ख़ुद तो हसरत ही रहा इज़हारे-इश्क, यों ज़माने को सलीक़ा सिखा गए

  • 1:29 pm
  • 15 April 2021

यह सन् 1940 की बात है, जब रोज़गार की तलाश में एक नौजवान इक़बाल हुसैन अपना शहर जयपुर छोड़कर बंबई पहुंच गया. वहां बस में कंडक्टर का काम पा गया. तबियत से शायर था, सो अपने काम के सिवाय शायरी करता. कहीं मुशायरा होता तो उसमें शिरकत भी करता.

मौलाना हसरत मोहानी से यह नौजवान इस क़दर मुतासिर था कि अपना तख़ल्लुस भी हसरत रख लिया. उन्हीं शुरुआती दिनों में मौलाना हसरत मोहानी किसी मुशायरे में जयपुर आए. इक़बाल हुसैन ने भी इसमें शिरकत की. अपने महबूब शायर हसरत मोहानी से मुलाकात भी की. हसरत मोहानी ने इक़बाल हुसैन को सलाह दी कि उनका तख़ल्लुस तो हसरत ठीक है, मगर इसके साथ वह जयपुरी और जोड़ लें. इक़बाल को यह राय जंच गई और इस तरह वह हसरत जयपुरी हो गए.

हसरत जयपुरी की शायरी के उस्ताद उनके नाना फ़िदा हुसैन ‘फ़िदा’ थे, जो ख़ुद एक मशहूर शायर थे. शायरी की ओर हसरत का रुझान भी उन्हीं की वजह से हुआ. शुरुआती तालीम के बाद उन्होंने अपने नाना से ही उर्दू और फ़ारसी की तालीम ली. 17 बरस की उम्र में वह शेर कहने भी लगे. उन्होंने जो पहला शे’र कहा, वह था, ‘‘किस अदा से वह जान लेते हैं/ मरने वाले भी मान लेते हैं.’’ इस शे’र ने ही जैसे उनके मुस्तक़बिल की कहानी लिख दी थी.

तो बंबई में हसरत जयपुरी ने आठ सालों तक कंडक्टर की नौकरी की. दिन में नौकरी और जब कहीं हुआ तो रात को मुशायरा. मुशायरों में उनकी मक़बूलियत आहिस्ता-आहिस्ता बढ़ने लगी. ऐसे ही एक मुशायरे में पृथ्वीराज कपूर ने हसरत जयपुरी को सुना. उनकी जज़्बाती नज़्म ‘मज़दूर की लाश’ पृथ्वीराज कपूर को बहुत पंसद आई. हसरत जयपुरी ने यह नज़्म फ़ुटपाथ पर उनके साथ रात बिताने वाले अपने एक दोस्त की मौत पर लिखी थी.

उन्हीं दिनों राज कपूर फ़िल्म ‘बरसात’ बनाने की तैयारी में थे. फ़िल्म में संगीत के लिए उन्होंने शंकर जयकिशन और गीतकार के तौर पर शैलेन्द्र को चुन लिया था. फ़िल्म के लिए उन्हें एक और गीतकार की तलाश थी. पृथ्वीराज कपूर ने उन्हें मशविरा दिया कि वे एक बार हसरत जयपुरी को ज़रूर सुन लें.

अपने वालिद की सलाह पर राज कपूर ने हसरत जयपुरी के साथ एक मीटिंग की. इस मीटिंग में शंकर जयकिशन भी थे. उन्होंने हसरत जयपुरी को लोकगीत पर आधारित एक धुन सुनाई और उस पर गीत लिखने को कहा. हसरत जयुपरी ने उस धुन पर वहीं लिखकर उन्हें सुनाया – ‘जिया बेकरार है, छाई बहार है, आजा मोरे बालमा तेरा इंतज़ार है..’. राज कपूर और शंकर जयकिशन दोनों को बोल पसंद आए. और इसी के साथ हसरत जयपुरी आर.के. फ़िल्म्स का हिस्सा हो गए.

सन् 1949 में आई ‘बरसात’ के सारे ही गाने सुपर हिट हुए. हसरत जयपुरी के लिखे गाने ‘जिया बेकरार..’ और ‘छोड़ गए बालम..’ भी ख़ूब पसंद किए गए. इस कामयाबी के साथ शुरू हुआ सफ़र ‘आवारा’, ‘श्री 420’, ‘चोरी चोरी’, ‘अनाड़ी’, ‘जिस देश में गंगा बहती है’, ‘संगम’, ‘तीसरी कसम’, ‘दीवाना’, ‘अराउंड द वर्ल्ड’, ‘मेरा नाम जोकर’ और ‘कल आज और कल’ तक चला. राज कपूर, शंकर जयकिशन और हसरत जयपुरी की तिकड़ी ने शानदार गीत रचे और फ़िल्मों को सुमधुर गीत-संगीत से समृद्ध किया.

