लोग-बाग | हाथ फैलाने की शर्मिंदगी से मशक़्क़त कहीं अच्छी

रुद्रपुर | अटरिया मोड़ पर पंक्चर दुरुस्त करने का समीर जहाँ का यह ठिकाना बीस साल पुराना है. घर में चूल्हे-चौके के आदी हाथों में हथौड़ी-चाबी संभालने की ज़रूरत भी दरअसल घर और कुनबे की वजह से ही पेश आई.

समीर जहाँ के शौहर मोहम्मद रफ़ीक़ राजमिस्त्री रहे हैं. सन् 2001 में गंभीर बीमारी का शिकार हुए रफ़ीक़ अपना काम करने में असमर्थ हो गए. उन्हें काम छोड़ देना पड़ा. पैसों की तंगी और घर चलाने का मसला सामने आया तो समीर जहाँ ने पंचर जोड़ने का काम शुरू कर दिया.

हर सुबह एक साइकिल पर मरम्मत का सारा सामान लादे अपने बेटे अबरार को साथ लिए वह अपने ठिकाने पर पहुंच जाती हैं. अबरार ने आठवीं तक पढ़ाई की है मगर ज़रूरतों का बोझ स्कूल के बस्ते से कहीं भारी है, इसलिए उसने स्कूटर-मोटर साइकिल का पंक्चर बनाना सीख लिया और अब माँ का हाथ बंटाता है.

बक़ौल समीर जहां, पहले लोगों को लगता नहीं था कि कोई औरत पंक्चर भी जोड़ सकती है तो लोग आते ही नहीं थे. धीरे-धीरे उनके काम पर ऐतबार जम गया. अब यह है कि दिन भर की मशक़्क़त से घर का चूल्हा जलाने भर को जुटा लेती हैं और छोटे बच्चों को पढ़ा पा रही हैं.

कहती हैं कि किसी के आगे हाथ फैलाने की शर्मिंदगी के मुक़ाबले ख़ुद मेहनत करना कहीं ज़्यादा अच्छा है. सुकून मिलता है. मेरे शौहर ख़ुद काम नहीं कर पाते मगर यहाँ आकर साथ बैठ जाते हैं, उनके साथ होने से भी हौसला बंधता है.

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