतब का नतीजा यक़ीनन हैरतअंगेज़ परिणाम और अविश्वसनीय प्रदर्शन होंगे. दुनिया की नज़रें इन सारे एथलीटों के प्रदर्शन पर तो होगी ही, लेकिन हर देश के खेल प्रेमियों की नज़रें अपने देश के एथलीटों के प्रदर्शन पर विशेष रूप से होगी. भारत के 1.4 बिलियन लोगों की उम्मीदें 117 एथलीटों और उनके प्रदर्शन पर होंगी.

तो आज एक नज़र ओलंपिक में भारत के अब तक के प्रदर्शन पर और इस ओलंपिक में भारत की संभावनाओं पर.

ओलंपिक खेलों में भारत ने अब तक कुल 35 पदक जीते हैं जिनमें 10 स्वर्ण, 09 रजत, 16 कांसे के पदक शामिल हैं. सबसे अधिक हॉकी में 08 स्वर्ण, 01 रजत और 03 कांसे सहित कुल 12 पदक जीते हैं. बाक़ी दो स्वर्ण पदक अभिनव बिंद्रा ने 2008 में शूटिंग में और नीरज चोपड़ा ने 2021 में टोक्यो में जीते. इसके अलावा रेसलर सुशील कुमार और शटलर पी.वी. सिंधु दो ऐसे खिलाड़ी हैं, जिन्होंने दो-दो पदक जीते हैं. पिछले ओलंपिक में भारत ने कुल 07 पदक जीते जिनमें एक स्वर्ण, 02 रजत और 04 कांसे के पदक शामिल हैं. यह भारत का अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन था.

कुल मिलाकर देखा जाए तो भारत का प्रदर्शन हॉकी को छोड़कर बहुत ही साधारण रहा है. छिटपुट प्रदर्शन को छोड़ कर. इसीलिए भारत के ओलंपिक में प्रदर्शन को लेकर जो स्मृतियां बनती हैं, वे मुख्यतः दो तरह की स्मृतियां हैं. मोटे तौर पर 2000 से पहले की और उसके बाद की.

पिछली शताब्दी में हम जब भी ओलंपिक में भारत के प्रदर्शन को लेकर बात करते तो हम हॉकी की स्वर्णिम सफलता की याद करते और मिल्खा सिंह और पीटी उषा को याद करते हैं. इन दोनों की स्मृति पदक को बहुत ही मामूली अन्तर से चूक जाने की स्मृति है. और ये स्मृति आज भी बहुत चमकीली है. ये भी तय है कि अगर उनमें से किसी ने पदक जीता होता तो उन्हें इतनी शिद्दत से न याद किया जाता, जितनी शिद्दत से अब किया जाता है. ये इस बात की भी ताईद करता है कि आपकी जीत से ज्यादा आपका प्रयास बोलता है, मेहनत बोलती है, आपकी प्रयासों की संजीदगी बोलती है, आपकी प्रतिभा बोलती है. ये इस बात की भी ताईद है कि हमारे पास प्रतिभा तो थी पर उस प्रतिभा को पदक जीतने वाले खिलाड़ियों में तब्दील करने वाला आधारभूत खेल ढांचा और सुविधाएं नहीं थीं.

1980 में स्वर्ण पदक जीतने के बाद हॉकी नेपथ्य में चली जाती है. और 2000 के आस-पास से भारतीय खिलाड़ी व्यक्तिगत स्पर्धाओं में पदक जीतना शुरू कर देते हैं. यहां से हमारी हॉकी के स्वर्णिम काल की और मिल्खा व उषा के प्रयासों की याद धुंधली पड़ने लगती है और उभरते नए सितारों को अपनी पलकों पर बैठाने लगते हैं. यहां उल्लेखनीय है अब जो भी सफलताएं आती हैं, वे टीम गेम में नहीं, वैयक्तिक स्पर्धाओं में आती हैं.

