लखनऊ स्पेक्ट्रम आर्ट फ़ेयर: प्रदर्शनी भर नहीं, कलात्मक जागरण भी
लखनऊ | लखनऊ स्पेक्ट्रम आर्ट फ़ेयर – 2025, शहर की समकालीन कला-यात्रा में एक ऐतिहासिक क्षण बनकर उभरा है— यह कलात्मक विविधता, रचनात्मक संवाद और सांस्कृतिक पुनरुत्थान का उत्सव है. राजधानी की प्रतिष्ठित फ़्लोरेसेंस आर्ट गैलरी की ओर से आयोजित इस विराट कला-मेले में देशभर से 111 कलाकारों की 300 से ज्यादा समकालीन, लोक, पारंपरिक और जनजातीय रचनाएँ एक साथ एक मंच पर प्रदर्शित हैं, जो भारतीय कला के वर्तमान परिदृश्य का एक सजीव पैनोरमा प्रस्तुत करती हैं.
फ़ीनिक्स पलासियो, लखनऊ के रीटेल डायरेक्टर संजीव सरीन के सहयोग से आयोजित यह आयोजन कला और जनजीवन के बीच एक जीवंत सेतु बन गया है— ऐसा मंच जहाँ शहर ख़ुद रचनात्मकता से संवाद करता है.
लखनऊ सदियों से अपनी काव्यात्मक संवेदना, नवाबी स्थापत्य और सांस्कृतिक परंपराओं के लिए ख्यात रहा है. संगीत, नृत्य और हस्तशिल्प से लेकर ललित कलाओं तक, इस शहर ने हमेशा सृजन को आत्मा की भाषा माना है. किंतु बीते दशक में यहाँ की दृश्य कला-चेतना एक नए रूप में विकसित हो रही है. लखनऊ स्पेक्ट्रम आर्ट फेयर जैसे उपक्रम इस परिवर्तन की नई दिशा हैं—जहाँ कला अब अकादमिक दीवारों या निजी संग्रहों तक सीमित नहीं, बल्कि साझा अवामी अनुभव बनकर उभर रही है.
इस पहल के केंद्र में नेहा सिंह हैं, जो फ़्लोरेसेंस आर्ट गैलरी की संस्थापक और निदेशक हैं, और कला दृष्टि वाले तीन क्यूरेटर भूपेंद्र कुमार अस्थाना, राजेश कुमार और गोपाल समांतराय, जिनकी दृष्टि सार्थक प्रदर्शनों के माध्यम से कलाकारों, दर्शकों और संग्राहकों को जोड़ने की रही है. इस मेले के माध्यम से वे न केवल भारतीय समकालीन कला की विविधता को प्रस्तुत करती हैं, बल्कि संवाद का एक खुला मंच भी निर्मित करती हैं—जहाँ उभरते कलाकार और वरिष्ठ रचनाकार, पारंपरिक और प्रयोगधर्मी प्रवृत्तियाँ, स्थानीय और देश भर के दर्शक—सब एक साथ संवाद करते हैं.
आधुनिक अधोसंरचना और व्यापक जन-भागीदारी के कारण यह स्थान कला-संवाद के लिए फ़ीनिक्स एक अप्रत्याशित किंतु आदर्श मंच बन गया है. जैसा कि संजीव सरीन का कहना है— “कला को केवल दीर्घाओं तक सीमित नहीं रहना चाहिए— उसे वहाँ पहुँचना चाहिए जहाँ लोग जीते हैं, चलते हैं और प्रेरित होते हैं.” उनका यह दृष्टिकोण इस भव्य प्रदर्शनी को शहर के हृदय तक पहुँचाने में निर्णायक रहा है.
प्रदर्शनी में भारत के लगभग 20 प्रांतों से कलाकार शामिल हैं—हिमाचल प्रदेश के पहाड़ी अंचलों से लेकर केरल के तटीय प्रदेशों तक, दिल्ली-मुंबई जैसे महानगरों से लेकर लखनऊ, भोपाल और भुवनेश्वर जैसे उभरते कला-केन्द्रों तक. माध्यमों की विविधता भी अद्भुत है— चित्रकला, मूर्तिकला, सिरैमिक, इंस्टॉलेशन, मिश्रित माध्यम और डिज़िटल आर्ट—सब मिलकर एक गतिशील संवाद रचते हैं. चयन से स्पष्ट है कि आज की भारतीय कला किसी एक वर्गीकरण में नहीं बंधती—वह जड़ और प्रयोगशील दोनों है; आत्मपरक भी है और सामाजिक भी.


प्रदर्शनी में घूमते हुए दर्शक अनेक दृश्य-भाषाओं से साक्षात्कार करते हैं—अभिव्यक्तिपरक अमूर्तन से लेकर सूक्ष्म यथार्थवाद तक, अलौकिक आख्यानों से लेकर अवधारणात्मक संयोजनों तक. कई कलाकार स्मृति, पहचान और नगरीय रूपांतरण के विषयों पर कार्य कर रहे हैं, तो कुछ प्रकृति, लिंग और मनुष्य-प्रकृति के दार्शनिक संबंधों को तलाश रहे हैं. कहीं पारंपरिक भारतीय सौंदर्यशास्त्र को समकालीन संदर्भों में पुनर्परिभाषित किया गया है, तो कहीं डिज़िटल प्रभावों के माध्यम से नए आयाम खोले गए हैं. इन सबके बीच एक साझा स्वर गूँजता है—विचारशीलता, संवेदना और कल्पना का संगम.