हसरत जयपुरी ने शम्मी कपूर की फ़िल्मों के लिए भी गीत लिखे. ‘प्रोफ़ेसर’, ‘जंगली’, ‘राजकुमार’, ‘ब्रह्मचारी’, ‘पगला कहीं का’, ‘अंदाज’, ‘एन इवनिंग इन पेरिस’, ‘प्रिंस’ की कामयाबी के पीछे हसरत जयपुरी के प्यार-शरारत, चुहल भरे गीतों का बड़ा योगदान है. राज कपूर की फ़िल्मों के लिए लिखे उनके गीतों के मिज़ाज एकदम अलग मिज़ाज के गाने. एक ही मौसिकार और एक ही नग़मानिगार, लेकिन अंदाज़ जुदा-जुदा.

उन्होंने फ़िल्मों में शम्मी कपूर की इमेज के मुताबिक गीतों दिए, जो लोगों को बेहद पसंद आए. ‘आवाज़ दे के हमें तुम बुलाओ…’, ‘एहसान होगा तेरा…’, ‘मेरी मुहब्बत जवां रहेगी..’, ‘बदन पे सितारे लपेटे हुए..’, ‘तू बेमिसाल है, तेरी तारीफ़ क्या करूं…’, ‘आज कल तेरे मेरे प्यार के चर्चे..’ और ‘तुम मुझे यूं भुला न पाओगे..’ जैसे गानों एक लंबी फ़ेहरिस्त है. इन गानों के चलते ग़र हसरत जयपुरी को रूमानी गीतों का राजकुमार कहा जाए, तो ग़लत नहीं होगा.

अपने लड़कपन के दिनों में वह पड़ोस में रहने वाली एक लड़की से प्रेम करते थे. उनकी यह एकतरफ़ा मुहब्बत परवान नहीं चढ़ पाई. यहाँ तक कि इज़हार-ए-मुहब्बत भी मुमकिन न हुआ. इस प्रेम की छाया हसरत जयपुरी की शायरी में प्यार-मुहब्बत, मिलन-ज़ुदाई के भावों में बार-बार दिखाई देती है. अपने इंटरव्यू में उन्होंने कई बार यह बात कही भी,‘‘शे’रो शायरी की तालीम मैंने अपने नाना जान से हासिल की, लेकिन इश्क़ का सबक़ राधा ने सिखाया.’’ हसरत जयपुरी ने इश्क़ को जो सबक सीखा, उसे अपने गानों के मार्फत आगे तक पहुंचाया.

हालांकि उन्होंने सिर्फ़ रूमानी नग़में ही नहीं लिखे, अलग-अलग मूड के गाने रचने में भी वह बड़े माहिर थे. ‘तीतर के दो आगे तीतर, तीतर के दो पीछे तीतर…’, ‘ईचक दाना बीचक दाना दाने ऊपर दाना…’ जैसे गाने उनकी हरफ़नमौला तबियत के ही नमूने हैं. अलफ़ाज़ और अभिव्यक्ति का मेल उनके गीत इस शिद्दत से पेश करते हैं कि सुनने वाले के दिल में खुब जाएं – ‘दुनिया बनाने वाले क्या तेरे मन में समाई’ और ‘जाने कहां गए वो दिन..’ याद करके देखिए न!

हसरत जयपुरी की कुछ मशहूर ग़ज़लें ‘ऐ मेरी जाने ग़ज़ल, चल मेरे साथ ही चल..’, ‘जब प्यार नहीं है तो भुला क्यों नहीं देते’, ‘हम रातों को उठ-उठ के जिन के लिए रोते हैं’ और ‘नज़र मुझसे मिलाती हो तो तुम शरमा सी जाती हो’, को उन्हीं के शहर के ग़ज़ल गायकों अहमद हुसैन-मुहम्मद हुसैन ने गाकर अमर कर दिया.

1966 की फ़िल्म ‘सूरज’ के गीत ‘बहारों फूल बरसाओ…’ और 1971 की फ़िल्म ‘अंदाज़’ के ‘ज़िंदगी एक सफ़र है सुहाना..’ के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ गीतकार का ‘फ़िल्म फ़ेयर’ अवार्ड मिला. ‘बहारों फूल बरसाओ..’ बजाए बग़ैर तो आज भी शादी की सारी रस्में पूरी नहीं होतीं.

अपने पांच दशक के फ़िल्मी कॅरिअर में उन्होंने 350 फ़िल्मों के लिए कोई दो हज़ार गाने लिखे हैं. सातवें दशक में पहले शैलेन्द्र, उसके बाद संगीतकार जयकिशन और फिर मुकेश की मौत से हसरत जयपुरी को काफ़ी धक्का लगा. उसके बाद उनकी जोड़ी किसी संगीतकार के साथ उस तरह की नहीं बनी. गाने अलबत्ता वह लिखते रहे और बीच-बीच में उनके कई गाने लोकप्रिय भी हुए. ‘सुन साहिबा सुन.., ‘मैं हूं खुशरंग हिना…’ आख़िरी दिनों में लिखे हुए उनके गीत हैं, जिन्हें पुरानी पीढ़ी के साथ-साथ नई पीढ़ी के लोगों ने भी ख़ूब पसंद किया.

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