इसकी शुरुआत 1996 के अटलांटा ओलंपिक में लिएंडर पेस टेनिस पुरुष एकल कांस्य पदक जीतकर करते हैं. उसके बाद 2000 कर्णम मल्लेश्वरी भारोत्तोलन में कांस्य जीतने वाली पहली भारतीय महिला बनती हैं. 2004 में राज्यवर्धन सिंह राठौर शूटिंग में चांदी का पदक जीतते हैं. 2008 बीजिंग में 1952 के दो पदकों के बाद पहला अवसर था, जब भारत ने ओलंपिक खेलों में एक से ज़्यादा पदक जीते. अभिनव बिंद्रा पहली बार व्यक्तिगत स्पर्धा का स्वर्ण जीतते है. इस बार भारत ने तीन पदक जीते. 2012 के लंदन ओलंपिक में भारत उस समय तक का सबसे अच्छा प्रदर्शन करता है और कुल 06 पदक प्राप्त करता है. लेकिन 2016 में रियो में एक बार फिर 02 पदकों पर सिमट जाता है.

और तब आता है 2021 का साल. टोक्यो ओलंपिक में भारत अब तक का सबसे बेहतरीन प्रदर्शन करता है और कुल सात पदक जीतता है. टोक्यो खेलों के अंतिम दिन नीरज चोपड़ा जेवलिन थ्रो में स्वर्ण पदक जीतकर एथलेटिक्स में पदक न जीतने के जिंक्स को तोड़ते हैं और एक नए युग की शुरुआत करते हैं.

2024 के पेरिस ओलंपिक में भी नीरज चोपड़ा भारत के लिए पदक की सबसे बड़ी उम्मीद हैं. उन्होंने टोक्यो के बाद लगातार अच्छा प्रदर्शन किया है. विश्व चैंपियनशिप और एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीते हैं. लेकिन वे अभी तक 90 मीटर का बैरियर पार नहीं कर पाए हैं. अपना स्वर्णिम प्रदर्शन दोहराने के लिए उन्हें अपना सर्वश्रेष्ठ देना होगा, उनके जो भी प्रतिद्वंद्वी हैं, वे उनसे कम नहीं हैं. चेक गणराज्य के जैकब वाडलेश का सर्वश्रेष्ठ 90.88 है. जर्मनी के जूलियन वेबर की बेस्ट 89.54 की है. इसके अलावा एक और युवा जर्मन मैक्स देहिंग है जिनका बेस्ट 90.20 है. इन तीनों के लिए अलावा पाकिस्तान के अरशद नदीम की चुनौती से भी पार पाना होगा. वे भी 90 मीटर के बैरियर को पार कर अपनी बेस्ट थ्रो 90.18 की कर चुके हैं. लेकिन इस साल उनकी तैयारी बहुत अच्छी नहीं रही हैं. उन्होंने केवल तीन प्रतियोगिताओं में भाग लिया है और सीज़न की बेस्ट थ्रो में वे नंबर चार पर हैं. एथलेटिक्स का दल सबसे बड़ा दल है, जिसमें 29 एथलीट शामिल हैं. नीरज के बाद अगर किसी की बहुत पदक जीतने की संभावना है वे हैं अविनाश सांबले. बाक़ी सब का स्तर अंतरराष्ट्रीय स्तर से काफी पीछे है. ऐसे में उनसे पदक जीतने की उम्मीद रखना बेमानी होगा.

बैडमिंटन में भारत की सबसे बड़ी आशा चिराग शेट्टी और सात्विक साईराज रैंकी रेड्डी की जोड़ी है. वे इस समय नंबर तीन हैं और विश्व नम्बर वन रह चुके हैं. वे 2023 की एशियाई चैंपियनशिप, 2022 के एशियाई खेल, 2022 के कामनवेल्थ खेलों में डबल का स्वर्ण पदक जीत चुके हैं, साथ ही थॉमस कप में भारत को स्वर्ण पदक जिताने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी. वे इस समय फॉर्म में हैं और शानदार खेल रहे हैं. इस जोड़ी से पदक की उम्मीद की जानी चाहिए हैं. सिंधु ओलंपिक में दो पदक जीत चुकी हैं. लेकिन इस समय वे फॉर्म में नहीं हैं. उनका ड्रा भी कठिन है. पदक जीतना इस बार उनके लिए कठिन लगता है. लक्ष्य सेन और एच एस प्रणय दोनों अच्छी फॉर्म में हैं और अच्छा खेल रहे हैं. दोनों ही उलट-फेर करने में सक्षम हैं और कोई पदक जीत ले तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए.