इस मेले की एक विशेषता इसका पीढ़ियों के बीच संवाद है. यहाँ युवा कलाकारों के कार्य वरिष्ठ रचनाकारों के साथ प्रदर्शित हैं—जिससे प्रतिस्पर्धा नहीं, बल्कि सतत संवाद और परंपरा की निरंतरता का भाव उभरता है. यही फ़्लोरेसेंस आर्ट गैलरी की मूल दृष्टि भी है—प्रतिभा को पोषित करना और विरासत का सम्मान बनाए रखना. इस अर्थ में लखनऊ स्पेक्ट्रम आर्ट फेयर 2025 केवल एक प्रदर्शनी नहीं, बल्कि विचारों और संबंधों का जीवंत पारिस्थितिक तंत्र बन जाता है.
जनसामान्य की प्रतिक्रिया अत्यंत उत्साहजनक रही है. विद्यार्थी, कला-प्रेमी, परिवार, पेशेवर और संग्राहक—सभी बड़ी तादाद में प्रदर्शनी देखने पहुँच रहे हैं. तमाम दर्शक घंटों तक रचनाओं के बीच रुककर संवाद करते दिखाई देते हैं. यह आयोजन अब केवल कलाकारों का नहीं, बल्कि शहर का उत्सव बन गया है—ऐसा मंच जो लखनऊ को उसकी सौंदर्यपरक शक्ति और समकालीन प्रासंगिकता का पुनः बोध कराता है.
एक व्यापक दृष्टि से देखें तो लखनऊ स्पेक्ट्रम आर्ट फेयर का यह संस्करण भारत की बदलती कला-परिस्थिति का प्रतीक भी है. अब लखनऊ जैसे क्षेत्रीय नगर दिल्ली या मुंबई की प्रवृत्तियों का अनुसरण मात्र नहीं कर रहे—वे अपनी स्वतंत्र कलात्मक पहचान गढ़ रहे हैं. ऐसे आयोजन यह सिद्ध करते हैं कि कला महानगरों की परिधि से बाहर भी फल-फूल सकती है, यदि उसे समर्पित क्यूरेटर, संस्थाएँ और जागरूक दर्शक मिलें. देशभर के 111 कलाकारों की भागीदारी स्वयं इस तथ्य का प्रमाण है कि लखनऊ अब कला और संस्कृति के नए केंद्र के रूप में उभर रहा है.
दृश्य और वैचारिक आकर्षण से परे यह मेला साझा अनुभव का भी उत्सव है— जहाँ देखने, ठहरने और आत्म-संवाद करने का अवसर मिलता है. विषयगत समूहों में कलाकृतियों की सुविचारित प्रस्तुति दर्शक को विविध मनोभावों की यात्रा पर ले जाती है. यह संगति और लयबद्धता निदेशक नेहा सिंह की उस संवेदनशील दृष्टि को प्रकट करती है जो कलाकार की मंशा और दर्शक के अनुभव दोनों का सम्मान करती है.
यह प्रदर्शनी 30 नवम्बर 2025 तक लगी रहेगी— शहरियों के लिए यह भारतीय समकालीन कला की रंगीन, विचारशील और प्रेरक दुनिया में डूबने का अनूठा अवसर है. इस आयोजन की सफलता— दर्शक उपस्थिति और समीक्षात्मक सराहना— दोनों ही स्तरों पर— यह संकेत देती है कि ऐसी पहलें न केवल कला के लिए, बल्कि शहर के सांस्कृतिक आत्मबोध के लिए भी बहुत ज़रूरी हैं.
क्यूरेटर के शब्दों में—“लखनऊ स्पेक्ट्रम आर्ट फ़ेयर केवल एक प्रदर्शनी नहीं, बल्कि एक शहर का कलात्मक जागरण है. यह उन आवाज़ों को स्थान देने का प्रयास है, जो देखी-सुनी जाने की पात्र हैं—और यह याद दिलाने का कि सृजनशीलता मनुष्य होने का सबसे सच्चा उत्सव है.”
अपने विविध रंगों, सार्थक दृष्टि और जन-संवेदना से जुड़ी प्रस्तुति के साथ द स्पेक्ट्रम आर्ट फ़ेयर निःसंदेह लखनऊ के सांस्कृतिक मानचित्र पर एक मील का पत्थर बन गया है—ऐसा क्षण जो आने वाले वर्षों तक शहर की कलात्मक चेतना को प्रेरित करता रहेगा.
(भूपेंद्र कुमार अस्थाना / राजेश कुमार, क्यूरेटर, लखनऊ स्पेक्ट्रम – 2025)
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