बेनू सेन | तस्वीरों की दुनिया में नई लीक के सूत्रधार

दोस्त और शागिर्द उन्हें आदर और प्यार से उन्हें बेनू दा पुकारते. और उन सबकी प्रेरणा के स्रोत बेनू सेन की हमेशा कोशिश रहती कि अपना सारा हुनर, सारा कौशल फ़ोटोग्राफ़ी के जिज्ञासुओं से साझा कर सकें. उनके स्टूडेंस ने भी उनसे ख़ूब सीखा और अमल किया. एक दौर था कि जब देश भर के फ़ोटोग्राफ़ी सलॉन या प्रतियोगिताओं में शामिल उनके शागिर्दों की तस्वीरें अलग से पहचान ली जाती थीं. कई लोगों ने फ़ोटो कोलॉज की उस तरतीब को दमदम स्कूल ऑफ़ फ़ोटोग्राफ़ी का नाम दे दिया था.

ज़िंदगी अगर क्षणभंगुरता का कोलाज है, तो बेनू सेन की तस्वीरें ऐसे क्षणों की छवियों का गुलदस्ता, जिनमें ज़िंदगी के बेशुमार रंग झिलमिलाते हैं. लाइट और शेड्स के मनोरम खेल वाली मोनोक्रोम तस्वीरें हों या फिर मर्मस्पर्शी कैंडिड शॉट्स – बेनू सेन का नज़रिया और उनका कौशल हमेशा ही प्रभावित करते हैं.

बेनू दा ग्राउण्ड इंजीनियर थे और फ़ोटोग्राफ़ी से उनके रिश्ते की शुरुआत भी बड़े अनूठे ढंग से हुई थी. और इसका ज़रिया उनके एक दोस्त बने. बात 15 अगस्त 1954 की है. वह अपने दोस्त के साथ स्वतंत्रता दिवस समारोह देखने गए थे. समारोह की तस्वीरें खींचने के इरादे से उनका दोस्त कैमरा लेकर गया था. बेनू दा के मन में कैमरा देखने-समझने की उत्सुकता हुई. उन्होंने कैमरा मांगा तो उनके दोस्त ने यह कहकर इनकार कर दिया कि नया कैमरा है और छेड़छाड़ करने से कैमरा ख़राब हो जाएगा.

दोस्त के इनकार से आहत बेनू सेन अगले ही रोज़ कलकत्ता के कबाड़ी बाज़ार पहुंच गए – ख़ुद अपना कैमरा बनाने के लिए सामान की तलाश में. वहाँ से लेंस, टिन और कुछ स्क्रैप ख़रीदकर उन्होंने अपना कैमरा बना डाला. इस कोशिश की सफलता ने उनके लिए कैमरा मैकेनिक्स और डार्करूम तकनीक में प्रयोग के तमाम रास्ते खोले. और यह हैरानी की बात नहीं कि इसके बाद बेनू सेन की इंजीनियरिंग की पढ़ाई पीछे छूट गई और फ़ोटोग्राफ़ी उनकी दुनिया बन गई.

फ़ोटोग्राफ़ी की रचनात्मकता और उनकी कल्पना के संयोग बनने वाली तस्वीरों की विशिष्टता ने नई और अलग लीक डाली. यही वजह है कि उनकी तस्वीरें किसी फ़ोटोग्राफ़र की बनाई हुई कम, किसी चित्रकार का कैनवस ज्यादा लगती हैं. ऑस्ट्रेलिया के कैमरा वर्ल्ड इंटरनेशनल ने उनकी तस्वीरों की इस विशिष्टता का सम्मान करते हुए उन्हें सर्वश्रेष्ठ ‘इंडियन पिक्टोरियलिस्ट’ का ख़िताब दिया. हार्वर्ड विश्वविद्यालय के संग्रहालय ने ‘म्यूज़ियम फ़ोटोग्राफ़ी’ में उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए उन्हें सम्मानित किया.

बेनू सेन सन् 1990 में भारतीय संग्रहालय से फोटो अधिकारी के पद से रिटायर हुए थे. सामाजिक और सांस्कृतिक मानवविज्ञान के साथ ही संग्रहालय फ़ोटोग्राफ़ी के क्षेत्र में भी उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है. कलात्मक और रचनात्मक फ़ोटोग्राफ़ी के पचास साल के सफ़र में उनकी तस्वीरें दुनिया भर में तमाम सलॉन में देखी-सराही गईं और कई पुरस्कार जीते.

वह दुनिया के तीसरे ऐसे शख़्स थे, जिन्हें यूनेस्को की मान्यता वाले ‘फ़ेडरेशन इंटरनेशनल डी ‘आर्ट फ़ोटोग्राफ़िक़’ का ‘मास्टर ऑफ़ फ़ोटोग्राफ़ी’ ‘(एमएफ़आईएपी) सम्मान मिला. 1975 में रॉयल फ़ोटोग्राफ़िक सोसाइटी ऑफ़ ग्रेट ब्रिटेन की फ़ेलोशिप से सम्मानित किया. रचनात्मक फ़ोटोग्राफ़ी के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए उन्हें 2010 में भारत सरकार ने उन्हें ‘लाइफ़ टाइम अचीवमेंट अवार्ड’ देकर सम्मानित किया था.

17 मई, 2011 को उनका निधन हुआ. सिद्ध फ़ोटो-आर्टिस्ट, असाधारण उस्ताद और अद्भुत कल्पनाशीलता वाले नायाब इंसान के तौर पर बेनू दा हमेशा याद किए जाएंगे.

कवर | बेनू सेन की तस्वीर पैराडाइज़ लॉस्ट

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