जलसाघर में भविष्य के पाठक विषय पर परिचर्चा

  • 9:06 pm
  • 11 February 2024

नई दिल्ली | विश्व पुस्तक मेला में इतवार को राजकमल प्रकाशन समूह के स्टॉल जलसाघर में ‘भविष्य के पाठक’ विषय पर परिचर्चा के साथ कार्यक्रम की शुरुआत हुई. प्रज्ञा के उपन्यास ‘काँधों पर घर’ और अंकिता आनंद के कविता संग्रह ‘अब मेरी बारी’ का लोकार्पण हुआ. साथ ही ‘संघर्ष नर्मदा का’, ‘अगम बहै दरियाव’ और ‘रहमानखेड़ा का बाघ’ किताबों पर बातचीत हुई. कार्यक्रम के अंतिम सत्र लेखक से मिलिए कार्यक्रम में कथाकार चन्द्रकान्ता ने पाठकों से संवाद किया.

पुस्तकप्रेमियों से ‘सोफ़ी का संसार’, ‘निठल्ले की डायरी’, ‘कुछ इश्क किया कुछ काम किया’, ‘बोलना ही है’, ‘साये में धूप’, ‘काशी का अस्सी’ जैसी किताबों को सर्वाधिक पसन्द किया.

‘भविष्य के पाठक’ पर परिचर्चा
इस सत्र में अणुशक्ति सिंह, जय प्रकाश कर्दम, राकेश रेणु, विनोद तिवारी तथा तशनीफ हैदर बतौर वक्ता मौजूद रहे. संचालन मनोज कुमार पांडेय ने किया.

इस सत्र में रमाशंकर सिंह ने कहा “जैसे जैसे दुनिया बदलेगी पाठक बदलेंगे. हो सकता है भविष्य में लेखन के विषय बदल जाय लेकिन किताबें रहेंगी. भले ही कागज़ का माध्यम परिवर्तित हो जाए.” युवा रचनाकार अणुशक्ति ने कहा “मनुष्य क्या चाहता है यह ए.आई. कभी नहीं बता सकता क्योंकि मनुष्य स्वयं में दिग्भ्रमित है. हो सकता है आने वाले समय में तकनीक बढ़े तो प्लेज़र ऑफ़ ट्रेंडिंग बदल जाए, लोग सिर्फ़ इनफ़ॉर्मेशन के लिए पढ़ने लगे लेकिन किताबें और पाठक कम नहीं होंगे.” आज के समय में मुद्रित पुस्तकों की महत्ता बताते हुए राकेश रेणु ने कहा “शायद हमारे समय के बाद मुद्रित किताबें ख़त्म हो जाऍं परंतु नई किताब छूने की जो ख़ुशी होती है, छपे कागज़ की जो ख़ुशबू होती है वह ई-बुक और किंडल शायद कभी न दें पाऍं.” इसी विषय में विनोद कुमार ने कहा “मुद्रित किताबों में हाशिए की जो हिस्सेदारी होती है वह ई-बुक में नहीं मिल सकती.पाठक उससे सामन्जस्य नहीं बैठा सकते.” पाठकों के विषय में तशनीफ हैदर ने कहा “कुछ पाठक बहुत ख़ामोशी से पढ़ते हैं, दिखावा नहीं करते. वो अपना काम कर रहे हैं. हमें उन्हें खोजने की ज़रूरत नहीं है.” अंत में जयप्रकाश कर्दम ने कहा “लेखक किसी भी रचना में उसके द्वारा देखा गया द्वंद्व दिखाता है. भविष्य में पाठकों के सामने सवाल और मुश्किलें होंगी. आज का पाठक को पता है उन्हें क्या पढ़ना है. वह केवल साहित्य नहीं पढ़ रहा वह विमर्श पढ़ रहा है जो कभी ख़त्म नहीं हो सकता. इसलिए इस विषय को समग्रता में देखने की आवश्यकता है.”

‘काॅंधों पर घर’ का लोकार्पण
प्रज्ञा के उपन्यास ‘काॅंधों पर घर’ के लोकार्पण के मौके पर रोहिणी अग्रवाल, शंकर तथा भालचंद्र जोशी की विशिष्ट उपस्थिति रही. कार्यक्रम का संचालन डॉ. राकेश कुमार ने किया. परिचर्चा के दौरान भालचंद्र जोशी ने उपन्यास के बारे में कहा – “पूरा उपन्यास यमुना पुश्ता के ईद गिर्द घूमता है, वहा की गरीबी, सुख दुःख इसमें देखा जा सकता है.” शंकर ने कहा “समाज के निचले तबके के संघर्ष और जिजीविषा का उपन्यास है.” उपन्यास के बारे में रोहिणी अग्रवाल ने कहा “यह उपन्यास इसलिए महत्त्वपूर्ण है क्योंकि आज हम इक्कीसवीं सदी में विकास का आगाज़ करने जा रहे हैं. यह उपन्यास दिल्ली का विकास करने वाले और हाशिए पर धकेल दिए जाने वाले मजदूरों को सामने लाता है.” वहीं पर लेखक ने कहा, “इस उपन्यास के माध्यम से मैंने विकास के मॉडल पर मानवीय सवाल उठाने की कोशिश की है. इसमें पलायन से विस्थापन, विस्थापन से पुनर्स्थापन फिर विस्थापन दर विस्थापन का अंतहीन सिलसिला है.”

