जीते जी इलाहाबाद | नैरेटिव और शब्दों से बना शहर: बद्री नारायण

  • 6:54 am
  • 20 September 2021

प्रयागराज | ममता कालिया की किताब ‘जीते जी इलाहाबाद’ का लोकार्पण सोमवार को साहित्यिक-सांस्कृतिक बिरादरी बीच हुआ. संस्मरण के रूप में लिखी इस किताब में इलाहाबाद की आधी सदी का साहित्यिक-सांस्कृतिक परिवेश, इतिहास, समाज, मानवीय और भावनात्मक दस्तावेज़ के रूप में दर्ज हुआ है. आयोजन उत्तर-मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र के प्रेक्षागृह में हुआ.

इस मौके पर ममता कालिया ने कहा कि इलाहाबाद शहर एक कसौटी है. अगर इस शहर ने क़बूल कर लिया तो फिर बाक़ी भारत की चिंता नहीं. मैं ख़ुशकिस्मत हूं कि मेरा हिंदीकरण इलाहाबाद में हुआ और यहीं मुझे प्रकाशक मिला. मुझे लॉन्चिंग पैड इसी शहर में मिला. मेरी सांसों में बसा है इलाहाबाद. मैंने अपनी ग़लतियों को भी जिया है. संतोष है कि मैंने अपना जीवन व्यर्थ नहीं गंवाया. किताब ‘जीते जी इलाहाबाद’ स्मृतियों का उत्सव है.

कवि और इतिहासकार प्रोफ़ेसर बद्रीनारायण ने कहा कि शहरों पर लिखी गई किताबों के बीच यह नए तरह की किताब है. ममता जी ने इस किताब में स्मृतियों के माध्यम से नए इलाहाबाद की तलाश की है. इसके पहले ही शब्द से बौद्धिक संवाद बन जाता है. फ़िज़िकल स्पेस के अलावा इसमें सिंबॉलिक इलाहाबाद है, वृत्तांतों (नैरेटिव) और शब्दों से बना इलाहाबाद है. इस किताब के बहुत सारे शब्द अनूठे हैं.’जीते जी इलाहाबाद’ बातों के माध्यम से ‘रिकवरी ऑफ़ लॉस’ है.

राजकमल प्रकाशन के समूह संपादक सत्यानंद निरुपम ने कहा कि वरिष्ठ लेखक होने के बावजूद ममता कालिया ने राजकमल प्रकाशन पर भरोसा किया, उसी का परिणाम है यह ख़ूबसूरत किताब. उन्होंने कहा कि संस्मरण में सच-झूठ की तरफ़ न जाएं. लेखक की ऑब्जेक्टिविटी देखी जानी चाहिए, यह किताब ‘सेंस ऑफ़ लॉस’ और ‘सेंस ऑफ़ गेन’ के घर्षण से रची गई है.’जीते जी इलाहाबाद’ सिटी कल्चर की किताब है, सिर्फ संस्मरण नहीं है. इसमें स्वकथा के साथ शहर कथा भी है.

कवि-आलोचक बसंत त्रिपाठी ने कहा कि इस किताब में ममता कालिया ने जिस इलाहाबाद को याद किया है, वह एक रूप इलाहाबाद नहीं है. ‘जीते जी इलाहाबाद’ को उन्होंने बेहद दिलचस्प किताब बताया और कहा कि इस किताब में ममता जी ने जिस इलाहाबाद का जिक्र किया है, वह प्यार करने के साथ आत्मालोचन के लिए भी प्रेरित करता है.

कथाकार प्रो.अनीता गोपेश ने कहा कि इलाहाबाद अपने तरह का जीवंत और बेलौस शहर है. इस किताब में ममता कालिया उंगली पकड़कर इलाहाबाद की गलियों में घुमाती हैं. उन्होंने इस शहर के तेवर को बख़ूबी रेखांकित किया है.

संपादक-कथाकार अखिलेश ने कहा कि उन्हें इस किताब का पहला पाठक होने का सौभाग्य है. इस किताब में बिछड़ने का शोक नहीं बल्कि इलाहाबाद और ज़िंदगी का जश्न है, जीवट है. ममता कालिया ने इसमें इलाहाबाद को तीन स्तरों पर दर्ज किया है – साहित्यिक व सामाजिक माहौल, देवत्व से उखाड़कर मनुष्य के स्तर पर ले आने वाला इलाहाबाद है और उनका अपने परिवार का आत्मीयता और तटस्थता के साथ चित्रण.

लोकार्पण कार्यक्रम की शुरुआत में नाट्यकर्मी प्रवीण शेखर ने ‘जीते जी इलाहाबाद’ के कुछ अंशों का पाठ किया. स्वागत राजकमल प्रकाशन के अशोक माहेश्वरी एवं आमोद माहेश्वरी ने किया और संचालन कवि यश मालवीय ने. अध्यक्षीय वक्तव्य में रमेश ग्रोवर ने कहा कि इस किताब में कमाल की क़िस्सागोई है.

कार्यक्रम में प्रो.संतोष भदौरिया, प्रो.हेरंब चतुर्वेदी, प्रो.अनामिका राय, डॉ.रमा शंकर, असरार गांधी, मनोज पाण्डेय, नीलम शंकर, अनीता त्रिपाठी, एकता शुक्ला, डॉ.विनम्र सेन सिंह, डॉ.सुजीत कुमार सिंह, डॉ.लक्ष्मण गुप्ता, डॉ.कुमार वीरेंद्र, डॉ.अमरेंद्र त्रिपाठी, डॉ.सुनील विक्रम सिंह, श्लेष गौतम, प्रियदर्शन, डॉ.सूर्य नारायण, विवेक निराला, डॉ.धीरेन्द्र धवल, सुधांशु उपाध्याय और डॉ.अभिलाषा भी शामिल हुए.

फ़ोटो | प्रदीप्त यादव


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