पक्षी और दीमक का आगरा में मंचन
आगरा | प्रयागराज की रंग-संस्था ‘बैकस्टेज’ के कलाकारों ने कल शाम को दयालबाग एजुकेशनल इंस्टीट्यूट परिसर में ‘पक्षी और दीमक’ का मंचन किया. प्रवीण शेखर निर्देशित इस नाटक का सार ज़्यादा सुख बटोरने के लालच में अपना सब कुछ गंवा बैठने वाले बुद्धिजीवी और उनका आलस्य है. बेहद प्रभावी रंगभाषा का यह नाटक स्पेस के सृजनात्मक प्रयोग और कथ्य की सुचिंतित बुनावट के नाते दर्शकों को बांधे रहा.
इस नाटक में आंगन, पेड़ों और छत का इस्तेमाल अभिनय स्थल के तौर पर किया जाना नया और प्रभावशाली लगा. कलाकारों का दमदार अभिनय तो था ही. मुक्तिबोध की कहानी ‘पक्षी और दीमक’ और रसूल हमजातोव की कृति ‘मेरा दागिस्तान’ के कुछ अंशों पर आधारित कथ्य का विस्तार और नाट्य रूपांतरण प्रवीण शेखर और अमर सिंह ने किया है.
वह पक्षी लालच में एक गाड़ी वाले को अपना एक-एक पंख देता जाता है और बदले में भोज्य के रूप में दो दीमक आसानी से पा जाता है. एक दिन पक्षी के सारे पंख गाड़ी वाले के पास पहुंच जाते हैं. पक्षी पंखविहीन हो जाता है और उड़ने की आज़ादी खो देता है. आख़िर में एक बिल्ली उसे अपना भोजन बना लेती है.
नाटक का इशारा ब्रिटिश-इंडिया की ओर है. नाटक का गाड़ीवान अंग्रेज़ सौदागरों का प्रतिनिधि है. उसका किरदार बताता है कि अंग्रेजों ने किस तरह कारोबार के बहाने भारतीय अर्थव्यवस्था को कब्ज़ाने की साजिश की. दीमक खरीदने वाला पक्षी भारतीय मानसिकता का प्रतिनिधि है. यहां तक कि जब बुद्धिजीवियों को जगाने वाले कारक आगाह करते हैं तब भी वह वर्ग अपना आलस छोड़ने को तैयार नहीं हुआ. और आलस्य की ख़तरनाक परिणिति के बारे में तब तक नहीं समझ पाता जब तक उसका सब कुछ लुट नहीं जाता.
रंगभाषा की नवीनता लिए इस नाट्य प्रस्तुति में कोमल पांडेय (चिड़िया), सतीश तिवारी (चिड़िया का पिता) और अमर सिंह (गाड़ी वाला) ने प्रभावशाली अभिनय किया. प्रकाश योजना टोनी सिंह, संगीत-ध्वनि प्रभाव अमर सिंह, वेशभूषा परिकल्पना सिद्धार्थ पाल, मंच परिकल्पना निखिलेश कुमार मौर्य और सिद्धार्थ पाल की. प्रस्तुति नियंत्रक आलोक सिंह, अंजल सिंह और सहयोगी निर्देशक अमर सिंह थे.
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