शूटिंग में भारत ने अब तक एक गोल्ड और एक सिल्वर पदक जीता है. शूटिंग में पिछले कुछ सालों से पदकों की उम्मीद सबसे ज़्यादा रहती है क्योंकि शूटर विश्व स्तर पर बेहतरीन प्रदर्शन कर रहे होते हैं. लेकिन निराश भी सबसे ज़्यादा वे ही करते हैं. टोक्यो ओलंपिक में उनसे बहुत अधिक संभावना थी लेकिन दल के खिलाड़ियों और स्टाफ़ में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा था. उनका प्रदर्शन बेहद निराशाजनक रहा. इस बार भी शूटिंग से बहुत उम्मीद हैं. एथलेटिक्स के बाद सबसे बड़ा 21 सदस्यों का दल शूटर्स का ही है. मनु भाकर दो इवेंट्स 10 मीटर और 25 मीटर एयर पिस्टल में भाग ले रही हैं और पदक की बड़ी दावेदार हैं. उनके अलावा 50 मीटर की पोज़िशन में सिफ़त कौर, 10 मीटर एयर राइफ़ल में संदीप सिंह और 50 मीटर राइफ़ल में ऐश्वर्य प्रताप सिंह तोमर, 25 मीटर रैपिड फ़ायर पिस्टल में अनीश भानवाला से पदकों की सबसे ज़्यादा उम्मीद है.

कुश्ती में कुल छह पहलवानों ने अहर्ता प्राप्त की. कुश्ती में भारत में हाल के दिनों में जिस तरह का माहौल रहा है, वो बहुत ही निराशाजनक था. कुश्ती संघ और पहलवानों के बीच हुए विवाद ने कुश्ती की ओलंपिक तैयारियों को ख़ासा प्रभावित किया. वे बहुत सारी प्रतिगोगिताओं में भाग नहीं ले सके. कोई राष्ट्रीय कैम्प तक नहीं लग पाया. इस सबके बावजूद अहर्ता प्राप्त करने वाले सभी पहलवानों ने अच्छा प्रदर्शन किया है और उन सभी से पदक की उम्मीद की जा सकती है. फिर वे एकमात्र पुरुष पहलवान अमन सहरावत हों, विनेश फोगाट हो या फिर अंतिम पंघाल और अंशु मालिक हों.

यद्यपि टेबल टेनिस में इस साल खिलाड़ियों ने बेहतरीन प्रदर्शन किया है, लेकिन उनसे पदक की उम्मीद नहीं कि जा सकती. मीराबाई चानू ने टोक्यो में रजत पदक जीता था. लेकिन उसके बाद से वे अपनी चोट और फॉर्म से जूझ रहीं हैं. ऐसे में वे इस बार अपना प्रदर्शन दोहरा पाएंगी, इसमें संदेह है.

तीरंदाज़ी में कुल छह तीरंदाज़ हैं. निश्चित रूप से इनके अन्य विश्व प्रतियोगिताओं में प्रदर्शन के मद्देनज़र पदकों की उम्मीद की जा सकती है, विशेष रूप से बहुत ही अनुभवी और परिपक्व दीपिका कुमारी से.

गोल्फ़ में दीक्षा डागर और अदिति अशोक ने पिछली बार अच्छा प्रदर्शन किया था. अदिति अशोक तो अंतिम दिन तक पदक की दौड़ में थीं और बस कांस्य पदक चूक गईं. उनके प्रदर्शन पर निगाह रखनी चाहिए. वे पदक की दावेदार हो सकती हैं.

कुल मिलाकर पिछले प्रदर्शन को देखकर ये बात की जा रही है कि क्या इस बार भारत दहाई के अंकों में पदक जीत सकता है. मुझे लगता है भारतीय दल के लिए पिछली बार की बराबरी कर लेना भी बड़ी चुनौती सिद्ध होगी. हाँ, अगर शूटिंग में प्रदर्शन अच्छा रहा तो दहाई के अंक में पहुंचना संभव हो सकता है.

गुड लक टीम इंडिया.

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