कछुओं की पहचान के लिए मोबाइल एप लॉंच

कछुआ हमारी कहानी में ख़रगोश से दौड़ में जीता प्राणी भर नहीं है, और न ही धीमी गति की वजह से उलाहना का प्रतीक. यह दुनिया की सबसे पुरानी जीवित प्रजातियों में एक माना जाता है. तो कछुओं की दुर्लभ प्रजातियों को लुप्त होने से बचाने के लिए लोगों को जागरूक करने और कछुओं तथा उनके ठिकानों की हिफ़ाज़त में लोगों की मदद की अपेक्षा में आज का दिन कछुओं के नाम.

विश्व कछुआ दिवस पर बहराइच में आज हुए एक कार्यक्रम में टीएसए-इंडिया ने कछुओं की पहचान और उनकी सुरक्षा के बारे में विस्तार जानने के लिए अपनी वेबसाइट (turtlesurvival.org) और कुर्मा (KURMA) एप की मदद लेने का आग्रह किया.

टर्टल सर्वाइवल एलायंस (टीएसए) की अरुणिमा सिंह ने बताया कि कुर्मा एप्लीकेशन में कछुओं की 29 प्रजातियों का डेटाबेस मौजूद है, साथ ही देश भर में कछुआ पुनर्वास केंद्रों का ब्योरा भी है. यह एप्लीकेशन कछुओं की पहचान में तो मददगार है ही, ज़रूरत पड़ने पर कछुओं के संरक्षण में जुटे संगठनों या पुनर्वास केंद्रों से संपर्क करने में भी सहायक है.

पीलीभीत टाइगर रिज़र्व, विश्व प्रकृति निधि और समाधान विकास समिति विपनेट क्लब की तरफ़ से आज एक ऑनलाइन कार्यक्रम हुआ. विश्व प्रकृति निधि के वरिष्ठ परियोजना अधिकारी नरेश कुमार ने बताया कि दुनिया भर में मिलने वाली कछुओं की 300 प्रजातियों में से 29 प्रजातियाँ भारत में पाई जाती हैं. उत्तर प्रदेश में 15 प्रजातियों के कछुए मिलते हैं. पीलीभीत में अब तक 12 प्रजातियों की पहचान हुई है.

उन्होंने प्रतिभागियों से आग्रह किया कि अगर कछुआ बीमार या घायल न हो तो उसे उसके प्राकृतिक आश्रय की जगह से बाहर बिल्कुल नहीं निकालें.

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