पांच नगाड़ों की थाप के साथ होला मोहल्ला शुरू

श्रीकीरतपुर साहिब | क़िला आनंदगढ़ साहिब में पांच पुरातनी नगाड़े बजाकर आज होला मोहल्ला का आगाज़ हुआ. श्री कीरतपुर साहिब में 26 मार्च तक और इसके बाद 27, 28 और 29 मार्च को श्री आनंदपुर साहिब में होला मोहल्ला का आयोजन होगा. 29 मार्च को मोहल्ला निकाला जाएगा.

मानते हैं कि सिखों के दसवें गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना के बाद होला मोहल्ला की शुरुआत ख़ुद कराई थी. सिख एनसाक्लोपीडिया के मुताबिक पौरुष औऱ बहादुरी के इस प्रतीक पर्व में होला का आशय हल्ला से है, फ़ौजों के यलग़ार का हल्ला और मोहल्ला का आशय संगठित जुलूस से है यानी कि फ़ौज का अनुशासित संचलन. यों होला संस्कृत का शब्द है और अर्थ होली है. और यह पर्व होली के मौक़े पर ही मनाए जाने की परंपरा है.

होला मोहल्ला की शुरुआत सन् 1757 में श्री आनंदपुर साहिब में होलगढ़ से शुरू हुई. वहां आज क़िला होलगढ़ साहिब सुशोभित है. गुरु ने सिंहों की दो दल बनाकर एक को सफ़ेद और दूसरे को केसरिया वस्त्र पहनाए थे. फिर होलगढ़ पर एक गुट को क़ाबिज कराके दूसरे गुट को उन पर हमला करके उसे क़ब्जे से मुक्त कराने को कहा. इस दौरान तीर या बंदूक जैसे हथियार बरतने की मनाही की गई क्योंकि दोनों तरफ़ गुरु की फ़ौजें ही तो थीं. आख़िरकार केसरी वस्त्रों वाली सेना ने होलगढ़ पर क़ब्जा कर लिया था.

गुरु ख़ुश हुए. प्रसाद बनाकर सब में बांटा गया और ख़ुशियां मनाई गईं. उस दिन से श्री आनंदपुर साहिब का होला मोहल्ला मनाने की परंपरा है और अपनी विशिष्टता के चलते यह पूरी दुनिया में ख़ास पहचान रखता है. इस मौक़े पर गुलाब के फूलों से बने रंगों की होली खेली जाती है.


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