अगले सत्र में संजय काक लेखक नंदिनी ओझा से उनकी पुस्तक ‘संघर्ष नर्मदा का’ पर बातचीत की. कार्यक्रम के दौरान नंदिनी ओझा ने कहा कि “मुझे ख़ुशी होती है जब मैं बात करती हूॅं उन लोगों से जो विस्थापित हुए हैं. वे हमेशा संघर्षरत हैं. उनका कहना है कि उन्होंने खोया बहुत है पर हारे नहीं हैं.” नंदिनी ओझा की यह किताब नर्मदा नदी को बचाने के लिए हुए संघर्ष का दस्तावेज है. इस किताब में नर्मदा बचाओ आंदोलन में शामिल लोगों के संस्मरण संकलित है.

रहमानखेड़ा का बाघ पर बातचीत
रमेश कुमार पाण्डेय ने लेखक उत्कर्ष शुक्ला से उनके उपन्यास ‘रहमानखेड़ा का बाघ’ पर बातचीत की। बातचीत के दौरान लेखक ने बताया कि इस कहानी संग्रह में उन्होंने रेस्क्यू के वक्त की घटनाओं को लिखा है. अपने रेस्क्यू के बारे में उन्होंने बताया कि वे कभी भी निराश होकर वापस नहीं आए हर रेस्क्यू ऑपरेशन के दौरान उन्हें मज़ा आया. उन्होंने कहा कि इस दौरान किसी भी जानवर को हानि नहीं हुई यह मेरे लिए अधिक महत्त्वपूर्ण था.

अगम बहै दरियाव के गीत
किसानों के जीवन पर केन्द्रित शिवमूर्ति के उपन्यास ‘अगम बहै दरियाव’ पर देवेश ने उनसे बातचीत की. यह उपन्यास आंचलिकता को दर्शाता है. उपन्यास के बारे में लेखक ने कहा “इस उपन्यास के सभी पात्र असली हैं. पैदा होने के साथ ही मैंने इस रचना के लिए सामग्री जुटाना शुरू कर दिया था और रिटायरमेंट के बाद इसे लिखा.” बातचीत के बाद शिवमूर्ति ने उपन्यास से अंशपाठ किया और इसमें संकलित कुछ गीत भी गुनगुनाए. अगम बहै दरियाव के गीतों ने श्रोताओं को बहुत गुदगुदाया और सबने बहुत रुचि से पूरे सत्र को सुना.

कश्मीर की समस्या पर बातचीत
कार्यक्रम के अगले सत्र में ‘लेखक से मिलिए’ कार्यक्रम में कथाकार चन्द्रकांता के साथ संवाद किया गया. सत्र का संचालन विशाल पाण्डेय ने किया. इस सत्र में ‘कश्मीर’ परिचर्चा का केंद्रीय विषय रहा. इस दौरान चंद्रकांता ने उनके उपन्यास ‘समय अश्व बेलगाम’ के विषय में कहा कि “मैंने धारा 370 का ज़िक्र किया है लेकिन ज़्यादा नहीं किया. मैंने यह दिखाया है कि उसके बाद क्या हुआ. कश्मीर में विस्थापन नहीं हुआ बल्कि निष्कासन हुआ है. एक स्वतंत्र लोकतंत्र में निष्कासन शर्मनाक और लज्जाजनक है.”

‘अब मेरी बारी’ का लोकार्पण
कार्यक्रम के अंतिम सत्र में अंकिता आनंद के कविता संग्रह ‘अब मेरी बारी’ का लोकार्पण हुआ. इस संग्रह की कविताएँ नए समय की उस नई स्त्री को सम्मुख लाती हैं जो प्रेम तो करना जानती है, लेकिन अपने स्वाभिमान की क़ीमत पर नहीं. वह प्रेम में डूब जाना चाहती है, लेकिन इस आश्वस्ति के साथ कि प्रेम का दूसरा भागीदार भी उतना ही गहरे. संग्रह पर बातचीत करते हुए अंकिता ने कहा कि इसमें मेरे बचपन से लेकर अब तक लिखी हुई कविताएँ संकलित है. लोकार्पण के बाद अंकिता ने अपने संग्रह से कुछ कविताओं का पाठ किया.

(विज्ञप्ति)

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